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चीन और पाकिस्‍तान की आंखों में कांटा बना था भारत का एकमात्र विदेशी सैन्‍य अड्डा, दोस्‍त रूस की साजिश से हाथ से निकला? जानें


ताजिकिस्तान ने 2021 में भारत को बताया था कि एयरबेस को लेकर लीज नहीं बढ़ाया जाएगा। जिसके बाद भारत ने साल 2022 में अयनी एयरबेस से वापसी शुरू कर दी। भारत को सेन्ट्रल एशिया में प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने नई रणनीति बनाने की जरूरत होगी।
भारत के हाथों से ताजिकिस्तान का अयनी एयरबेस निकल गया है। ताजिकिस्तान ने अयनी एयरबेस के लिए भारत के साथ कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद भारत को अयनी एयरबेस खाली करना पड़ा। दिप्रिंट समेत कई मीडिया संस्थानों ने दावा किया है कि भारत ने करीब दो दशकों के बाद मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में एक रणनीतिक सैन्य अड्डे पर अपनी उपस्थिति समाप्त कर दी है। इसके पीछे चीन और रूस को संभावित कारण बताया गया है।
अयनी एयरबेस को गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा के नाम से भी जाना जाता है, वो एक वक्त भारतीय वायुसेना के लिए सेन्ट्रल एशिया में रणनीतिक एयरबेस था। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद भारतीय लोगों को निकालने के लिए भारत ने इसी एयरबेस का इस्तेमाल किया था और पिछले दो दशकों से ये एयरबेस, भारत को रणनीतिक बढ़त देता रहा है। लेकिन अब ये भारत के हाथों से निकल गया है।
रूस और चीन ने बनाया था ताजिकिस्तान पर प्रेशर – अयनी एयरबेस ने भारत को उपमहाद्वीप के बाहर भारतीय वायुसेना को रणनीतिक रूप से मजबूती प्रदान की और पाकिस्तान की हवाई सीमा की सीमाओं को दरकिनार करते हुए मध्य एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की क्षमता प्रदान की। ताजिकिस्तान, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा था, उसकी सीमा अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान से लगती है। इसीलिए भारत का वहां से हटना, इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे मध्य एशिया रूस, चीन और भारत, तीन परमाणु शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा का एक क्षेत्र बन गया है, जो इस क्षेत्र के सुरक्षा संतुलन को आकार देने की कोशिश कर रही हैं।