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क्यों मकर संक्रांति का त्योहार खिचड़ी के बिना माना जाता है अधूरा ?


हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का पर्व बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। देश के हर कोने में इसकी एक अलग ही धूम होती है। बहुत से लोग इस दिन अपने घरों में भगवान को भोग लगाने के लिए खिचड़ी प्रसाद बनाते हैं। शास्त्रों में भी संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और खाने की एक खास महत्व बताया गया है और इसी कारम से ही इस त्योहार को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है। आइए जानते हैं आखिर क्यों मकर संक्रांति का त्योहार खिचड़ी के बिना अधूरा माना जाता है और कैसे खिचड़ी का आपके ग्रहों के साथ है गहरा कनेक्शन।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी के साथ-साथ, गुड़ तिल से बनी चीजों का भोग भी लगाया जाता है। जैसे तिल के लड्डू, गजक, रेवड़ी को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
खिचड़ी का कैसे है ग्रहों से सीधा संबंध
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सफेद चावलों को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है। जबकि इसमें डाली जाने वाली काली दाल को शनि का। खिचड़ी में पकने वाली हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खिचड़ी की गर्मी व्यक्ति को मंगल और सूर्य से जोड़ती है। जिसकी वजह से इस दिन यदि कोई व्यक्ति खिचड़ी का सेवन करता है तो उसकी राशि में ग्रहों की स्थिती मजबूत बनती है।