ज्योतिषाचार्य आशीष ममगाईं, भारत
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वक्र शनि की देन ’फानी‘, 7 मई से प्रारंभ होने वाला अंगारकारक योग भी दे सकता है दुष्प्रभाव
ज्योतिषीय भाषा में समझे तो ब्रह्यांड में शनि वक्र गति को प्राप्त हो जाएं और देश-दुनिया में चीजें शांति से चलें, ऐसा कम ही संभव हो पाता है। शनि एक ओर जहां ब्रह्यांड का दूसरा सबसे बडा ग्रह है, वहीं दूसरी ओर वायु तत्व का भी कारक होने के कारण इसका प्रभाव व्यापकता में पडता है। शनि गत 30 अप्रैल से धनु राशि के पूर्वाषाढा नक्षत्र पर गौचर करते हुए वक्रि हुए हैं। भारत देश की कुंडली के हिसाब से शनि का उपरोक्त गौचर दक्षिण-पश्चिम दिशा में हो रहा है। वक्र होते ही, इसका पहला प्रभाव कुंभ राशि पर जहां शनि की तीसरी दृष्टि भी जा रही है, पर पडा। यानी उडीसा, पश्चिम बंगाल साइड। पूर्वाषाढा नक्षत्र का स्वामी चूंकि जल है इसलिए भी वक्रि शनि से जल तत्व प्रभावित हुआ और सामने आया फानी।
केतु का साथ, मंगल की दृष्टि प्राकृतिक आपदा का संकेत
शनि गत 30 अप्रैल को वक्रि हुए हैं, जो लगभग 18 सितंबर तक वक्रि रहेंगे। जिस नक्षत्र (पूर्वाषाढा) पर शनि चल रहे हैं, उसी नक्षत्र पर मंगलवत केतु भी आगामी 10 मई की शाम लगभग 7 बजे आ जाएंगे। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त ग्रहों का गौचर पूर्वाषाढा नक्षत्र के चर्तुथ चरण से होगा तथा यह स्थिति लगभग 5 जुलाई तक रहने वाली है। इसके बाद शनि इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में आ जाएंगे, जबकि केतु चौथे चरण में ही बने रहेंगे। यह स्थिति समुद्र तथा तटीय इलाकों में दुर्घटना, फानी जैसा जलीय तूफान एवं तेज हवाओं का कारण बन सकता है।
शनि गत 30 अप्रैल को वक्रि हुए हैं, जो लगभग 18 सितंबर तक वक्रि रहेंगे। जिस नक्षत्र (पूर्वाषाढा) पर शनि चल रहे हैं, उसी नक्षत्र पर मंगलवत केतु भी आगामी 10 मई की शाम लगभग 7 बजे आ जाएंगे। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त ग्रहों का गौचर पूर्वाषाढा नक्षत्र के चर्तुथ चरण से होगा तथा यह स्थिति लगभग 5 जुलाई तक रहने वाली है। इसके बाद शनि इसी नक्षत्र के तीसरे चरण में आ जाएंगे, जबकि केतु चौथे चरण में ही बने रहेंगे। यह स्थिति समुद्र तथा तटीय इलाकों में दुर्घटना, फानी जैसा जलीय तूफान एवं तेज हवाओं का कारण बन सकता है।
ग्रहों की स्थिति के आधार पर आगामी दिनों में भारत के दक्षिण-पश्चिम के क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व (उडीसा, पश्चिम बंगाल) के क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव पड सकता है। आगामी 7 मई से मंगल भी अपनी राशि बदलकर मिथुन राशि में आ जाएंगे, जहां एक ओर पहले से राहू विराजमान हैं, जो अंगारकारक योग (22 जून तक) का निर्माण करेंगे। वहीं दूसरी ओर शनि एवं मंगल समसप्तक दष्टि में आमने-सामने आ जाएंगे। यह स्थिति तेज गर्मी का कारण बनेगी साथ ही जंगलों में आगजनी पैदा कर सकती है। कारखानों, फेक्ट्री में अग्नि के माध्यम से हानी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है अतः उपरोक्त अवधि में अधिक सर्तकता आवश्यक होगी।
प्रारंभिक मानसून के दौरान अधिक पानी, ओला, तूफान संभव
ग्रहों की उपरोक्त स्थिति के आधार पर यह भी आकलन बनता है कि जून माह के प्रारंभिक तीन सप्ताह में मानसून के दौरान दक्षिण-पश्चिम की ओर से तेज हवाएं चल सकती हैं, जो जनधनहानि का कारण बन सकती हैं। साथ ही भारत के दक्षिण-पश्चिम के तटीय भागों में उपरोक्त समय में मछुआरों एवं अन्य लोगों को सर्तकता रखनी चाहिए। भारत के कुछ हिस्सों में गत वर्षों की तुलना में समय से पूर्व मानसून की दस्तक, ओला तथा तूफान प्रकोप भी संभव है।
ग्रहों की उपरोक्त स्थिति के आधार पर यह भी आकलन बनता है कि जून माह के प्रारंभिक तीन सप्ताह में मानसून के दौरान दक्षिण-पश्चिम की ओर से तेज हवाएं चल सकती हैं, जो जनधनहानि का कारण बन सकती हैं। साथ ही भारत के दक्षिण-पश्चिम के तटीय भागों में उपरोक्त समय में मछुआरों एवं अन्य लोगों को सर्तकता रखनी चाहिए। भारत के कुछ हिस्सों में गत वर्षों की तुलना में समय से पूर्व मानसून की दस्तक, ओला तथा तूफान प्रकोप भी संभव है।