
वाईफाई राउटर के पीछे USB पोर्ट दिया जाता है। अगर आप भी फाइल ट्रांसफर जैसे कामों के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं तो सावधान हो जाएं। इन पोर्ट के जरिए हैकर्स आपके राउटर पर सेंध लगा सकते हैं। वाई-फाई पीछे दिए गए पोर्ट का इस्तेमाल करके आप साइबर खतरे का शिकार हो सकते हैं। ये पोर्ट पुराने प्रोटोकॉल पर काम करते हैं और एनक्रिप्टेड नहीं होते। इस कारण हैकर्स आसानी से आपके राउटर पर कब्जा कर सकते हैं। हम आपको वाई-फाई राउटर के पीछे लगे पोर्ट से होने वाले खतरों के बारे में बता रहे हैं।
WiFi राउटर के जरिए हैकर्स आपके घर में घुस सकते हैं। क्या आपको पता है कि राउटर के पीछे लगे पोर्ट्स का इस्तेमाल करने से भी आप साइबर हमले का शिकार हो सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वाई-फाई राउटर के पीछे लगे USB पोर्ट्स, पुराने और असुरक्षित सिस्टम पर काम करते हैं। इसके जरिए साइबर अपराधी आपके नेटवर्क पर मौजूद जरूरी जानकारी आसानी से चुरा सकते हैं। राउटर के पीछे लगे USB पोर्ट का इस्तेमाल करने से पहले आपको उससे होने वाले खतरे के बारे में जरूर जान लेना चाहिए।
इन कामों के लिए राउटर में USB पोर्ट इस्तेमाल – आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ज्यादातर वाई-फाई राउटर के पीछे एक USB-A पोर्ट दिया गया होता है। इसका इस्तेमाल कई कामों जैसे- नेटवर्क पर फाइलों को शेयर करने, छोटे डिवाइस चार्ज करने या कंप्यूटर का बैकअप किसी एक्सटर्नल ड्राइव पर लेने के लिए किया जा सकता है। राउटर पर USB पोर्ट का होना सुविधाजनक लग सकता है, लेकिन ये सुरक्षित नहीं होते हैं।
पोर्ट इस्तेमाल करने से सुरक्षा का खतरा – राउटर के पीछे लगे पोर्ट से हैकर्स सेंध लगा सकते हैं और आपका पूरा राउटर हैक हो सकता है। USB पोर्ट, हैकर्स और आपके बीच की कमजोर कड़ी बन सकता है। इस पोर्ट का इस्तेमाल करना जोखिम भरा है, खासकर जब इससे बेहतर और सुरक्षित ऑप्शन मौजूद हैं।
FTP सिस्टम वाले पोर्ट होते हैं खतरनाक – राउटर पर लगे पोर्ट पुराने प्रोटोकॉल या सिस्टम पर काम करते हैं। इसका मतलब FTP (File Transfer Protocol) से है। यह 1970 का प्रोटोकॉल है, जिसमें किसी भी तरह का एन्क्रिप्शन नहीं होता है। इसमें पासवर्ड भी सादे टेक्स्ट में भेजे जाते हैं। FTP की जगह अब HTTPS प्रोटोकॉल का इस्तेमाल होता है। लेकिन, Asus RT-BE86U जैसे नए राउटर में भी ऐसे पोर्ट होते हैं, जो FTP का इस्तेमाल करते हैं।
इसके अलावा, SMBv1 (Server Message Block version 1) पर भी ध्यान देना चाहिए। इस प्रोटोकॉल का इस्तेमाल 2017 में WannaCry रैंसमवेयर ने किया था, जिसने दुनिया भर में लाखों सिस्टम को संक्रमित किया था। माइक्रोसॉफ्ट तमाम कंपनियों और आईटी प्रोफेशनलों से इन पुराने प्रोटोकॉल को बंद करने का आग्रह कर रही है। इनका इस्तेमाल कम हुआ है, लेकिन ये अभी भी लोगों के घरों में लगे डिवाइस में मौजूद हैं।
परफॉर्मेंस में आती है खराबी – आपको पता ही होगा कि राउटर का मुख्य काम वायरलेस नेटवर्क बनाना और उसे मैनेज करना है। जब राउटर अपने मुख्य काम से हटकर कुछ और करने लगता है, तो उसकी परफॉर्मेंस खराब हो जाती है। अधिकांश राउटर में इतनी प्रोसेसिंग पावर नहीं होती कि वे एक साथ अपने सामान्य नेटवर्किंग काम और फाइल ट्रांसफर दोनों को संभाल सकें।
धीमा हो जाता है वाई-फाई – एक साथ कई काम होने से आपका वाई-फाई धीमा हो सकता है। लेटेंसी स्पाइक्स की दिक्क्त आ सकती है। कनेक्शन ड्रॉप्स हो सकते हैं। फाइल ट्रांसफर फेलियर हो सकते हैं। 2013 के कुछ आर्टिकल्स में बताया गया है कि USB 3.0 स्टैंडर्ड 2.4 GHz वाई-फाई सिग्नल में बाधा डालता है। हालांकि, तब से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार हुआ है।
ओवरहीटिंग की आती है समस्या – राउटर के यूएसबी पोर्ट का इस्तेमाल करने से ओवरहीटिंग की समस्या आ सकती है। USB पोर्ट पर लोड पड़ने से हार्डवेयर पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे तापमान बढ़ जाता है। इससे परफॉर्मेंस कम हो सकती है।
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