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 पृथ्वी के सितंबर में नष्ट होने की फिर आशंका ? धरती की ओर बढ़ रहा है प्लेनेट-X

l_meteorite-1472527468कल्पना कीजिए पृथ्वी से कई गुना बड़ा कोई उल्का पिंड अंतरिक्ष में अपने परिपथ में घूम रहा है। घूमते-घूमते यह पृथ्वी की कक्षा के काफी करीब आ जाए, तो क्या होगा? यकीनन वह धरती के  ताकतवर गुरुत्वीय बल की वजह से इसकी सतह से टकराएगा। टक्कर के बाद होने वाला विनाश क्षुद्र ग्रह के आकार और टकराने की गति पर निर्भर करता है। एक अनुमान के मुताबिक 47 हजार ऐसे क्षुद्रग्रहों को अभी तक पहचाना जा चुका है, जो कभी भी धरती से टकरा सकते हैं। इसलिए समय-समय पर धरती के नष्ट होने की आशंका व्यक्त की जाती रही है। इसी कड़ी में खगोलविदों के एक समूह ने सितंबर में एक ग्रह प्लेनेट एक्स के धरती से टकराने        की आशंका जाहिर की है।

 

क्या कहता है नासा

अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा का कहना है कि 1.5 मील से बड़ा एक क्षुद्रग्रह वैश्विक स्तर पर घातक नुकसान का कारण बन सकता हैं। हालांकि वह किसी प्लेनेट एक्स या नाइबीरु नाम के ग्रह के  अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। नासा के अनुसार पिछले दशक में खगोलविदों ने धरती की तरफ बढ़ रहे एक ऑब्जेक्ट को जरूर ट्रैक किया था, लेकिन वह प्लेनेट एक्स नहीं था।

 

l_NASA-1472527334रिसर्चरों का दावा, धरती से 10 गुना भारी है पृथ्वी की ओर बढ़ रहा प्लेनेट-एक्स

क्या होता है ब्लड मून 

चंद्रमा के धरती के करीब आने की वजह से उसे रोशनी सीधे सूर्य से मिलने की बजाय धरती की परावर्तित रोशनी अधिक मात्रा में मिलने लगती है। इसकी वजह से चंद्रमा लाल दिखाई देता है। खगोल विज्ञान में इस घटना को ब्लड मून के नाम से जाना जाता है।

 

ब्लड मून के वीडियो से शुरू हुई बहस 

खगोलविदों के एक समूह ने हाल ही में ‘ब्लड मून’ का एक वीडियो फुटेज कैप्चर करके यू-ट्यूब पर पोस्ट किया। इस वीडियो के अनुसार में इस घटना को धरती खत्म होने का लक्षण बताया गया। इसके अनुसार एक छिपा हुआ ग्रह सितंबर में पृथ्वी से टकरा सकता है। इस बार पहली बार इसका संबंध ब्लड मून से जोड़ा गया है। इसमें दावा किया गया है कि कई बार चांद लाल दिखता है, इसका  कारण चांद पर प्लेेनेट एक्स की छाया पडऩा है। एक नई थ्योरी के सामने आने के बाद इस बहस ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है कि क्या धरती सितंबर में खत्म हो जाएगी। प्लेनेट एक्स को नाइबीरु भी कहा जाता है।

 

1900 के दशक में थ्योरी को मिली हवा 

एस्ट्रोनामर पेर्सीवल लॉवेल ने 1900 के दशक में एक्स प्लेनेट की थ्योरी को हवा दी। उन्होंने वर्षों तक इस अज्ञात ग्रह पर रिसर्च किया। हालांकि वे प्लेनेट के बारे मेें बहुत पुख्ता तरीके से नहीं कुछ कह सके। लेकिन उससे 1930 में प्लूटो को खोजने में मदद मिली ।

 

पहले भी पृथ्वी की कक्षा में आते रहे हैं उल्का पिंड l_Earth-1472528288

2015 में क्रिसमस ईव‘ 

‘क्रिसमस ईव’ नाम के क्षुद्र ग्रह को लेकर बहस छिड़ी थी। लेकिन यह धरती से 6.8 लाख मील दूर से निकल गया। उस वक्त नासा जेट प्रोपल्सन लैब की तरफ से चेतावनी भी जारी की गई थी।

 

 

2013 में रूस में गिरने वाला था आग का गोला 

फरवरी 2013 में एक विशाल आग का गोला रूस के ऊपर गिरने वाला था। इसका वजन लगभग 11,000 टन था। लेकिन धरती की सतह के साथ टकराने से पहले ही ही जलकर राख हो गया। इसकी वजह से जो शॉकवेव पैदा हुई उसने सभी इमारतों को हिला डाला था। इस घटना में 1,000 से अधिक लोग घायल हुए थे।

 

साइबेरिया में भी गिरा था उल्कापिंड, छाया गुबार

30 जून 1908 सोवियत रूस के साइबेरिया भू-भाग में एक विशालकाय विस्फोट हुआ था। जिसकी पुष्टि बाद में उल्कापात के रूप में हुई। वैज्ञानिकों के अनुसार उल्कापिंड का व्यास 50 से 100 मीटर था। इसके धरती के टकराने से 2,000 वर्ग किलोमीटर  से अधिक भाग का जंगल नष्ट हो गया था। इस आग की लपटें काफी दूर तक देखी गईं थी। आसमान में घूल का गुबार कई दिनों तक छाया रहा था।

 

‘कुछ समय बाद लोग नाइबीरु के बारे में लिखते हैं। वे हमेशा, अगले कुछ सालों में ही धरती के नष्ट हो जाने का दावा करते हैं। लेकिन समय बीत जाता है, धरती खत्म नहीं होती। उनके दावे हमेशा एक जैसे होते हैं बस तारीखें बदली होती हैं। यह महज अफवाह है। ‘

एलन वर्सफील्ड, दक्षिण अफ्रीका की एस्ट्रोफोटोग्राफी के डायरेक्टर और एस्ट्रोनॉमर ।

 

 

 

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