रायपुर. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 80 किमी दूर कांकेर के फितेफुलचुर में नदियों से साेना निकाला जाता है। इस काम से यहां रहने वाले कई परिवारों का घर चलता है। वे बारिश में खेती करते हैं और बारिश के बाद नदियों से सोना निकालने में जुट जाते हैं। क्या है सोना निकालने की पूरी प्रोसेस…
– नदियों से निकाली जाने वाली मिट्टी को डोंगीनुमा लकड़ी के बर्तन में धोया जाता है।
– धुलाई के बाद जो बारीक कण बचते हैं, उसे इकट्ठा किया जाता है।
– कण के ज्यादा मात्रा में जमा होने पर उसे पिघलाया जाता है।
-कण को पिघलाकर सोने का रूप दिया जाता है, जिसे क्वारी सोना कहा जाता है। क्वारी सोना शुद्ध माना जाता है।
कई पीढ़ियों एक परिवार कर रहा है यह काम…
– दुर्गूकोंदल ब्लाॅक मुख्यालय से 30 किमी दूर ग्राम कई पीढ़ियों से सोनझरिया परिवार आज भी पुश्तैनी व्यवसाय सोना निकालने का काम कर रहा है।
– 300 सदस्य हैं सोनझरिया समुदाय के 25 परिवारों में, जो पारंपरिक रोजगार से जुड़े हैं।
– लोग नदियों से मिट्टी, कंकड़, पत्थर को धोकर सोना निकालते हैं।
-परिवार के सदस्य क्षेत्र के पतकसा बड़गांव, कोंडे, कोटरी नदी, खंडीनदी, घमरे नदी, रावघाट, बड़े डोंगर के अलावा महाराष्ट्र की कुछ नदियों में जाकर सोने निकालने का काम करते हैं।
सोना निकालते हैं, ज्वैलरी बनाना नहीं जानते
-जो परिवार यहां सोना निकालने का काम करते हैं उन्हें ज्वैलरी बनाने का नॉलेज नहीं है।
-वे जो सोना निकालते हैं, वह हाई क्वालिटी का होता है। इसे वे औने-पौने दाम पर बेच देते हैं।
-राजूराम मंडावी ने बताया कि कभी सोना बेचकर रकम इकट्ठा नहीं कर पाए। जो भी रकम हाथ आई, वह भी रोटी और कपड़े के लिए खर्च हो जाती है।
खानाबदोशी के कारण बच्चे पढ़ाई से हो रहे दूर
– यहां सोना निकालने का काम करने वाले सोनझरिया परिवार में 5वीं से ज्यादा कोई भी पढ़ नहीं पाया है।
– वे कई महीने घर से बाहर रहते हैं। बच्चे भी साथ होते हैं, जिससे वे पढ़ाई से हो रहे दूर हो जाते हैं।
– पुनऊ का कहना है कि पढ़ाई से ज्यादा पेट भरने के लिए काम जरूरी है। पढ़कर क्या करेंगे। काम सीखेंगे, तो परिवार पालने में दिक्कत नहीं होगी।
जंगलोंं में नदियों के किनारे बनाते हैं अस्थाई कैंप
-सोना निकालने के लिए ये परिवार नदियों के निकट जंगलों में अस्थाई कैंप बनाकर रहते हैं।
-दिनभर नदियों में सोना निकालने के काम में जुटने के बाद शाम को परिवार के सदस्य कैंप पहुंचते हैं।
-उन्होंने बताया जंगलोंं के बीच रहने से उन्हें कोई डर नहीं लगता है, वे अपनी ईष्ट देवी को आस्था मानकर रहते हैं।