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…तो इसलिए ब्रिटेन में बिका टाटा स्टील का बिजनेस!

tata steelब्रिटेन में टाटा स्टील ने 2007 में 14.2 अरब डॉलर में एंग्लों-डच कंपनी कोरस को खरीदा था। कोरस को खरीदना किसी भारतीय कंपनी का विदेश में सबसे बड़ा अधिग्रहण है। इससे टाटा स्टील की क्षमता 87 लाख टन से बढ़कर 2.5 करोड़ टन हो गई थी। डील के बाद टाटा स्टील दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गई थी। फॉर्चून 500 में शामिल होने वाली पहली भारतीय कंपनी भी बनी।

टाटा स्टील यूके का ब्रिटेन में सबसे बड़ा पोर्ट टालबोट स्थित प्लांट है जहां रेलवे और कंस्ट्रक्शन सेक्टर के लिए स्टील बनाने वाली टाटा की लॉन्ग प्रॉडक्ट्स यूनिट में करीब 4800 कर्मचारी काम करते हैं। ब्रिटिश कारोबार को लेकर संकट में फंसी टाटा स्टील ने इसकी बिक्री को तेज करने के लिए पीएमजी को प्रोसेस कंसल्टेंट नियुक्त भी किया था, परन्तु उसके बाद भी प्लांट को रोजाना 10 करोड़ रु. का घाटा हो रहा था।

टाटा स्टील ने लॉन्ग प्रॉडक्ट्स नाम की अपनी बिजनेस यूनिट को निवेश फर्म ग्रेबुल के हाथों बेच दिया है। टाटा ने इस यूनिट को महज एक पाऊण्ड यानी करीब 95 रुपये में ही बेचा है। दोनों कंपनियों के बीच इस सौदे को लेकर हस्ताक्षर किए गए। जिसके तहत टाटा स्टील की ब्रिटेन स्थित बैंकों का कर्ज फर्म ग्रेबुल ही वहन करेगी। इसके तहत मुख्य रुप से टाटा स्टील की उत्तरी ब्रिटेन की स्कन थोर्प स्थित पोर्ट टालबोट यूनिट आती है।

कोरस को खरीदते वक्त रतन टाटा समूह के चेयरमैन थे। बाद में उन्होनें कहा था, अगर पता होता कि वैश्विक आर्थिक संकट आने वाला है। तो डील नहीं करता। सच तो यह है कि, यदि हम टाटा की ब्रिटेन स्थित पोर्ट टालबोट स्थित यूनिट का वास्तु विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो जाता है कि अनुभवी लोगों की टीम होने के बाद भी प्लांट के वास्तुदोषों के कारण ही एक दशक तक लगातार घाटे में चलने के बाद टाटा स्टील को ब्रिटेन में अपने कोरोबार को औने-पोने दाम में बेचकर छुटकारा पाया।

एक संजोग की बात है कि जिस प्रकार के वास्तुदोष पोर्ट टालबोट स्थित यूनिट में हैं। उसी प्रकार के वास्तुदोष रतन टाटा की सपनों की कार नैनो के साणद स्थित प्लांट में भी हैं जैसे दोनों प्लांट में ईशान कोण दबे हैं, पश्चिम दिशा में भारी मात्रा में पानी का जमाव है इत्यादि। इन्हीं वास्तुदोषों के कारण नैनो प्लांट भी लगातार घाटे में चल रहा है जो कि पोर्ट टालबोट यूनिट की तरह ही कभी बंद हो जाएगा।

ब्रिटेन स्थित टाटा स्टील पोर्ट टालबोट प्लांट का वास्तु विश्लेषण –
अनियमित आकार का पोर्ट टालबोट का स्टील प्लांट ब्रिटेन के पश्चिम भाग में समुद्र के किनारे बना है। जहां जहाजों द्वारा समुद्री रास्ते से भी रॉ मटेरियल आता है और तैयार माल जाता है। इस प्रकार समुद्र के कारण प्लांट की पश्चिम दिशा नीचाई लिए हुए है। वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर जिस प्लांट की पश्चिम दिशा पूर्व दिशा की तुलना में नीची हो, उस प्लांट का स्वामी नाखुश रहेगा और वहां चल रहे कारोबार में अपना धन खोएगा।

प्लांट के ईशान कोण में सड़क का घुमाव इस प्रकार है कि, प्लांट का ईशान कोण दबा हुआ है इस कारण एक ओर उत्तर और उत्तर वायव्य और दूसरी ओर पूर्व तथा पूर्व आग्नेय बढ़े हुए हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी प्लांट का ईशान कोण दबा हो उस प्लांट में होने वाली गतिविधियों में भारी धन हानि होती है।

प्लांट की पश्चिम दिशा में एक त्रिकोणीय बढ़ाव है। वास्तुशास्त्र के अनुसार इस प्रकार का बढ़ाव हो तो वहां चल रहे कारोबार में भारी धन नष्ट होता है और मालिक को निराशा होती है।

प्लांट की दक्षिण दिशा में भी पानी का जमाव है। वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसे प्लांट के मालिक पर कर्ज रहता है और कर्मचारी दुर्घटनाओं के शिकार होते है।

प्लांट की उत्तर दिशा में भारी मात्रा में पानी का जमाव है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में नीचाई हो और वहां पानी का जमाव हो तो वह स्थान प्रसिद्धि प्राप्त करता है इसी कारण यह पोर्ट टालबोट प्लांट दुनिया भर में चर्चित है।

उपरोक्त वास्तुदोषों के कारण यह प्लांट सन् 1905 में जब से बना है तब से लगातार घाटे में चल रहा है। टाटा स्टील ने जिस कोरस कंपनी से यह प्लांट नीलामी में खरीदा था उसे भी जबरदस्त घाटा हुआ था इसलिए यह प्लांट नीलाम हुआ था। यह भी तय है कि ग्रेबुल भी घाटें में ही रहेगा और एक न एक दिन इस प्लांट को बेचेगा और इसके बाद भी जो-जो इस प्लांट को खरीदेगा वह सभी घाटे में रहने के कारण प्लांट को बेचेगा।

पोर्ट टालबोट प्लांट की भौगोलिक स्थिति ही वास्तु दोषपूर्ण है। इसकी भौगोलिक स्थिति को बदला ही नहीं जा सकता। घाटे में चल रहे किसी भी प्लांट के वास्तुदोषों को दूर करने से 100 प्रतिशत सकारात्मक परिणाम मिलते हैं जिससे घाटें में चल रहे प्लांट को लाभ अर्जित करने वाला प्लांट बनाया जा सकता है।

मैं उद्योगपतियों को एक वास्तु सलाह देना चाहता हूं कि, वास्तुदोष पूर्ण भौगोलिक स्थिति वाले स्थानों पर कोई उद्योग लगाने, खरीदने या अधिग्रहण करने से बचना चाहिए। ऐसे प्लांट केवल सरकार द्वारा ही लगाना व चलाना चाहिए क्योंकि सरकार की तो अपने देश की आवश्यकता एवं विकास को देखते हुए ऐसे स्थानों पर प्लांट लगाना मजबूरी होती है। ऐसे में चाहे प्लांट कितने ही घाटें में क्यों न चले, उन्हें प्लांट चलाना ही पड़ता है, क्योंकि सरकार को देश जरुरतों के साथ-साथ नागरिकों को भी रोजगार देना होता है।

इसी कारण जब 30 मार्च को टाटा स्टील ने ब्रिटिश कारोबार की बिक्री का ऐलान कर ब्रिटेन की सरकार को मुश्किल में ला दिया था। सरकार के सामने हजारों नौकरियां बचाने की चुनौती खड़ी हो गई थी। इसके बाद ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन और उनकी सरकार इस कोशिश में जुट गए कि स्टील प्लांट सही खरीदार को बेचे जाएं ताकि इन्हें बंद होने से बचाया जा सके। ट्रेड यूनियनों ने सरकार से प्लांट के राष्ट्रीयकरण की मांग की है। सबसे बड़ी यूनियन यूनाइट ने स्टील सेक्टर को बचाने के लिए प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन से कदम उठाने के लिए आग्रह किया है।

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