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तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे

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शनि की दृष्टि में जो क्रूरता है वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्म पुराण के अनुसार बचपन से ही शनि देवता भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। वह श्री कृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंची पर यह श्री कृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। इसका ऋतु काल निष्फल हो गया इसलिए उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे वह नष्ट हो जाएगा।

ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ किन्तु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
शनि का रूप
* शनैश्चर की शरीर-क्रांति इंद्रनीलमणि के समान है।

* इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं।

* ये हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं।

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