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अमेरिका बनाम रूस: आर्कटिक पर नजर, नार्वे 18 साल बाद खोल रहा परमाणु ठिकाना


दुनिया की दो महाशक्तियों रूस और अमेरिका के बीच विश्‍व का सबसे ठंडा स्‍थान आर्कटिक तनाव का केंद्र बनता जा रहा है। अमेरिका और नार्वे के कदमों से रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन भी अलर्ट हो गए हैं। दरअसल, नार्वे ने आर्कटिक इलाके में कोल्‍ड वॉर के दौरान के परमाणु सबमरीन ठिकाने को फिर शुरू कर दिया है। नार्वे पर अमेरिका की ओर से दबाव था कि आर्कटिक इलाके में रूस की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए इस ठिकाने को खोले।
​अमेरिका की 3 सीवुल्‍फ सबमरीन होंगी तैनात
नार्वे के इस परमाणु ठिकाने पर अमेरिका की 3 सीवुल्‍फ सबमरीन तैनात होंगी। अमेरिका और रूस दोनों की नजर अब आर्कटिक इलाके पर है। अमेरिका और रूस में बढ़ते तनाव के बीच अब नार्वे की सरकार ने ऐलान किया है कि वह देश के उत्‍तरी इलाके में स्थित परमाणु बेस ओलावसवेर्न को खोलने जा रहा है। यह परमाणु ठिकाना पिछले 18 साल से बंद पड़ा था। इस ठिकाने पर 9800 फुट गहरा वॉटर डॉक है जहां पर परमाणु सबमरीन की मरम्‍मत और र‍िफिट किया जा सकता है। इस ठिकाने के खुलने से अमेरिकी पनडुब्बियों को ऑपरेट करना आसान हो जाएगा।

नार्वे का यह ठिकाना रूसी सीमा से मात्र 220 मील दूर
नार्वे के नैशरल ब्रॉडकास्‍टर एनपीके ने कहा क‍ि अमेरिकी नौसेना के दबाव में ओलावसवेर्न ठिकाने को सेना के सौंपने का समझौता इस सप्‍ताह तक तैयार हो सकता है। ओलावसवेर्न ठिकाने को नाटो की पनडुब्बियों के रूकने के लिए भी किया जाएगा। यह परमाणु ठिकाना ऐसे समय पर खोला जा रहा है जब इस क्षेत्र में रूसी गतिविधियों को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। नार्वे का यह ठिकाना रूसी सीमा से मात्र 220 मील दूरी है। इस तरह से यह पश्चिमी देशों को रूस को घेरने या मास्‍को की ओर से किसी भी आक्रामक कार्रवाई का करारा जवाब देने के लिए बहुत मुफीद जगह है।
ब्रिटिश नौसेना ने रूस-चीन की दोस्‍ती पर दी चेतावनी
नार्वे के इस परमाणु ठिकाने को अब और उन्‍नत बनाया जाएगा ताकि यहां पर अमेरिका की परमाणु हमला करने में सक्षम पनडुब्‍बी यूएसएस जिमी कार्टर को तैनात किया जा सके। इस ठिकाने को खोलने का ऐलान ऐसे समय पर किया गया है जब ब्रिटिश नौसेना के अधिकारी एडमिरल टोनी रडकिन ने चेतावनी दी है कि चीन और रूस जल्‍द ही आर्कटिक समुद्र का दोहन कर सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से एक समय में हमेशा जमे रहने वाले रास्‍ते पिघल रहे हैं जिससे नए नौसैनिक रास्‍ते खुल रहे हैं। इन रास्‍तों के खुलने से अब चीनी और रूसी जहाज ब्रिटेन तक आसानी से आ सकेंगे।