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घ‍िनौनी सोच से लड़ता बाप और रोंगटे खड़े कर देने वाला सच! निशा पाहुजा की ‘टू किल ए टाइगर’ को सलाम


ऑस्‍कर अवॉर्ड 2024 के नॉमिनेशन की घोषणा हो चुकी है। एक ओर जहां 13 नॉमिनेशन के साथ क्रिसटोफर नोलन की ‘ओपेनहाइमर’ का एकेडमी अवॉर्ड्स में डंका बज रहा है, वहीं चर्चा डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म ‘टू किल ए टाइगर’ की भी है। बीते साल 2023 में गुनीत मोंगा की ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ ने बेस्‍ट डॉक्‍यूमेंट्री शॉर्ट फिल्‍म का ऑस्‍कर अवॉर्ड जीता था। दुनिया के सबसे प्रतिष्‍ठित फिल्‍म अवॉर्ड्स में भारतीय फीचर फिल्‍में भले ही जगह नहीं बना पा रही हों, लेकिन हिंदुस्‍तान की कहानी कहती डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍मों ने तिरंगे की शान जरूर रखी है। बेस्‍ट डॉक्‍यूमेंट्री फीचर कैटेगरी में नॉमिनेट हुई ‘टू किल ए टाइगर’ को भारतीय मूल की निशा पाहुजा ने डायरेक्‍ट किया है। साल 2022 में इस डॉक्‍यूमेंट्री का प्रीमियर टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ था। वैश्‍व‍िक मंच पर इस डॉक्‍यूमेंट्री को पहचान मिलना, ना सिर्फ फिल्‍मेकर्स के लिए एक प्रेरणा है, बल्‍कि यह जिस सच्‍ची घटना पर आधारित है, वह हमारे देश की एक स्‍याह सच्‍चाई है।
‘टू किल ए टाइगर’ झारखंड के एक परिवार की सच्‍ची कहानी है। यह एक किसान और उससे बढ़ता एक पिता, रंजीत की लड़ाई की बानगी है, जो अपनी 13 साल की बेटी को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ता है। उनकी बेटी का पहले अपहरण किया गया और फिर तीन लोगों ने उस मासूम के साथ दुनिया का सबसे जघन्‍य अपराध किया। उसकी अस्‍म‍िता के साथ ख‍िलवाड़ किया।
बेटी का साथ देने के लिए पूरे गांव से लड़ बैठा बाप – दुष्‍कर्मियों को सजा दिलाने से कहीं अध‍िक यह लड़ाई बेटी का साथ देने की है। रंजीत, पुलिस के पास जाते हैं। आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया जाता है। लेकिन यह राहत कुछ ही दिनों के लिए होती है, क्योंकि गांववाले और उनके नेता इस परिवार पर आरोप वापस लेने के लिए दबाव बनाते हैं। इस डॉक्‍यूमेंट्री के प्रोड्यूसर कॉर्नेलिया प्रिंसिपे और डेविड ओपेनहेम हैं।
हमारे समाज की जहरीली सोच दिखाती है ‘टू किल ए टाइगर’ – निशा पाहुजा की ‘टू किल ए टाइगर’ आधुनिक भारतीय समाज की उस जहरीली सोच को बयां करती है, जिसमें कुंठ‍ित मर्दानगी और बलात्कार के कारण हमारी संस्कृति हर दिन तार-तार होती है। हमें निशा पाहुजा का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिन्‍होंने अपनी फिल्‍म के जरिए देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की चीख-पुकार को वैश्‍व‍िक मंच तक पहुंचाया है। विश्‍व गुरु बनने की कवायद कर रहे हिंदुस्‍तान का काला सच यह भी है कि यहां बलात्कार की 90 फीसदी घटनाएं दर्ज नहीं की जाती हैं। एक ऐसा देश, जहां करीब हर बीस मिनट में इंसानियत के चीथड़े उड़ाए जाते हैं। तथ्‍य है कि रेप की जितनी भी घटनाएं दर्ज होती हैं, उनमें से 30% में ही दोष सिद्ध हुआ है।
झारखंड में 2017 में हुआ था यह जघन्‍य अपराध – फिल्‍म में झारखंड के बेरो जिले की जिस घटना को दिखाया है, वह 2017 की है। यह जिला बांग्लादेश सीमा से ज्यादा दूर नहीं है। 9 अप्रैल की तारीख थी, जब 13 साल की बच्‍ची एक शादी से घर लौट रही थी। अब इस बच्‍ची की उम्र 18 साल से अध‍िक है और डॉक्‍यूमेंट्री में उसकी पहचान उजागर की गई है।
गांववालों ने कहा- बलात्‍कारियों से कर दो शादी – यहां एक पिता के तौर पर रंजीत की लड़ाई सिर्फ कानूनी नहीं है। उसका संघर्ष पूरे गांव की सोच के साथ है, जहां कई लोग सोचते हैं कि तीनों आरोपियों के खिलाफ इस तरह के मुकदमे से उनके समुदाय और खासकर रंजीत के परिवार को शर्मिंदगी होगी। गांव वाले कहते हैं कि रेप की घटना के बाद, कोई भी रंजीत की बेटी से शादी नहीं करेगा, और ऐसे में सबसे उचित यही है कि सबकुछ भुलाकर बच्‍ची की शादी उन बलात्कारियों में से एक से कर दी जाए। इन स्थानीय लोगों में महिलाएं भी शामिल हैं, जो लगातार रंजीत और उसके परिवार को ही दोषी ठहराते हैं। तर्क यह भी दिया जाता है कि लड़के तो लड़के ही रहेंगे और उन्हें माफ कर दिया जाना चाहिए।
इसलिए ऑस्‍कर के लायक है ‘टू किल एक टाइगर’ – ‘टू किल ए टाइगर’ में निशा पाहुजा ने पीड़ित की के इस दर्द से उबरने की प्रक्रिया की बजाय उसके पिता के संघर्ष पर फोकस किया है, जो अपनी बेटी को न्‍याय दिलाने के लिए मिटने तक को तैयार है। वह ना सिर्फ एक पितृसत्तात्मक सोच और धर्मनिष्ठ समाज का सामना कर रहा है, बल्‍क‍ि उन परिस्‍थ‍ितियों से भी जूझ रहा है, जहां उसके लिए गुजारा निकालना भी मुश्‍क‍िल है। ‘टू किल ए टाइगर’ में ऐसे कई पल हैं, जहां ऐसा लगता है कि रंजीत अब हार जाएगा, खासकर जब उसके परिवार पर सामूहिक तौर पर हमला होता है, लेकिन उसकी दृढ़ता को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
फिलहाल, OTT पर नहीं है To Kill A Tiger – यह डॉक्‍यूमेंट्री अपनी बेहतरी एडिटिंग, सहज और सरल अंदाज में बात रखने के साथ-साथ असुरक्षा, गुस्‍सा और संघर्ष जैसे भाव को दिखाने के लिए भी तारीफ के काबिल है। हालांकि, अभी यह डॉक्‍यूमेंट्री फिल्‍म किसी भी OTT प्‍लेटफॉर्म पर उपलब्‍ध नहीं है, लेकिन जब भी स्‍ट्रीम हो, इसे देख‍िएगा जरूर।