
NCR में दमघोंटू प्रदूषण के बीच देश के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि अमीर लोगों की लाइफस्टाइल ही इसकी जड़ में है। उन्होंने साफ कहा कि जहरीली हवा से लड़ने के आदेश और प्रोटोकॉल इसलिए प्रभावी नहीं हो रहे क्योंकि अमीर अपनी लाइफस्टाइल बदलना नहीं चाहते। दूसरी तरफ प्रदूषण के खिलाफ इस साल लोग सड़कों पर उतरे। वहीं, क्लाउड सीडिंग जैसे तरीके को पहली बार दिल्ली में आजमाया गया। इन्हीं सब मुद्दों पर NBT की पूनम गौड़ ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की डायरेक्टर जनरल पद्मश्री सुनीता नारायण से बातचीत की। प्रस्तुत हैं इसके मुख्य अंशः
दुनिया में में प्रदूषण की समस्या खत्म हुई है। चीन का उदाहरण अवसर दिया जाता है। क्या हमें इन देशों से सीखने की जरूरत है ?
हां, हम अन्य देशों को देख सकते हैं और उनसे सीख सकते हैं। उदाहरण के लिए, चीन ने धुंध से साफ हवा का सफर तय किया है। इसके लिए उसने दो मुख्य उपाय किए। पहला, प्राकृतिक गैस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल और उन उद्योगों को बंद करना, जो पर्यावरण नियमों का पालन नहीं करते। दूसरा, बड़े पैमाने पर गाड़ियों को रिप्लेस करना और इलेक्ट्रिक गाड़ियां अपनाना। मूल बात यह है कि यह भारत में भी संभव है। हमें बस एक योजना के अनुसार काम करने की जरूरत है। हमें पूरे साल प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। ऐसा नहीं कि अगली सर्दी तक इंतजार करते रहें कि जब ठंडी हवा चलेगी, दिवाली होगी और खेतों में आग लगेगी, हम तभी एक्शन लेंगे।
प्रदूषण को लेकर इंडिया गेट से जंतर-मंतर तक प्रोटेस्ट हो रहे हैं। अर्जेंटीना के फुटबॉल प्लेयर लियोनेल मेसी के टूर के दौरान भी AQI के नारे लगे। इससे क्या संकेत मिल रहे हैं?
हां, लोग प्रोटेस्ट कर रहे हैं। यह दिल्ली-NCR लोगों की नाराजगी, निराशा और हताशा की ओर संकेत कर रहा है। लोगों का यह गुस्सा समझ में भी आता है और सही भी है। हमारे पास कानून और नियम हैं, प्रदूषण को नियंत्रित करने की एजेंसियां हैं। हमारे पास इस संकट से निपटने की सभी संभावनाएं हैं। इसके बावजूद हम हर मोर्चे पर विफल दिख रहे हैं।
अपनी स्टडी के दौरान क्या आपने अमीरों की लाइफस्टाइल और प्रदूषण के बीच कोई सीधा संबंध देखा है ?
वायु प्रदूषण एक बड़ा फैक्टर है, जो हर वर्ग को समान रूप से प्रभावित कर रहा है। इसमें भी संदेह नहीं कि सभी इसमें योगदान कर रहे हैं। अमीर अपनी निजी कारों से प्रदूषण करते हैं। दूसरी ओर, गरीबों के पास यदि क्लीन एनर्जी नहीं है तो वे भी हवा को विषैला कर रहे हैं। अमीर एयर प्यूरीफायर खरीद सकते हैं या सर्दियों में दिल्ली से बाहर रह सकते हैं। लेकिन ये उपाय लंबे समय तक काम नहीं करेंगे।
सरकार को इस समस्या पर काबू पाने के लिए नीतियों में किस तरह के बदलाव करने चाहिए?
हमें दीर्घकालिक दृष्टि और एक्शन लेने की जरूरत है। साथ ही, दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति भी चाहिए। GRAP (ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान) कोई दीर्घकालिक कार्रवाई नहीं है। यह इमरजेंसी उपाय है। हमें पूरे साल कार्रवाई करनी चाहिए, जो हम नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ सर्दियों में प्रदूषण को लेकर एक्टिव दिखते हैं। क्लाउड सीडिंग और स्मॉग गन जैसी दिखावटी चीजों का समय अब खत्म हो गया है।
अब तक इस दिशा में हुए प्रयासों को आप किस तरह से देखती हैं?
बेशक, बीते कुछ सालों में बहुत कुछ किया गया है। ईंधन अब अधिक साफ है। हम BS-6 तकनीक को अपना चुके हैं। हमने दिल्ली में कंजेशन टैक्स लगाया है। हमारा सार्वजनिक परिवहन CN CNG पर चलता है। लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है। हालांकि यह हमें दिखाता है कि अगर हम कार्रवाई करें तो सुधार होगा।
आगे किस तरह के सुधार होने चाहिए?
हमें अब नेक्स्ट जेनरेशन रिफॉर्म की जरूरत है। पुरानी कमर्शल गाड़ियों को नई और साफ BS-6 मॉडल से बदलने की जरूरत है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्विस को सुधारने और निजी गाड़ियों के इस्तेमाल को सीमित करने की जरूरत है। उद्योगों के लिए साफईंधन जैसे नैचरल गैस की जरूरत है। किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे अपनी पराली को जलाकर उसे बर्बाद न करें बल्कि उसे इस्तेमाल करें। अपने कूड़े को बेहतर मैनेज करने की जरूरत है साथ ही, हमें नियमों को सख्ती से लागू करना चाहिए। हमें नई योजना की सख्त जरूरत है। हमें पता है कि प्रदूषण के सोर्स क्या हैं। सर्दियों में वे बदलते नहीं है। सर्दियों में जो बदलता है वह मौसम है।
बड़ी गाड़ियां, जेनरेटर, AC वगैरह निश्चित रूप से समस्या बढ़ाते हैं। इनमें और पर्यावरण में बैलेंस कैसे बनाया जा सकता है?
हमें यह समझना होगा कि हम आज की भौतिक सुविधाओं में निवेश करते हुए अपनी खुद की सेहत और अपने बच्चों के भविष्य को बर्बाद कर रहे हैं। हमें खुद से सवाल पूछना चाहिए कि क्या वास्तव में बड़ी गाड़ियों, AC, जेनरेटर और एयर प्यूरीफायर जैसी चीजों की जरूरत है। अगर हम अपने घरों को इस तरह डिजाइन करें कि वे तापमान के लिहाज से आरामदायक हों, तो हमारी AC और जेनरेटर की जरूरत कम हो जाएगी। हमें खुद से सिर्फ एक सवाल करना करना है कि क्या हम अलग सोचने और अलग काम करने के लिए तैयार हैं? इसके जवाब पर ही सब कुछ निर्भर करता है।
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