
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यूरोपीय रक्षा स्वतंत्रता की वकालत शुरू कर दी थी और अमेरिकी हथियारों की जगह फ्रांसीसी राफेल को यूरोपीय विकल्प के रूप में पेश किया। हाल ही में उन्होंने बार बार यूरोप को फ्रांस की परमाणु छतरी के नीचे आने का ऑफर दिया है
यूरोप के ज्यादातर देश अमेरिका के पिट्ठू की तरह काम करते हैं। अमेरिका के आदेशों का अच्छे बच्चों की तरह पालन करते हैं। अमेरिका उठने कहता है तो उठते हैं और बैठने कहता है तो बैठ जाते हैं। लेकिन फ्रांस, थोड़ा अलग है। क्योंकि अमेरिका और फ्रांस के बीच का रिश्ता हमेशा से जटिल रहा है। दोनों देश एक दूसरे को सहयोग भी करते हैं तो एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी भी रहते हैं। फ्रांस और अमेरिका, दोनों नाटो के सदस्य हैं, लेकिन फ्रांस, अमेरिका को अपनी विदेश नीति को कंट्रोल करने नहीं देता है। और इसी का सबसे बड़ा उदाहरण है एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट, जिसके ऑफर को फ्रांस से साफ शब्दों में इनकार कर दिया था और राफेल फाइटर जेट बनाकर अमेरिका को मुंहतोड़ जवाब दिया था।
दरअसल, यूरोपीय देश अमेरिकी सुरक्षा की छत्रछाया में रहे हैं, लेकिन फ्रांस इसका उदाहरण है, जिसके लड़ाकू विमान से लेकर परमाणु बम तक स्वतंत्र है। ब्रिटेन को अपना परमाणु बम छूने से पहले भी वॉशिंगटन फोन करना होगा, लेकिन फ्रांस ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है। हालांकि, फ्रांस की विदेश नीति पहले से ही अमेरिकी दवाब से आजाद रही है, लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान फ्रांस ने कई ऐसे कदम उठाए, जिससे उसकी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनी रहे। ये एक बड़ी वजह है कि फ्रांस ने अमेरिकी एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने से इनकार कर दिया।
Home / News / F-35 का ऑफर ठुकराया, NATO सदस्यता को मारी लात… यूरोप के बाकी देशों की तरह अमेरिका का ‘गुलाम’ क्यों नहीं बना फ्रांस?
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