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माथे की रेखा से जाना जिंदगी के 40 दिन हैं शेष, मृत्यु से पहले किया ये काम

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दोष सिद्धि के लिए मजबूत इच्छाशक्ति जरूरी
एक व्यक्ति चाहकर भी अपने दुर्गुणों पर काबू नहीं कर पा रहा था। एक बार उसके गांव में एक संत आए। उसने उनसे अपनी परेशानी बताई। संत ने कहा, ‘‘दृढ़ संकल्प से ही दुर्गुण छूटते हैं। यदि तुम इच्छाशक्ति मजबूत कर लोगे तो तुम्हें अपने दोषों से मुक्ति मिल जाएगी।’’

वह व्यक्ति प्रयास करके थक गया, मगर उसे सफलता नहीं मिली। वह फिर संत के पास गया। उन्होंने पहले उसके माथे की रेखाएं देखने का नाटक किया, फिर बोले, ‘‘अरे तुम्हारी जिंदगी के 40 दिन ही शेष हैं। अगर इन बचे दिनों में तुमने दुर्गुण त्याग दिए तो तुम्हें सद्गति मिल जाएगी।’’

यह सुनकर वह आदमी परेशान हो गया। वह किसी तरह घर पहुंचा और व्यसनों की बात तो दूर, खाना-पीना तक भूल गया। वह हर पल ईश्वर को याद करता रहा। उसने एक भी गलत कार्य नहीं किया। 40 दिन बीतने पर वह संत के पास पहुंचा।

उन्होंने पूछा, ‘‘इतने दिनों में तुमने कितने गलत कार्य किए?’’

उस व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘‘मैं गलत क्या करता, मैं तो हर पल ईश्वर को याद करता रहा।’’

संत मुस्कराते हुए बोले, ‘‘जाओ अब तुम पूरी तरह सुरक्षित हो। तुम अच्छे इंसान बन गए हो। जो व्यक्ति हर समय मृत्यु को ध्यान में रखकर जीवनयापन करता है वह भला इंसान बन जाता है।’’

जब भ्रम टूटता है झूठ को सच मानने का, असत्य को सत्य जान लेने का, तभी आदमी का नया जन्म होता है और वह सत्य की तलाश में नया सफर शुरू करता है। दमीयत के खोए मायने बटोरता है। फिर जिंदगी को एक सार्थक पहचान देता है। आज की दुनिया में हर कोई किसी न किसी से ठगा जा रहा है। कोई यश के नाम पर, कोई सत्ता के नाम पर, कोई संबंधों के नाम पर। इसलिए हर बार सच को देखने, पकडऩे में आंखें धोखा खा जाती हैं। अंत में वही व्यक्ति सफल होता है जो जीवन की सच्चाई को समझ लेता है और सत्य के मार्ग को अपना लेता है।