Wednesday , October 15 2025 9:01 AM
Home / Off- Beat / नकली सूरज बनाने में लगा ये देश, देगा असली को मात

नकली सूरज बनाने में लगा ये देश, देगा असली को मात


बीजिंगः अगर आसमान में एक नहीं, दो सूरज नजर आने लगें तो क्या हाल होगा। गर्मी में एक सूरज की तपिश सहन नहीं होती, एेसे में दो सूरज हो गए तो क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। खैर, आने वाले समय में 2 सूरज दिखेंगे या नहीं, यह तो नहीं पता, लेकिन चीन एक कृत्रिम सूरज बनाने की तैयारी में जरूर लगा हुआ है। खास बात यह है कि कृत्रिम सूरज असली सूरज के मुकाबले 6 गुना ज्यादा गर्म होगा।
चीन की एकेडमी ऑफ साइंस से जुड़े इंस्टीट्यूट ऑफ प्लाज्मा फिजिक्स के मुताबिक, कृत्रिम सूरज की टेस्टिंग जारी है। इसे एक्सपेरिमेंटल एडवांस्ड सुपरकंडक्टिंग टोकामक (ईस्ट) नाम दिया गया है। जहां असली सूरज का कोर करीब 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है, वहीं चीन का यह नया सूरज 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक गर्मी पैदा कर सकेगा। स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने के मकसद से कृत्रिम सूरज के निर्माण की तैयारी की जा रही है। इसे बिल्कुल असली सूरज की तरह डिजाइन किया गया है। यह सौर मंडल के मध्य में स्थित किसी तारे की तरह ही ऊर्जा का भंडार उपलब्ध कराएगा।PunjabKesari दरअसल, ईस्ट को एक मशीन के जरिए पैदा किया जाता है। इस मशीन की साइज बीच में खोखले गोल बॉक्स (डोनट) की तरह है। इसमें न्यूक्लियर फ्यूजन (परमाणु के विखंडन) के जरिए गर्मी पैदा की जा सकती है। हालांकि, इसे एक दिन के लिए चालू करने का खर्च 15 हजार डॉलर (करीब 11 लाख रुपए) है। फिलहाल, इस मशीन को चीन के अन्हुई प्रांत स्थित साइंस द्वीप में रखा गया है। ईस्ट को मुख्य तौर पर न्यूक्लियर फ्यूजन के पीछे का विज्ञान समझने और उसे पृथ्वी पर ऊर्जा के नए विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है।
आने वाले समय में यह तकनीक स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने का अहम स्रोत साबित हो सकती है। दरअसल, दुनिया मेें इस वक्त न्यूक्लियर फिजन (परमाणु संलयन) के जरिए ऊर्जा पैदा की जा रही है। हालांकि, इसकी वजह से पैदा होने वाला जहरीला न्यूक्लियर कचरा इंसानों के लिए काफी खतरनाक है। चीन पहले ही रोशनी के नए स्रोत के तौर पर आसमान में कृत्रिम चांद लगाने की बात कह चुका है। इसके जरिए वैज्ञानिक रात को देश की सड़कों को रोशन करना चाहते हैं। इसके लिए कुछ बड़े सैटेलाइटों का इस्तेमाल किया जाएगा, जो ऊर्जा भी बचाने का काम करेगा। यह 2022 तक लॉन्च किया जा सकता है।