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सिंधु जल समझौते पर डेढ़ घंटे तक चली PM मोदी की हाईलेवल मीटिंग खत्म

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नई दिल्ली: पाकिस्तान की नापाक हरकतों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए मोदी सरकार विचार-विमर्श कर रही है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम आवास पर हाईलेवल मीटिंग बुलाई थी। बैठक करीब एक डेढ़ घंटे तक चली। इस बैठक में विदेश मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारी शामिल हुए। हालांकि जल संसाधन मंत्री उमा भारती इस बैठक में शामिल नहीं थीं। बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पीएम के मुख्य सचिव नृपेंद्र मिश्र शामिल थे। इसके अलावा इन दोनों मंत्रालयों के अन्य अधिकारी भी शामिल हुए।

सूत्रों के मुताबिक बैठक में संधि के फायदे और नुकसान पर चर्चा हुई। बता दें कि यह संधि 56 साल पहले की गई थी जिसके तहत भारत और पाकिस्तान छह नदियों का पानी बांटते हैं। भारत में लगातार संधि को रद्द करने की मांगें हो रही हैं ताकि इस हफ्ते की शुरुआत में उरी में हुए आतंकी हमले को देखते हुए पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जा सके।
‘तुरंत समझौता रद्द करे भारत’
विदेश मामलों के जानकार ब्रह्मचेलानी का मानना है कि भारत को बिना वक्त गवाए 1960 में हुए सिंधु नदी जल समझौते को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर पाकिस्तान का बड़ा इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान में बहती है। भारत की ओर से सिंधु नदी जल समझौता रद्द किए जाने पर पाकिस्तान को दिया जाने वाला सिंधु नदी का पानी रोक दिया जाएगा। सिंधु नदी को पाकिस्तान की जीवन रेखा कहा जाता है। सिंधु नदी पर ही पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था और खेती टिकी है।
1960 में हुआ था समझौता
1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी शासक अयूब खान में समझौता हुआ था। इसके तहत सिंधु बेसिन में बहने वाली छह नदियों में से सतलुज, रावी और ब्यास पर तो भारत का पूर्ण अधिकार है। वहीं पश्चिमी हिस्से की सिंधु, चेनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है।
संधि तोड़ने पर भारत के सामने चुनौती
पहली नजर में तो ये लगता है कि समझौता तोड़ने का फैसला पाकिस्तान को प्यासा मार सकता है लेकिन ये इतना आसान भी नहीं है। समझौते में तय हुआ था कि भारत सिंधु, झेलम और चिनाब पर बांध नहीं बनाएगा। जिसकी वजह से भारत के सामने दिक्कत ये है कि पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों का पानी रोकने के लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगी जिसमें बहुत पैसा और वक्त लगेगा। इससे विस्थापन की समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है और पर्यावरण भी प्रभावित होगा.यानी फौरी तौर पर पाकिस्तान इससे प्रभावित नहीं होगा।
रावी और झेलम का पानी भी रोका जाएगा!
गौरतलब है कि 1948 में दोनों देशों का बंटवारा होने के कुछ महीने बाद ही भारत ने सिंधु नदी का पानी रोक दिया था। इसके लिए पाकिस्तान को 1953-1960 तक मेहनत करनी पड़ी। पाकिस्तान के सालों तक गिड़गिड़ाने के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत के साथ सिंधु नदी जल समझौता हुआ। तब से अब तक पाकिस्तान इस पानी को धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है। पाकिस्तान के लिए इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि रावी और झेलम नदियां भी भारत से होकर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में जाती हैं। अगर सिंधु नदी जल समझौता रद्द हुआ तो रावी और झेलम नदियों का पानी भी रोका जा सकता है, ऐसा होने से पाकिस्तान की कृषि व्यवस्‍था चौपट हो जाएगी।

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