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ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवाद का नाम मिटाने के लिए कूटनीतिक तौर पर और क्या करे भारत, पूर्व विदेश सचिव ने बताया


भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिये अपनी जो सैन्य क्षमता दिखाई है,वह दुश्मनों की सोच के लिए बहुत बड़ा धक्का है। फिलहाल भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कूटनीतिक लड़ाई लड़ने में लगा हुआ है। दुनिया के 33 देशों की राजधानियों का दौरा करके अभी-अभी भारत का सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल स्वदेश लौटा है। इन्हें जो जिम्मेदारी मिली थी, उसमें वे काफी सफल रहे हैं और वह पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर की परिस्थितियों को लेकर इन देशों तक भारत का संदेश पहुंचा आए हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर भी यूरोप के देशों की यात्राएं कर रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जी7 में हिस्सा लेने के लिए कनाडा जा रहे हैं और जाते वक्त साइप्रस होते हुए जाने वाले हैं और लौटते समय क्रोएशिया का भी दौरा करने वाले हैं। यह सब तो अपनी जगह ठीक है, लेकिन निहित तात्कालिक स्वार्थ की वजह से ऐसा लग रहा है कि दुनिया के कई महत्वपूर्ण देश आतंकवाद के खतरे को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। खासकर चीन जैसा देश तो एक तरह से पाकिस्तान के साथ ही खड़ा है। ऐसे में आतंकवाद संबंधी कूटनीति को जानने वाले लोगों की राय जानना महत्वपूर्ण है कि मौजूदा स्थिति में भारत की ओर से और क्या कुछ किया जा सकता है।
आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को एकजुट करे – इसी विषय को लेकर पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में अपना नजरिया सामने रखा है। कुल मिलाकर राव के लेख का लब्बोलुआब ये है कि भारत को ग्लोबल साउथ के देशों को साथ लेकर एक संगठन बनाना चाहिए, जिसे उन्होंने ‘टी20’का नाम दिया है। उनके अनुसार इससे आतंकवाद से लड़ने में मदद मिलेगी। उनका कहना है कि पहलगाम हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर का अमेरिका, फ्रांस और इजराइल जैसे देशों ने तो समर्थन किया। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र (UN) और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों ने सिर्फ शांति बनाए रखने की बात कही। ये आतंकवादियों और उनके समर्थकों की सीधी निंदा नहीं कर पाए। चीन ने तो हमेशा की तरह पाकिस्तान का बचाव किया। रूस ने भी इस मामले पर चुप्पी साधे रखी। उनका कहना है कि इस वजह से भारत को आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ सैन्य कार्रवाई पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे कूटनीतिक रूप से भी मजबूत होना होगा। क्योंकि, दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुट नहीं हो पा रही है। इसलिए, भारत को एक ऐसा मंच बनाना चाहिए, जहां आतंकवाद पीड़ितों की आवाज सुनी जा सके।
आतंकवाद के खिलाफ काम नहीं कर पा रहे वैश्विक मंच – पूर्व विदेश सचिव का कहना है कि यूएन,एफएटीएफ (FATF) और ग्लोबल काउंटरटेररिज्म फोरम जैसे संगठन आतंकवाद को रोकने में नाकाम रहे हैं। ये संगठन अक्सर पश्चिमी देशों के हितों को ध्यान में रखते हैं। इसलिए, वे दक्षिण एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व में आतंकवाद की गंभीरता को नहीं समझ पाते। इंडोनेशिया, नाइजीरिया, मिस्र, केन्या, माली, फिजी और फिलीपींस जैसे देश लगातार आतंकवाद का सामना कर रहे हैं। लेकिन, इन देशों को वैश्विक संगठनों से मदद नहीं मिल पाती है। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में तो डाला, लेकिन उस पर कड़ी कार्रवाई करने में देरी की। भारत कई सालों से सीमा पार आतंकवाद से जूझ रहा है। इसलिए, वह जानता है कि इन संगठनों में या तो शक्ति नहीं है या वे राजनीतिक वजहों से अपना काम नहीं कर पाते हैं। इसलिए, जरूरतमंद देशों को एक ऐसे मंच की जरूरत है, जो तेजी से काम करे और निष्पक्ष हो। अपने टी20 को वह ट्वेंटी अगेंस्ट टेररिज्म कह रही हैं। यह संगठन खुफिया जानकारी साझा करने, आतंकवादियों का समर्थन करने वाले देशों को बेनकाब करने पर ध्यान दे सकता है। भारत के पास सीमा पार आतंकवाद से निपटने का अनुभव है। इसलिए, वह इस पहल का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त है।