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आधी रात को उठने के बाद सोने का नाम नहीं लेता बच्‍चा, कैसे बनाएं Toddler के लिए स्‍लीपिंग पैटर्न

एक साल के होने से पहले बच्‍चे का स्‍लीपिंग पैटर्न समझना पैरेंट्स के लिए काफी मुश्‍किल होता है। हालांकि, एक साल के बाद बच्‍चा गहरी नींद लेना शुरू कर देता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार एक से तीन साल की उम्र के बच्‍चों को टॉडलर कहा जाता है। टॉडलर को 11 से 14 घंटे की नींद की जरूरत होती है। वो रात के साथ-साथ दिन में भी इतनी नींद पूरी कर सकते हैं। हालांकि, पैरेंट्स कहते हैं कि बच्‍चों को रात को सुलाना उनके लिए सबसे ज्‍यादा मुश्किल होता है।
​बच्‍चों को स्‍ली‍प ट्रेनिंग : बच्‍चे आधी रात को जाग जाते हैं और फिर दोबारा सोने में आनाकानी करते हैं जिससे पैरेंट्स की नींद भी खराब होती है। इस उम्र के बच्‍चों को बुरे सपने या रात को डर लगने की भी दिक्‍कत रहती है और इस चक्‍कर में पैरेंट्स के लिए बच्‍चों को सुलाना एक थका देने वाला काम बन जाता है।
​किस उम्र में देनी चाहिए स्‍लीप ट्रेनिंग :
स्‍लीप ट्रेनिंग शुरू करने के लिए कोई सही उम्र नहीं होती है। हर बच्‍चे का विकास अलग तरह से होता है और उसकी जरूरत भी एक-दूसरे से काफी अलग होती हैं। हो सकता है कि बच्‍चे को सुलाने का जो तरीका 5 महीने के बच्‍चे पर चलता था, वो टॉडलर पर काम न करे।
दो महीने पूरे होने के बाद ही शिशु को स्‍लीप ट्रेनिंग देनी शुरू कर देनी चाहिए। हालांकि, चार से नौ महीने का बच्‍चा खुद सो सकता है इसलिए स्‍लीप ट्रेनिंग शुरू करने के लिए यह उम्र सबसे सही होती है। वहीं एक से तीन साल के बच्‍चे को भी स्‍लीप ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है।
​फेडिंग मैथड : इसमें जब बच्‍चा सुस्‍त लगने लगे तो उसे बिस्‍तर पर लिटाकर गले लगाकर या प्‍यार से उसकी पीठ सहलाकर सुलाया जाता है। जब आपको लगे बच्‍चा सोने लगा है तो आप कमरे से बाहर चले जाएं। अगर आपके बाहर निकलने पर बच्‍चा चिड़चिड़ा हो रहा है, तो पांच मिनट और उसके पास रूक जाएं। जब तक बच्‍चा सोता नहीं है, आप उसके पास ही रहें।
​कैंप इट आउट मैथड : इसके अलावा कैंप इट आउट मैथड से भी टॉडलर को स्‍लीप ट्रेनिंग दी जा सकती है। इसमें पैरेंट्स बच्‍चे को सोने के लिए कमरे में सैटल होने में मदद करते हैं और फिर धीरे-धीरे बच्‍चे से दूर जाते हैं। इसमें टच, दूध पिलाना या गले लगाकर सुलाने की आदत को दूर रखा जाता है। इससे बच्‍चा धीरे-धीरे अपने आप सोना सीख जाता है।
​बेडटाइम फेडिंग मैथड : अगर बच्‍चे को नींद नहीं आ रही है, तो वो बिस्‍तर पर भी नहीं जाएगा। इसलिए इस तरीके में बच्‍चे को नींद आने पर मिलने वाले संकेतों को समझा जाता है और उसी पैटर्न में बेडटाइम को एडजस्‍ट किया जाता है। इससे बच्‍चे को सुलाने में लगने वाला समय कम हो जाता है और थोड़े समय बाद बच्‍चा अपने आप ही सोना शुरू कर देता है।