
भारत ने मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवाद के प्रति ‘कतई बर्दाश्त नहीं करने’ की नीति प्रदर्शित करने की अपील करते हुए कहा कि यह समस्या ‘मानवाधिकारों का सबसे अक्षम्य उल्लंघन’ है और इसे अंजाम देने वालों को हमेशा जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 52वें सत्र के उच्च स्तरीय सत्र में एक वीडियो संदेश में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत उन वैश्विक चुनौतियों, विशेष रूप से आतंकवाद से निपटने में सबसे आगे रहा है जो मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। उन्होंने कहा, ‘पिछले तीन साल दुनिया के लिए कठिन रहे हैं और विकासशील देश सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।’
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी की चुनौतियों- ईंधन, उर्वरक और खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों और बढ़ते कर्ज के बोझ ने वैश्विक स्तर पर लोगों द्वारा मानवाधिकारों की सुविधा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। जयशंकर ने कहा, ‘सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के हमारे सामूहिक प्रयासों को गंभीर रूप से धक्का लगा है।’ उन्होंने कहा, ‘भारत का मानना है कि दुनिया को (आतंकवाद के खिलाफ) दृढ़ता से बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति प्रदर्शित करनी चाहिए। आखिरकार, आतंकवाद मानवाधिकारों का सबसे अक्षम्य उल्लंघन है और किसी भी परिस्थिति में इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए, इसे अंजाम देने वालों को हमेशा जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।’
जयशंकर ने बिना नाम लिए पाकिस्तान को ‘धोया’ – उन्होंने ऐसा कहते हुए किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका परोक्ष तौर पर इशारा पाकिस्तान की ओर था। भारत देश में सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करता रहा है। जयशंकर ने दोहराया कि भारत यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाता रहेगा कि देश अपने सभी मानवाधिकार दायित्वों को पूरा करे और यह सुनिश्चित करे कि इसके लोगों को सभी बुनियादी मानवाधिकार प्राप्त हों। उन्होंने कहा, ‘हमारा संविधान मौलिक अधिकारों के रूप में नागरिक और राजनीतिक अधिकारों की गारंटी देता है। इसमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्रगतिशील प्राप्ति के प्रावधान भी हैं। हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका उस संबंध में अपनी अपेक्षित भूमिका निभाती रही है, जैसा कि वास्तव में हमारे मीडिया और नागरिक संस्थाओं ने किया है।’
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