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बच्‍चों को रुला देती है अस्‍थमा की बीमारी, मां-बाप की सूझबूझ आ सकती है काम


हर साल 2 मई को विश्‍व अस्‍थमा दिवस मनाया जाता है। आज बढ़ते प्रदूषण की वजह से अस्‍थमा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और बच्‍चों की इम्‍यूनिटी कमजोर होने की वजह उन्‍हें ये बीमारी तेजी से अपनी चपेट में ले रही है। चाइल्ड अस्थमा सांस से संबंधित स्थिति है जो दुनिया भर के लाखों बच्चों को प्रभावित करती है। बच्चों को यह बीमारी विशेष रूप से कठिन लग सकती है क्योंकि इसमें सांस लेने में समस्या, छाती में जकड़न, खांसी और घरघराहट के कारण उनके लिए खेलना, व्यायाम करना या अन्य गतिविधियों में शामिल होना मुश्किल हो सकता है।
इस आर्टिकल में भुवनेश्‍वर के मणिपाल हॉस्‍पीटल की पल्‍मोनोलॉजिस्‍ट डॉक्‍टर वसुनेथ्रा कसरगोड़ से जानेंगे कि बच्‍चों को इस बीमारी से बचाने के लिए पैरेंट्स क्‍या कर सकते हैं।
बच्‍चों में ज्‍यादा है अस्‍थमा का खतरा – बैंगलोर में लगभग 50 पर्सेंट बच्‍चों को अस्‍थमा है लेकिन अच्छी बात यह है कि उनमें से 90% वयस्क होने पर ठीक हो जाते हैं। डॉक्‍टर कहती हैं कि अस्‍थमा को तुरंत मेडिकल अटेंशन की जरूरत होती है। सबसे पहले डॉक्‍टर को बच्‍चे में इस बीमारी का निदान करना होता है। इसमें पल्‍मोनरी फंक्‍शन टेस्‍ट, एलर्जी से संबंधित खून की जांच जिसमें इम्‍यूनोग्‍लोबुलिन ई और ईसिनोफिल काउंट शामिल हैं।
बच्चों में बढ़ रहा अस्थमा, जानें लक्षण- अस्‍थमा के इलाज में सबसे प्रमुख होता है इनहेलर का इस्‍तेमाल। यह अस्‍थमा का इलाज करने और इससे बचाने में अहम भूमिका निभाता है। कई लोग इसे टैब मानते हैं और सोचते हैं कि इनहेलर पूरी जिंदगी लेना पड़ता है जबकि ऐसा नहीं है। अस्थमा रुक-रुक कर या लगातार हो सकता है। इसलिए, इनहेलर्स की आवश्यकता लक्षणों के अनुसार आंतरायिक है जो मौसमी है, या लगातार है, जिसमें इनहेलर की जरूरत पूरे साल हो सकती है।
अस्‍थमा के ट्रिगर्स से बचाएं- बच्‍चों को अस्‍थमा के ट्रिगर से बचाना भी अहम है। बच्‍चों को बाहर के एलर्जी वाले प्रदूषकों जैसे कि धुएं और पर्यावरण में मौजूद प्रदूषकों को सांस से लेने से बचाना जरूरी है। आप बच्‍चे को नियमित एक्‍सरसाइज करवाएं और हेल्‍दी लाइफस्‍टाइल अपनाएं। बच्‍चे में मोटापे को कंट्रोल करें क्‍योंकि यह भी अस्‍थमा का कारक बन सकता है।
बच्चों में अस्थमा के उपाय – बच्‍चों में अस्‍थमा एक मुश्किल स्थिति हो सकती है जिसे मैनेज और मॉनिटर करने की जरूरत होती है। जेनेटिक, पर्यावरणीय कारकों, एलर्जी, श्‍वसन संक्रमण, मोटापे, तनाव और फिजिकल एक्टिविटी की कमी की वजह से अस्‍थमा हो सकता है। इसके अलावा ऐसे कई तरीके भी हैं जो बच्‍चों में इस बीमारी के खतरे को कम कर सकते हैं और लक्षणों को कंट्रोल कर सकते हैं। बच्‍चे के लक्षण बढ़ने या गंभीर होने पर पैरेंट्स उसे तुरंत डॉक्‍टर के पास लेकर जाएं।
इस बीमारी से बचाव के लिए आप बच्‍चे के आसपास धूम्रपान ना करें और उसे मोटापे से भी बचाएं। ये दोनों चीजें अस्‍थमा पैदा करने में अहम योगदान दे सकते हैं।