
हॉन्ग-कॉन्ग के नागरिकों को नागरिकता की पेशकश करने के ब्रिटेन के फैसले पर चीन ने नाराजगी जताई है। चीन ने गुरुवार को चेतावनी दी कि ब्रिटेन के इस फैसले का वह इसके ‘अनुरूप जवाब’ देगा। चीन ने इस हफ्ते ही हॉन्ग-कॉन्ग में नैशनल सिक्यॉरिटी लॉ को लागू किया है। बता दें कि पहले हॉन्ग-कॉन्ग ब्रिटेन के ही अधीन था। चीन ने कहा है कि वह इस कदम का कड़ा विरोध करता है और इसके हिसाब से कदम उठाने का अधिकार रखता है। यही नहीं, चीन ने यह भी कहा है कि लंदन अपने फैसले पर दोबारा विचार करे और ‘हॉन्ग-कॉन्ग के मसलों में दखल देने से बचे।’
अपनी स्थिति, नियमों को नुकसान पहुंचा रहा ब्रिटेन’
चीनी दूतावास ने लंदन में इस बात पर जोर दिया कि हॉन्ग-कॉन्ग में रह रहे सभी चीनी चीन के ही नागरिक हैं। दरअसल, ब्रिटेन के प्लान में हॉन्ग-कॉन्ग के ऐसे 30 लाख लोग आते हैं जिनके पास ब्रिटिशन नैशनल ओरसीज पासपोर्ट हैं या अप्लाई करने के लिए योग्य हैं। चीन का कहना है कि ये लोग चीन के ही नागरिक हैं। दूतावास ने बयान जारी कर कहा है, ‘अगर ब्रिटेन एकपक्षीय बदलाव करता है तो वह अपनी स्थिति और वादों, अंतरराष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के पालन के नियमों को नुकसान पहुंचाएगा।’
ब्रिटिस शासन समाप्त होने की 23 बरसी पर विरोध प्रदर्शन
रिपोर्ट के अनुसार, हॉन्ग कॉन्ग की सड़कों पर ब्रिटिश शासन समाप्त होने और चीन के कब्जे में आने के 23वीं सालगिरह पर स्थानीय लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं ने विरोध रैली निकाली थी। जिसके बाद चीन समर्थक पुलिस ने न केवल आंदोलनकारी जनता बल्कि वहां मौजूद मीडियाकर्मियों को भी निशाना बनाया। इस दौरान मची भगदड़ की चपेट में आने से कई लोग घायल भी हो गए।
चीनी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत होगी सजा
गिरफ्तार किए गए पहले शख्स को चीन के नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत सजा दी जाएगी। इस कानून के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने, विदेशी ताकतों के साथ अलगाव, तोड़फोड़, आतंकवाद के दोषी व्यक्ति को अधिकतम उम्रकैद की सजा सुनाई जा सकती है। चीन के नेशनल पीपुल्स कांग्रेस स्टैंडिंग कमेटी के 162 सदस्यों ने 30 जून को कानून को पेश किए जाने के 15 मिनट के अंदर सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी थी।
1997 से चीन के कब्जे में है हॉन्ग-कॉन्ग
पेइचिंग हॉन्ग-कॉन्ग की राजनीतिक उठापटक को अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहा है। बता दें कि हॉन्ग-कॉन्ग ब्रिटिश शासन से चीन के हाथ 1997 में ‘एक देश, दो व्यवस्था’ के तहत आया और उसे खुद के भी कुछ अधिकार मिले हैं। इसमें अलग न्यायपालिका और नागरिकों के लिए आजादी के अधिकार शामिल हैं। यह व्यवस्था 2047 तक के लिए है।
कैसे ब्रिटेन के कब्जे में आया था हॉन्ग कॉन्ग
1942 में हुए प्रथम अफीम युद्ध में चीन को हराकर ब्रिटिश सेना ने पहली बार हॉन्ग कॉन्ग पर कब्जा जमा लिया था। बाद में हुए दूसरे अफीम युद्ध में चीन को ब्रिटेन के हाथों और हार का सामना करना पड़ा। इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 1898 में ब्रिटेन ने चीन से कुछ अतिरिक्त इलाकों को 99 साल की लीज पर लिया था। ब्रिटिश शासन में हॉन्ग कॉन्ग ने तेजी से प्रगति की।
चीन को सौंपने की कहानी
1982 में ब्रिटेन ने हॉन्ग कॉन्ग को चीन को सौंपने की कार्रवाई शुरू कर दी जो 1997 में जाकर पूरी हुई। चीन ने एक देश दो व्यवस्था के तहत हॉन्ग कॉन्ग को स्वायत्तता देने का वादा किया था। चीन ने कहा था कि हॉन्ग कॉन्ग को अगले 50 सालों तक विदेश और रक्षा मामलों को छोड़कर सभी तरह की आजादी हासिल होगी। बाद में चीन ने एक समझौते के तहत इसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना दिया।
PM बोरिस जॉनसन ने की थी नागरिकता की पेशकश
इससे पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा था कि नए सुरक्षा कानून के जरिए हॉन्ग कॉन्ग की स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जा रहा है। इससे प्रभावित लोगों को हम ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज स्टेटस के जरिए ब्रिटिश नागरिकता देंगे। बता दें कि हॉन्ग कॉन्ग के लगभग 3 लाख 50 हजार लोगों को पहले ही ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त है जबकि, 26 लाख अन्य लोग भी इस कानून के तहत नागरिकता पाने के हकदार हैं। चीन को 1997 में ब्रिटेन सौंपा गया था। तब चीन ने गारंटी दी थी कि वह शबर की न्यायिक और विधायिकी स्वायत्ता को कायम रखेगा।
अमेरिका ने भी कड़ा कर रखा है हॉन्ग-कॉन्ग पर रुख
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, ‘चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हॉन्ग कॉन्ग की स्वतंत्रता को खत्म करने के फैसले ने ट्रंप प्रशासन को हॉन्ग कॉन्ग को लेकर अपनी नीतियों को फिर मूल्यांकन करने का मौका दिया है। चूंकि चीन राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को पारित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, इसलिए अमेरिका हॉन्ग कॉन्ग को अमेरिकी मूल के रक्षा उपकरणों को रोक रहा है।’
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