
इस्लामाबाद : पनामागेट मामले को लेकर घिरे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आज संसद में एकजुट विपक्ष का सामना करना पड़ा जब उनके खिलाफ सदन में ‘झूठी’ बातें रखने को लेकर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश किया गया।
नेशनल असेंबली में नेता प्रतिपक्ष सैयद खुर्शीद शाह ने विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश किया जिसमें प्रधानमंत्री के वकील की आेर से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका का उल्लेख किया गया है। इस प्रस्ताव पर सात अन्य सांसदों ने भी हस्ताक्षर किए हैं।
इसमें कहा गया है, ‘‘बीते 16 जनवरी को प्रधानमंत्री के वकील की आेर से उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका और प्रधानमंत्री शरीफ के असेंबली में दिए उस भाषण में मेल नहीं है जिसमें शरीफ ने पनामा पेपर्स मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट की थी और अनुच्छेद 66 का इस्तेमाल किया था। प्रधानमंत्री ने असेंबली को सच नहीं बताया है।’’
प्रस्ताव में कहा गया है कि बयानों में विसंगतियां इस बात को दर्शाती हैं कि प्रधानमंत्री ने जानबूझ कर झूठ बोला जो सदन की स्पष्ट अवमानना है। इसमें कहा गया है, ‘‘पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 91(6) के तहत प्रधानमंत्री और कैबिनेट संसद के प्रति सामूहिक रूप से जवाबदेह हैं और उनका पूरा सच बताना होता है।’’
उधर, पनामागेट मामले की सुनवाई कर रही सर्वोच्च न्यायालय की बड़ी पीठ ने आज शरीफ के वकील को याद दिलाया कि यह मामला प्रधानमंत्री के तौर पर शरीफ की योग्यता से संबंधित है। सुनवाई के दौरान जस्टिस शेख अजमत सईद ने कहा कि मामले ने शरीफ के प्रधानमंत्री कार्यालय के दावे को चुनौती दी है।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा ने कहा कि अनुच्छेद 225 के तहत निर्वाचन के बाद प्रधानमंत्री के चयन को चुनौती देने के लिए तय समयसीमा सीमित है। न्यायाधीश ने कहा कि जब यह समयसीमा पूरी हो जाती है तो फिर इस चयन पर अनुच्छेद 184-3 और अनुच्छेद 199 के तहत समीक्षा के लिए कहा जा सकता है।
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