सियोल में हुई NSG मेंबर्स की मीटिंग के बाद अमेरिका ने अहम बयान दिया।
नई दिल्ली/वाशिंगटन.न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में भारत की एंट्री पर अमेरिका ने कहा है कि हम एक कदम आगे बढ़े हैं। पिछले दिनों सिओल में हुई मीटिंग के बाद एक अमेरिकी अफसर ने उम्मीद जताई कि इस साल के आखिर तक भारत को एनएसजी की मेंबरशिप मिल जाएगी। बता दें कि अमेरिका समेत दुनिया के 38 देशों ने इस मुद्दे पर भारत का सपोर्ट किया था। लेकिन चीन के विरोध की वजह से भारत को एनएसजी मेंबरशिप नहीं मिल सकी थी।
क्या कहा अमेरिकी अफसर ने….
– नाम न बताए जाने की शर्त पर इस अफसर ने कहा- हमें पूरा यकीन है कि हम आगे बढ़ रहे हैं। उम्मीद है कि यह प्रोसेस जल्द ही पूरी होगी और 2016 के आखिर तक भारत एनएसजी का मेंबर बन जाएगा।
– इस अफसर ने आगे कहा- कुछ और काम किए जाने की जरूरत है। इसके लिए दिल्ली और वॉशिंगटन दोनों को साथ आना होगा।
सिओल में क्या हुआ था?
– न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) की सिओल में हुई 2 दिन की प्लेनरी मीटिंग में भारत की मेंबरशिप का चीन समेत 10 देशों ने विरोध किया था।
– चीन ने साफ तौर पर कहा था कि नॉन-प्रोलिफिरेशन ट्रीटी (परमाणु अप्रसार संधि) पर साइन करने वाले देशों को ही एनएसजी में शामिल करें।
– इस वजह से भारत की दावेदारी कमजोर पड़ गई। जबकि भारत का यूएस, यूके, फ्रांस और बाकी देशों ने मजबूती से सपोर्ट किया।
स्विट्जरलैंड ने लिया यू टर्न
– इंडियन फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन विकास स्वरूप ने कहा था, “हमें पता है कि एक देश ने कैसे भारत की राह में लगातार रोड़े अटकाए।”
– स्वरूप उस वक्त शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की मीटिंग में नरेंद्र मोदी के साथ मौजूद थे।
इन देशों ने किया था सपोर्ट
– अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, बेल्जियम, बुल्गारिया, कनाडा, क्रोएशिया, सायप्रस, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, एस्तोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस और हंगरी।
– इटली, जापान, कजाखस्तान, आइसलैंड, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, लात्विया, लिथुआनिया, लग्जमबर्ग, माल्टा, मेक्सिको, नीदरलैंड्स, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, रशियन फेडरेशन, सर्बिया, स्लोवाकिया, स्पेन, स्वीडन, यूक्रेन, यूके, फ्रांस और यूएस।
इन देशों ने किया था विरोध
– बताया जा रहा है कि भारत का विरोध करने वालों में चीन, स्विट्जरलैंड, साउथ अफ्रीका, नॉर्वे, ब्राजील, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड और तुर्की शामिल हैं।
भारत के लिए मेंबरशिप क्यों है जरूरी?
– न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और यूरेनियम बिना किसी खास समझौते के हासिल होगी।
– न्यूक्लियर प्लान्ट्स से निकलने वाले कचरे को खत्म करने में भी एनएसजी मेंबर्स से मदद मिलेगी।
– साउथ एशिया में हम चीन की बराबरी पर आ जाएंगे।
क्या है NSG?
– एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप मई 1974 में भारत के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद बना था।
– इसमें 48 देश हैं। इनका मकसद न्यूक्लियर वेपन्स और उनके प्रोडक्शन में इस्तेमाल हो सकने वाली टेक्नीक, इक्विपमेंट और मटेरियल के एक्सपोर्ट को रोकना या कम करना है।
– 1994 में जारी एनएसजी गाइडलाइन्स के मुताबिक, कोई भी सिर्फ तभी ऐसे इक्विपमेंट के ट्रांसफर की परमिशन दे सकता है, जब उसे भरोसा हो कि इससे एटमी वेपन्स को बढ़ावा नहीं मिलेगा।
– एनएसजी के फैसलों के लिए सभी मेंबर्स का समर्थन जरूरी है। हर साल एक मीटिंग होती है।
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