भारत को पिछले तीस सालों में साल 2008 में 10 मीटर राइफल में अभिनव बिंद्रा की बदौलत गोल्ड मेडल नसीब हुआ था। इस बार 120 भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक में दमखम दिखाने पहुंचे हैं। सरकार की ओर से इनके प्रशिक्षण पर खूब मेहनत की गई। जानिये वो दस कारण जिनसे इस बार भारत बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
ट्रेनिंग पर 180 करोड़ खर्च
बीते दो सालों में पहली बार केंद्र सरकार ने ट्रेनिंग पर 180 करोड़ रुपये खर्च किए। जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खिलाडिय़ों को विशेष ट्रेनिंग दी गई।
टॉप स्कीम से फायदा
खेल और युवा मंत्रालय ने टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम शुरू की। बाकायदा 45 करोड़ रुपये का फंड बनाया। 100 खिलाडिय़ों को इसमे अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग दी गई। हर खिलाड़ी पर 1.5 करोड़ रुपये का खर्च आया।
कोच-फिजियो बढ़े
पहली बार खिलाडिय़ों के साथ कोच, फिजियो और ट्रेनर्स में इजाफा किया गया। हालांकि प्रबंधन स्टाफ में कमी की गई है।
नई सुविधाएं व उपकरण
साई सेंटर्स में नई सुविधाएं दी गईं। एंटी ग्रेविटी ट्रेडमिल्स जैसे उपकरण खिलाडिय़ों को दिए गए। 2012 के ओलंपिक के बाद से ये नई सुविधाएं दी जा रही हैं।
निजी स्टाफ को मौका
जो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर के कैंप से बाहर प्रैक्टिस कर रहे थे, उन्हें निजी कोच, इंस्ट्रक्टर, ट्रेनर व अन्य स्टाफ रखने की इजाजत दी गई। ऐसी इजाजत पहली बार दी गई है।
40 विदेशी कोच
ओलंपिक में गए खिलाडिय़ों के लिए केंद्र सरकार ने 40 से अधिक विदेशी कोच को बुलाया। इनसे ट्रेनिंग दिलवाई। कई एक्सपर्ट्स की सेवा ली गई।
निगरानी रखने को सेल
साई ने योजनाएं बनाने, सलाह देने व उन पर अमल कराने के लिए मिशन ओलंपिक सेल बनाया है। देश के तमाम फेडरेशन के प्रमुख, आईओए व राष्ट्रीय कोच और पूर्व ओलंपिक खिलाडिय़ों को इस सेल का सदस्य बनाया गया था।
डाइट चार्ज 650 रुपये
इस साल खिलाडिय़ों का डाइट चार्ज 450 रुपये से बढ़कर 650 रुपये किया गया। फूड सप्लीमेंट का चार्ज 700 रुपये किया गया। पहले 300 रुपये दिए जाते थे।
25 दिन पहले गए
इस बार खिलाडिय़ों को ओलंपिक के लिए 25 दिन पहले ही ब्राजील भेज दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि वे वहां के माहौल और मौसम में ढल सकें। पिछले साल तक कहीं भी दो से तीन दिन पहले ही भेजा जाता था।
हॉकी को भी ‘टॉप’
हॉकी खिलाडिय़ों को पहली बार टोओपी यानी टॉप स्कीम के तहत अन्य खिलाडिय़ों की तरह बराबर टोप मिल रहा है।