हिंदू धर्म में जिन सोलह संस्कारों का वर्णन आता है, उनमें पहला संस्कार है गर्भाधान। इस संस्कार के बाद व्यक्ति होंद में आता है और जीवन-मृत्यु का चक्र आरंभ होता है। गृहस्थ जीवन का उद्देश्य और कर्तव्य संतान पैदा करना है। तभी तो सृष्टि का संचालन संभव है। हर जीव जो इस दुनियां में आता है वह माता-पिता बनने का सुख प्राप्त करता है लेकिन श्रेष्ठ संतान की उत्पत्ति के लिये हिंदू धर्म ग्रंथों में कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। जिनका पालन करना गर्भधान संस्कार कहलाता है। कहते हैं महिला और पुरुष के मिलन से जीव स्त्री के गर्भ में अपना स्थान बना लेता है। गर्भाधान संस्कार के माध्यम से जीव के पूर्वजन्म के बुरे प्रभाव को नष्ट कर अच्छे गुणों को डाला जाता है।
शास्त्रों में गर्भ धारण के लिए शुभ दिन, समय और मुहूर्त बताया गया है। उस दौरान यदि महिला गर्भ धारण करे तो गुणवान, योग्य और चिरंजीवी संतान पैदा होती है। जिस दिन और समय पर बच्चे का जन्म होता है, उस मुहूर्त के आधार पर कुंडली तैयार होती है। यदि अच्छे ग्रहों का मेल चल रहा हो तो बच्चे की लाइफ अच्छी रहती है और अगर उस समय पर ग्रहों की अशुभता चल रही हो तो लाइफ में प्रॉब्लम बनी रहती है। भाग्यशाली और स्वस्थ संतान के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में बताया गया है महिलाएं मासिक धर्म के चार दिनों तक अशुद्ध रहती हैं। इस दौरान उन्हें कोई भी धार्मिक काम नहीं करना चाहिए। दंपत्ति को मर्यादित व्यवहार करते हुए एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। ऋतुकाल के पांचवें दिन महिला शुद्ध होती है और एक सप्ताह बाद धार्मिक काम कर सकती है। सात दिन तक पति-पत्नी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दौरान पैदा हुई संतान का जीवन मुश्किलों भरा होता है और वो छोटी आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती है।
ऋतुकाल के बाद आठवीं रात गर्भधारण के लिए सबसे अच्छी रहती है। इस दौरान पैदा हुई संतान सर्वश्रेष्ठ होती है। ऋतुकाल से चौदहवीं रात बहुत खास मानी गई है, इस दिन पैदा हुई संतान कुल का नाम रोशन करती है। सप्ताह के दिनों की बात करें तो सोमवार, बुधवार, गुरुवार, और शुक्रवार का दिन अच्छा रहता है। तिथियों में अष्टमी, दशमी और बारहवीं तिथि शुभ रहती है। गर्भधारण के वक्त पति-पत्नी दोनों का चन्द्रमा बलवान होना चाहिए।