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क्या क्रिकेट में गैर खिलाड़ी कप्तान संभव है?

फुटबॉल और हॉकी जैसे लोकप्रिय खेलों की कई अच्छी बातें अब क्रिकेट में भी शामिल की जाने लगी है। जैस कम समय वाले मैच को टी-20 क्रिकेट के रुप में शुरू किया गया। मैच रैफरी की अवधारणा भी क्रिकेट में फुटबॉल से ही ली गई। ब्रॉडकास्ट के दौरान की जाने वाले कई नए प्रयोग पहले फुटबॉल में आए फिर क्रिकेट में उन्हें शामिल किया गया। क्रिकेट का मौजूदा कलेवर देख कर ऐसा लगता है कि मैदान पर खेलने वाले खिलाड़ियों को सिर्फ उनके खेलने के हुनर के आधार पर परखा जाना चाहिए ना कि मैदान या उसके बाहर के फैसले के लिए एक नॉन प्लेईंग कप्तान होना चाहिए जो सभी तरह के दबावों से मैदान वाले खिलाड़ियों को मुक्त रखे। चाहे मैच से पहले या बाद में मीडिया से बात करना हो या अंतिम 11 खिलाड़ियों का चयन। मैदान पर लेने गेंदबाजी में किए जाने बदलाव हों या फिर फिल्ड पोज़िशन में बदलाव। यानी शतरंज की तरह चलने वाले इस खेल में सोचने का काम कोई और करे और हुनर के साथ अपनी प्रतिभा दिखाने का काम कोई और। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये क्रिकेट में संभव है और आखिर क्यों ऐसा किए जाने की जरूरत है।

पिछले दिनों क्रिकेट टीम के कप्तान को मैदान के अलावा हुई बातों के लिए जिम्मेदार ठहराने जैसे विवाद सोशल मीडिया पर छाए रहे। ऐसे में क्या ये संभव है कि बजाय 11 खिलाड़ियों में एक कप्तान नियुक्त किया जाए, उसकी जगह पर एक 12वें खिलाड़ी को ये जिम्मेदारी सौंपी जाए जिसके पास कप्तान और कोच जैसे  संयुक्त अधिकार हो, जो मैदान में आकर फील्ड की जमावट भी करे, गेंदबाजों में बदलाव भी करे, बल्लेबाजी क्रम भी तय करे, अंतिम 11 का फैसला भी ले और टॉस करने भी जाए। साथ ही प्री मैच कांफ्रेंस और पोस्ट मैच कांफ्रेस में भी वही टीम की अगुवाई करे।

फुटबॉल के खेल में ये सभी अधिकार कोच के पास होते हैं। फुटबॉल में मैदान पर बनने वाली रणनीति भी कोच की दी हुई होती है और खिलाड़ियों का बदलाव भी। खिलाड़ियों का काम सिर्फ उस रणनीति को ज़मीन पर उतारने का होता है, जो वो अपने दमखम, हुनर, काबिलियत और खेल के अनुभव के आधार पर करते हैं। यानी फुटबॉल में एक ऐसे शख्स को सभी अधिकार दिए गए हैं जो खेलता नहीं है लेकिन नॉन प्लेईंग कप्तान की तरह खेलने के अलावा सभी कुछ करता है। यहां तक की बड़े मैचों में कोच टीम की अगुवाई करते हुए सारी जिम्मेदारी और मीडिया से बातचीत करने का भी काम करता है। हर हार जीत की जिम्मेदारी लेता है।

पिछले कुछ दिनों में टेनिस के एक बड़ी खिलाड़ी ने मीडिया से बात करने के लिए इंकार कर दिया क्योंकि इससे उनकी मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा था और आखिर में उन्हें टूर्नामेंट से नाम भी वापस लेना पड़ा। यानी मौजूदा दौर में खिलाड़ियों को शारीरिक रुप से जितना मजबूत होना होता है उतना ही फ्री उन्हें मानसिक रुप से रखा जाना चाहिए क्योंकि कई तरह के तनाव और दबाव उनके प्रदरश्न पर असर डालते हैं। इसका एक और उदाहरण टी-20 टीम की कप्तानी की जिम्मेदारियों को छोड़ने का फैसला एक बड़े टीम के कप्तान ने लिया। इसकी वजह रही मैदान पर बल्ला चलाने और रन बनाने के अलावा उनके पास कई काम थे जो शायद उन पर कुछ ज्य़ादा ही दबाव डाल रहे हों।

ऐसे स्थितियों से निपटने के लिए क्रिकेट में कुछ बदलाव करने का समय शायद नजदीक आ रहा है औऱ इसकी शुरुआत टी-20 क्रिकेट से ही हो सकती है। जब 12वें नॉन प्लेईंग कप्तान के रुप में किसी अनुभवी क्रिकेट खिलाड़ी को खेलने के अलावा तमाम जिम्मेदारियां सौंपी जाएं और हमारे खिलाड़ियों को सिर्फ गेंद,  बल्ले और फील्डिंग के हुनर से ही बात करने दी जाए ताकि वो अपना सौ फीसदी दे सके और मानसिक रुप से फ्री रहते हुए क्रिकेट प्रेमियों को अपने खेल से और प्रभावित कर सकें।

लेख : विवेक शर्मा