पाकिस्तान से हालिया संघर्ष में भी ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान को एक तराजू पर तोलने की कोशिश की, जबकि खुद ट्रंप प्रशासन मानता है कि चीन को बैलेंस करने के लिए भारत की जरूरत है। तो क्या अमेरिका को भारत की जरूरत सिर्फ चीन को बैलेंस करने तक ही सीमित है?
डोनाल्ड ट्रंप के वाणिज्य मंत्री का कहना है कि भारत जब रूस से हथियार खरीदता है तो अमेरिका को काफी बुरा लगता है। वाशिंगटन डीसी में आठवें यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम को संबोधित करते हुए लुटनिक ने कहा कि “भारत सरकार ने कुछ ऐसी चीजें कीं, जो आम तौर पर अमेरिका को नापसंद थीं। उदाहरण के लिए, आप आम तौर पर रूस से अपना सैन्य सामान खरीदते हैं। अगर आप रूस से अपने हथियार खरीदने जा रहे हैं, तो यह अमेरिका को परेशान करने का एक तरीका है। मुझे लगता है कि भारत अमेरिका से सैन्य उपकरण खरीदने की दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर रहा है, जो फिर एक लंबा रास्ता तय करेगा।” लेकिन जब ट्रंप के वाणिज्य मंत्री कहते हैं कि रूस से भारत का हथियार खरीदना अमेरिका को खलता है तो वो भूल जाते हैं कि अमेरिका ने भारत के साथ संबंधों को लेकर एक ऐसा इतिहास बना रखा है, जिसपर भारतीयों को भी भरोसा नहीं होता।
तमाम जियो-पॉलिटिकल मुश्किलों में फंसने के बाद भी रूस को लेकर हर भारतीय के मन में भरोसा रहता है। रूस अगर चीन के खेमे में खड़ा दिखता है, फिर भी भारतीयों को एतराज नहीं होता, क्योंकि भारत के लोग रूस की हकीकत को समझते हैं, लेकिन अगर अमेरिका और रूस के बीच चुनने को कहा जाए, तो भारत में विरले ही कोई होगा जो अमेरिका को चुनेगा। ये रूस के ऊपर विश्वास और अमेरिका के ऊपर अविश्वास की कहानी है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्री ने जो कुछ कहा है वो सिर्फ डिप्लोमेटिक शब्द नहीं थे, बल्कि वो एक बड़े जियो-पॉलिटिकल ट्रांजिशन का संकेत दे रहे थे कि भारत अब अमेरिका से भी हथियार खरीद रहा है, लेकिन असल सवाल ये है कि क्या वाकई भारत, अमेरिका पर भरोसा करता है और अमेरिका ने भारत का भरोसा जीतने के लिए क्या काम किए हैं?
भारत-अमेरिका में मजबूरी का रिश्ता? – पाकिस्तान से हालिया संघर्ष में भी ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान को एक तराजू पर तोलने की कोशिश की, जबकि खुद ट्रंप प्रशासन मानता है कि चीन को बैलेंस करने के लिए भारत की जरूरत है। तो क्या अमेरिका को भारत की जरूरत सिर्फ चीन को बैलेंस करने तक ही सीमित है? अमेरिका ने 1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान का साथ दिया। 1971 में तो अमेरिका ने भारत को सख्त अंजाम भुगतने की धमकी तक दी थी और पाकिस्तान की मदद के लिए अपने एयरक्राफ्ट करियर तक भेज दिया था। वो तो भला हो सोवियत संघ का, जो भारत की मदद के लिए पहुंच गया, अन्यथा कुछ भी हो सकता था। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखने से पता चलता है कि भारत के खिलाफ अमेरिका ने पाकिस्तान को F-86 Sabre, F-16 लड़ाकू विमान, Patton टैंक समेत कई अन्य आधुनिक हथियार दिए, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ किया।
1971 में जब बांग्लादेश का मुद्दा उभरा तो अमेरिका ने भारत को धमकाने के लिए USS Enterprise (न्यूक्लियर युद्धपोत) बंगाल की खाड़ी में भेज दिया। इसके बाद 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए तो अमेरिका समेत ज्यादातर यूरोपीय देशों ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। वो तो बाद में अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत पड़ गई तो उसे पाकिस्तान के ऊपर लगाए प्रतिबंधों को भी हटाना पड़ा और फिर मजबूरी में उसे भारत पर लगाए प्रतिबंधों को भी हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबकि ये वही अमेरिका था जो इजरायल और पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रमों पर आंखें मूंदे बैठा था। इतना ही नहीं, जब भी भारत ने अमेरिका से हथियार खरीदे तब तक अमेरिका ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भारी सख्त शर्तें लगाईं। जैसे भारत ने अमेरिका से Apache हेलिकॉप्टर, P-8i सर्विलांस एयरक्राफ्ट और C-130J ट्रांसपोर्टर एयरक्राफ्ट खरीदे हैं, लेकिन अमेरिका ने हर बार ‘एंड यूजर एग्रीमेंट’ और ‘जांच का अधिकार’ जैसी शर्तें लगाईं। अभी भी F-35 स्टील्थ फाइटर खरीदने से पहले अमेरिका ने F-21 लड़ाकू विमान पहले खरीदने की शर्त लगा रखी है।
Home / Uncategorized / पाकिस्तान के सपोर्ट के लिए भेजा नौसेना का सातवां बेड़ा, रूसी हथियारों पर भारत को ज्ञान दे रहा अमेरिका, जानें धोखे की कहानी