
सभा में एक व्यापारी को देखते ही राजा भोज के मन में विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे इसकी सारी स पत्ति राजकोष में जमा हो जाए। व्यापारी के जाने के बाद राजा को बड़ा खेद हुआ-मैं प्रजा के साथ न्यायप्रिय रहता हूं, आज मेरे मन में ऐसा विचार क्यों आया? उन्होंने मंत्री को अपनी उलझन बताई। उसने कुछ दिन का समय मांगा।
मंत्री वेश बदलकर व्यापारी के पास पहुंचा और उससे मित्रता की। बातचीत में पता चला कि उस व्यापारी के पास उत्तम कोटि के चंदन का बड़ा भंडार जमा हो गया है। वह चंदन बिक नहीं रहा है जिससे उसका काफी धन फंसा पड़ा है। मंत्री ने पूछा, ‘‘क्या हानि से बचने का कोई उपाय नहीं?’’
व्यापारी हंसकर कहने लगा, ‘‘अगर राजा भोज की मृत्यु हो जाए तो उनके दाह-संस्कार में खप सकता है यह चंदन। उस स्थिति में यह पूरा माल बिक जाएगा।’’ मंत्री को राजा के प्रश्र का उत्तर मिल चुका था।
मंत्री ने कहा, ‘‘तुम आज से प्रतिदिन राजा का भोजन पकाने के लिए 40 किलो चंदन राजरसोई भेज दिया करो। पैसे उसी समय मिल जाएंगे।’’
अब व्यापारी मन ही मन राजा के दीर्घायु होने की कामना करने लगा ताकि वह ल बे समय तक चंदन बेचता रहे। कुछ दिन बाद वह व्यापारी फिर आया सभा में राजा के दर्शन के लिए।
उसे देखकर राजा के मन में विचार आया कि यह कितना आकर्षक व्यक्ति है। राजा ने मंत्री से कहा, ‘‘यह व्यापारी पहली बार आया था तो मेरे मन में बुरे भाव आए थे। आज अच्छे भाव आए। बिना कुछ किए मेरे मनोभावों में इतना बड़ा परिवर्तन कैसे हो गया?’’
मंत्री ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज! यह जब पहली बार आया था तब आपकी मृत्यु की कामना रखता था। अब यह आपके ल बे जीवन की कामना करता है। जैसी अपनी भावना होती है, वैसा ही प्रतिबि ब दूसरे के मन पर पड़ता है।’
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