अपटॉन सिंक्लेयर का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न हारते हुए अपनी लेखन की रुचि को जीवित रखा। वह इतने गरीब थे कि कई बार उनके पास घर का किराया चुकाने तक के पैसे नहीं होते थे। अक्सर परिवार को भूखा ही सो जाना पड़ता था। 10 साल की उम्र तक गरीबी के कारण अपटॉन स्कूल नहीं जा पाए लेकिन बचपन से ही उन्हें पढऩे का शौक था इसलिए उन्होंने घर पर ही डिकेंस और थेकरे के सभी उपन्यासों के साथ-साथ एनसाइक्लोपीडिया भी पढ़ डाला।
वह जहां कहीं पुस्तकें देखते, उठाकर पढऩे लगते। अपने संघर्ष और मेहनत से वह कालेज पहुंच गए। वहां पहुंचने के बाद उन्होंने आय हेतु सस्ती पत्रिकाओं के लिए उपन्यास लिखे। उन्हें लिखना बेहद पसंद था। वह हर रात 8 हजार शब्द लिखते थे, यानी हर महीने 2 उपन्यास। कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपटॉन ने विचार प्रधान उपन्यास लिखने का निर्णय किया।
वह गरीबी और अन्याय को बहुत करीब से देख चुके थे। उनके मन में गरीबी और अन्याय के प्रति आक्रोश भर चुका था। वह इनसे लडऩा चाहते थे और इन्हें दुनिया से समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने दुनिया को बदलने के इरादे से लिखना शुरू किया। 5 साल में उन्होंने ऐसे ही 5 उपन्यास लिखे।
उपन्यास ‘द जंगल’ से उन्हें राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त हुई। अब अपटॉन लेखन के साथ ही सामाजिक कार्यों में भी रुचि लेने लगे थे क्योंकि उन्हें यह पता चल गया था कि गरीबी और अन्याय से लडऩे के लिए केवल लेखन पर्याप्त नहीं है, इसके लिए दबे-कुचले लोगों की मदद करना भी बहुत जरूरी है। आखिरकार धीरे-धीरे अपटॉन की मेहनत रंग लाई। उनकी लेखन क्षमता को भी पहचान मिली और एक दिन उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया।