एक व्यक्ति के पास पुश्तैनी बहुत सारा धन था। इस पर भी उसे संतोष नहीं था। किसी गरीब या जरूरतमंद की मदद करना तो दूर स्वयं भी ठीक से खाता-पीता नहीं था। पत्नी ने उसे कई बार समझाया भी कि पैसा जोडऩे की बजाय अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान दो। गरीबों की मदद किया करो, उनकी दुआओं से तुम प्रसन्न रह सकोगे और श्री लक्ष्मी भी खुश होकर सदा हमारे यहां रहेंगी किन्तु उसने एक न सुनी। उसे इस बात की चिंता थी कभी कोई यह धन चुरा ले गया तो क्या करूंगा। एक दिन धन की पोटली बांध कर रात को चुपचाप गांव के बाहर गड्ढा खोद उसमें दबा आया।
अब वह रोजाना उस स्थान पर जाता और देख आता। पड़ोस के गांव का एक चोर प्राय: उस गांव में आया करता था। उसने इसको हमेशा इसी जगह आकर एक निश्चित स्थान पर आंख गड़ाए लौटते देखा था। उसे यह समझते देर न लगी कि उस स्थान पर अवश्य कोई मूल्यवान वस्तु दबी हुई है। एक दिन वह पौ-फटने और उस व्यक्ति के पहुंचने से पूर्व ही उस स्थान पर जा पहुंचा और खुदाई कर पोटली निकाल ली। सुबह होने को थी, चोर उस गड्ढे को खुली ही छोड़कर रफूचक्कर हो गया। अंधेरा छंटते ही व्यक्ति घर से अपने गड़े धन के स्थान पर ज्यों ही पहुंचा उसके होश उड़ गए।
उसका सारा धन जा चुका था। इतनी बड़ी हानि वह सह न कर सका और वहीं रोने बैठ गया। कुछ देर बाद पत्नी दौड़ी आई उसने सारी स्थिति जानी और समझाते हुए बोली ‘‘धन तो पहले भी आपके काम न आया था न आपके जीवन में काम आ सकता था क्योंकि उसे आपने एक जगह स्थिर कर दिया था। आपका अधिकार उस पर जरूर था फिर भी उसे छिपाकर रखा था। ऐसी हालत में दुखी होने की बजाय अपनी आंखें खोलो और बचे-खुचे धन को परमार्थ में लगाओ जो हमारे जीवन में खुशियों का कारण बन सके।’’