
अगर आपका बच्चा अब टीनएज में है और वह बार-बार आपसे जिद करता है कि उसे अपने फैसले खुद लेने की आजादी दी जाए या अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने दी जाए, तो ऐसे में आपको पेरेंटिंग कोच पुष्पा शर्मा की ये सलाह जरूर सुननी चाहिए।
टीनएज में बच्चों को संभालना हर माता-पिता के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है। इस उम्र में बच्चे अपनी सोच और फैसलों को लेकर ज्यादा कॉन्शियस हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी जिंदगी में कोई दखल न दे, न ही पढ़ाई में, न दोस्तों में और न ही उनके चॉइसेज में। उन्हें लगता है कि अब वे छोटे नहीं रहे, इसलिए उन्हें पूरी आजादी मिलनी चाहिए। ऐसे में पेरेंट्स के लिए सबसे मुश्किल बात यही होती है कि आजादी और अनुशासन के बीच सही संतुलन कैसे बनाया जाए।
इसी बैलेंस को समझने के लिए आज हम पेरेंटिंग कोच पुष्पा शर्मा से जानेंगे कि टीनएजर बच्चों को कितनी आजादी देना सही है और इस समय किन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। इन बातों को समझकर पेरेंट्स अपने टीनएजर बच्चे को किसी गलती या गलत दिशा में जाने से भी बचा सकते हैं, वो भी बिना किसी तकरार या तनाव के।तो चलिए जानते हैं विस्तार से।
सभी माता-पिता के लिए टीनएज है मुश्किल – इंस्टाग्राम वीडियो में पेरेंटिंग कोच पुष्पा शर्मा कहती हैं कि हर माता-पिता के लिए 12 से 16 साल की उम्र सबसे चुनौतीपूर्ण दौर होता है, क्योंकि इस उम्र में बच्चे एक ऐसे नाज़ुक मोड़ पर होते हैं, जहां वे न पूरी तरह बच्चे रहते हैं और न ही पूरी तरह बड़े बन पाते हैं।
आजादी देनी चाहिए लेकिन… – एक्सपर्ट कहती हैं हालांकि इस दौर में भी टीनएज बच्चों को आजादी देनी चाहिए, लेकिन उन्हें अब भी सही दिशा और मार्गदर्शन की जरूरत होती है। इसलिए, माता-पिता को इस उम्र में अपने बच्चों को फीडम देते वक्त कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
टीनएज में फ्रीडम कोई रिवॉर्ड नहीं – एक्सपर्ट कहती हैं कि सबसे पहला तो पेरेंट्स का ये समझना जरूरी है कि फ्रीडम कोई रिवॉर्ड नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। टीनएज में बच्चा तब आजादी डिजर्व करता है, जब वह अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाना शुरू करता है, जैसे- अगर वह अपने स्कूलवर्क समय पर करे और अन्य कमिटमेंट्स को पूरा करता है या घर के बेसिक रूल्स फॉलो करता है, तो उसे धीरे-धीरे डिसीजन मेकिंग में शामिल करना चाहिए।
टीनएजर की राय लें, लेकिन आखिरी फैसला आपका हो – वे आगे बताती हैं कि दूसरा, बच्चे की राय की इज्जत करें, लेकिन साथ ही बाउंड्रीज हमेशा क्लियर रखें। 12 से 16 साल की उम्र में बच्चों को अक्सर लगता है कि वे सब कुछ समझ गए हैं, लेकिन इस समय उनकी इमोशनल मैच्योरिटी अभी पूरी तरह विकसित नहीं होती। इसलिए उनकी बात ध्यान से सुनें, उन्हें अपनी राय रखने का मौका दें, मगर अंतिम फैसला हमेशा पेरेंट्स का होना चाहिए।
बच्चों को बुरी संगति से ऐसे बचाएं – एक अन्य वीडयो में एक्सपर्ट ने बच्चों को बुरी संगति से बचाने के लिए भी टिप्स दिए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे दोस्त, जो तुम्हें अच्छे काम करने से रोकें या फिर अपने टीचर्स और पेरेंट्स की बात न मानने के लिए कहें, तो ऐसी फ्रेंडशिप पर तुरंत अलर्ट हो जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे दोस्त धीरे-धीरे तुम्हें गलत रास्ते पर ले जा सकते हैं।
Home / Lifestyle / टीनएजर को कितनी आजादी देना है सही? पेरेंटिंग कोच ने बताया बैलेंस बनाने का तरीका, ताकि न बिगड़े बच्चे और न हो आपसे दूर
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