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भारत के लिए मुसीबत बनेगी अमेरिका और चीन की दोस्ती, क्या ‘मेक इन इंडिया’ को लगेगा झटका, इंडस्ट्री में कैसा डर?


ट्रेड वॉर के बीच अमेरिका और चीन नजदीक आते दिखाई दे रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी जहां चीन पर लगाए गए टैरिफ में नरमी दिखाई है तो वहीं चीन ने भी कुछ ढील दी है। वहीं इन दोनों देशों की नजदीकी भारत के लिए मुसीबत बन सकती है। इसका सबसे ज्यादा असर भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री पर दिखाई दे सकता है। इसे लेकर इंडस्ट्री ने अपनी चिंता भी सरकार के सामने जताई है।
भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री ने सरकार से कहा है कि वह अपनी सहायक नीतियों को जारी रखे। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार इंडस्ट्री को चिंता है कि अगर अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध सामान्य हो जाते हैं, तो इससे भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट की वह प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी जो उसने बड़ी मुश्किल से हासिल की है। इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री ‘मेक इन इंडिया’ की सबसे बड़ी सफलता की कहानी है। अगर इस इंडस्ट्री को नुकसान होता है तो यह ‘मेक इन इंडिया’ स्कीम के लिए भी झटका होगा।
क्यों बढ़ी इंडस्ट्री की चिंता? – इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री सरकार के पास तब पहुंची जब अमेरिका ने चीन पर लगाए गए फेंटानिल टैरिफ को 20% से घटाकर 10% कर दिया। यह फैसला 30 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई लंबी बातचीत के बाद आया। 6 नवंबर को सरकार को लिखे एक पत्र में इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) ने चेतावनी दी है कि फेंटानिल टैरिफ में हुई इस कमी ने भारत के सापेक्ष लागत लाभ को 10 प्रतिशत अंक तक कम कर दिया है।
इस एसोसिएशन ने यह भी बताया है कि अगर यह स्थिति बनी रहती है या इसमें और ढील दी जाती है तो यह भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता, निवेश के प्रति आकर्षण और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत उत्पादन की गति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। ICEA में एप्पल, गूगल, मोटोरोला, फॉक्सकॉन, वीवो, ओप्पो, लावा, डिक्सन, फ्लेक्स और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी कंपनियां सदस्य हैं।
चीन को क्या होगा फायदा? – वैश्विक व्यापार और राजनीतिक हालात ऐसे हो सकते हैं कि चीन अंततः भारत और अन्य देशों की तुलना में टैरिफ के मामले में नुकसान में न रहे। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि वाशिंगटन ने घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए बीजिंग के साथ अपने व्यापार के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल शर्तें तय की हैं। ऐसा तब है कि चीन सैद्धांतिक रूप से अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी है। लेकिन अब माहौल कुछ बदला हुआ नजर आ रहा है।
भारत पर क्या पड़ेगा असर? – भारत पिछले कई सालों से चीन की तुलना में फायदे की स्थिति में था। साल 2018 से अमेरिका ने ट्रंप और जो बाइडेन दोनों प्रशासनों के तहत अमेरिकी व्यापार अधिनियम की धारा 301 के तहत चीन पर लगातार टैरिफ लगाए हैं। इसने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक बड़ा बदलाव शुरू किया।
इस फायदे ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात को बढ़ावा दिया। वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही में अमेरिका को निर्यात 42% बढ़कर 22.2 अरब डॉलर हो गया, जबकि वित्त वर्ष 2025 की इसी अवधि में यह 15.6 अरब डॉलर था। स्मार्टफोन, जो इस श्रेणी में सबसे ऊपर हैं, उनमें भी तेज वृद्धि देखी गई। वित्त वर्ष 2026 में इसका निर्यात 60% बढ़कर 13.4 अरब डॉलर हो गया, जो वित्त वर्ष 2025 में 8.4 अरब डॉलर था। ICEA ने पत्र में कहा है कि चीन पर फेंटानिल से संबंधित टैरिफ में कमी और संभावित रूप से पूरी तरह से हटा देना चीन के लिए फायदेमंद और भारत के लिए नुकसानदायक हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका अब चीन की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को महत्वपूर्ण रूप से बहाल कर सकता है।
भारत को इस बात का भी डर – यह समझना महत्वपूर्ण है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए कितने मायने रखते हैं। जब अमेरिका ने चीन पर टैरिफ बढ़ाए थे तो भारत को फायदा हुआ था क्योंकि कंपनियां चीन के बजाय भारत में उत्पादन करने लगी थीं। लेकिन अब जब अमेरिका चीन पर टैरिफ कम कर रहा है, तो भारत को डर है कि यह फायदा खत्म हो जाएगा।