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‘वंदे मातरम’ की जगह ‘जन गण मन’ को क्यों चुना राष्ट्रगान , नेहरू ने 1948 की कैबिनेट नोट में दी थी ये दलील


वंदे मातरम को लेकर नेहरू के तर्क मुख्यतः संगीत, भाषा, अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और राष्ट्रीय गान व राष्ट्रीय गीत के अलग-अलग भाव से जुड़े थे।
संसद में सोमवार को ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने पर 10 घंटे की विशेष चर्चा होने जा रही है। इससे एक दिन पहले बीजेपी ने कहा कि यह चर्चा एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ‘बेपरदा’ कर देगी। बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने रविवार को दावा किया कि चर्चा के दौरान यह साफ हो जाएगा कि नेहरू ने वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गान क्यों नहीं बनने दिया।
नेहरू के क्यों चर्चा में आए? – पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि उसने वंदे मातरम् के कुछ पदों को ‘हटा दिया’ और इसे धार्मिक आधार पर विवादित रूप में पेश किया। कांग्रेस ने इस आरोप को नकारते हुए कहा था कि पीएम ने उस ऐतिहासिक बैठक के नेताओं का अपमान किया है जिसमें 1937 में वंदे मातरम् पर प्रस्ताव पारित हुआ था। इस विवाद के बीच नेहरू के वे कारण फिर चर्चा में हैं, जिनकी वजह से उन्होंने वंदे मातरम् की जगह ‘जन गण मन’ को राष्ट्रीय गान के लिए उचित माना था। उनकी चिट्ठियां और भाषण नेहरू आर्काइव में उपलब्ध हैं।
कैबिनेट नोट में क्या लिखा? – नेहरू ने 21 मई 1948 को कैबिनेट नोट में लिखा कि राष्ट्रीय गान केवल शब्दों का नहीं, बल्कि एक ऐसी धुन का होना चाहिए जिसे ऑर्केस्ट्रा, सैन्य बैंड और विभिन्न अवसरों पर आसानी से बजाया जा सके। उनके अनुसार ‘जन गण मन’ इन मानकों को पूरा करता है। इसके विपरीत, वंदे मातरम् की धुन उन्हें बेहद सुंदर होने के बावजूद ‘विलाप जैसी, धीमी और दोहराव वाली’ लगती थी। उन्होंने कहा कि विदेशी बैंड या दर्शकों के लिए यह धुन समझना और अपनाना भी कठिन है। नेहरू के मुताबिक वंदे मातरम् उस दौर का प्रतीक है जब देश आज़ादी के लिए तड़प रहा था, जबकि राष्ट्रीय गान में भविष्य की उपलब्धि और आत्मविश्वास झलकना चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा कि वंदे मातरम् की भाषा आम लोगों के लिए कठिन है, जबकि जन गण मन अपेक्षाकृत सरल है, भले ही उसमें समयानुसार कुछ बदलाव की जरूरत हो।
संघर्ष का नहीं, उपलब्धि का गीत – 15 जून 1948 को बंगाल के मुख्यमंत्री बनने वाले बी. सी. रॉय को लिखे पत्र में नेहरू ने कहा कि मुसलमानों के विरोध की वजह से नहीं, बल्कि वर्तमान संदर्भ में वंदे मातरम् राष्ट्रीय गान के रूप में उपयुक्त नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम् हमारे स्वतंत्रता संग्राम से गहराई से जुड़ा है और राष्ट्रीय गीत के रूप में उसका सम्मान हमेशा बना रहेगा, लेकिन राष्ट्रीय गान का भाव भिन्न होता है—वह संघर्ष का नहीं, उपलब्धि का गीत होना चाहिए।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे पत्र में नेहरू बोले-वंदे मातरम् की धुन उपयुक्त नहींं – 21 जून 1948 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखी चिट्ठी में नेहरू ने दोहराया कि वंदे मातरम् की धुन ऑर्केस्ट्रा के लिए उपयुक्त नहीं है, जबकि जन गण मन देश-विदेश में लोगों को तुरंत आकर्षित करता है। उनके अनुसार वंदे मातरम् भावनाओं से जुड़ा महान राष्ट्रीय गीत है, लेकिन आज़ादी मिलने के बाद राष्ट्रीय गान के रूप में वह धुन उतनी उपयुक्त नहीं।
वंदे मातरम् भारत का ‘प्रमुख राष्ट्रीय गीत’ है और रहेगा: नेहरू – 25 अगस्त 1948 को संविधान सभा में दिए उत्तर में भी नेहरू ने कहा कि वंदे मातरम् भारत का ‘प्रमुख राष्ट्रीय गीत’ है और रहेगा। लेकिन राष्ट्रीय गान वह होना चाहिए जिसका संगीत भारतीय और पश्चिमी दोनों शैलियों में बज सके और जिसे दुनिया भर में आसानी से अपनाया जा सके। उनके अनुसार जन गण मन का संगीत इस कसौटी पर खरा उतरता है, जबकि वंदे मातरम् में वह गति और चाल नहीं जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवश्यक होती है।
नेहरू ने यह भी कहा कि अंतिम निर्णय संविधान सभा को करना है-वह चाहे तो जन गण मन को चुन सकती है, वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत बनाए रख सकती है या फिर किसी बिल्कुल नए गीत और धुन का चयन भी कर सकती है। इस प्रकार नेहरू के तर्क मुख्यतः संगीत, भाषा, अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और राष्ट्रीय गान व राष्ट्रीय गीत के अलग-अलग भाव से जुड़े थे।