सभी पैरेंट्स अपने बच्चों को अच्छी आदतों के साथ बड़ा करना चाहते हैं और इसकी नींव उन्हें बचपन से ही रखनी पड़तीहै। दो साल की उम्र में बच्चे आसानी से अच्छी आदतों को सीख सकते हैं इसलिए माता-पिता को इस समय का लाभ जरूर उठाना चाहिए।
तो आइए जानते हैं उन आदतों के बारे में जो आपको बच्चे को दो साल की उम्र में ही सिखा देनी चाहिए।
हाथ धोना
शरीर को अंदर से साफ रखने के लिए बाहर से सफाई रखना बहुत जरूरी है। हम न जाने कितनी बार चेहरे, नाक, आंख और मुंह पर हाथ लगाते हैं जिससे कीटाणु बड़ी आसानी से हमारे शरीर के अंदर घुस जाते हैं। वहीं, अगर खाना खाने से पहले हाथ न धोएं तो इसका खतरा और बढ़ जाता है।
अपने बच्चे को दो साल की उम्र से ही खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथ धोना सिखाएं। खेलने के बाद भी बच्चों को अच्छी तरह से हाथ धोने की आदत डालें ताकि कीटाणु उनके पेट में न जाएं और वो इंफेक्शन से दूर रहें।
बच्चे के पतलेपन से परेशान न हों, ये चीजें खिलाकर बढ़ाएं उसका वजन
पोटैशियम, विटामिन सी, विटामिनी बी6 और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है केला। इसमें कैलोरी भी भरपूर मात्रा में होती है जिससे शिशु का वजन बढ़ाने में मदद मिलती है। केले को मसलकर या फिर स्मूदी या शेक में केले को मिलाकर बच्चे को दें। अगर बच्चा तीन साल से अधिक उम्र का है तो आप उसे केला सीधा खिला सकती हैं।
शकरकंद को उबालने के बाद मैश कर के बच्चे को खिलाएं। ये बहुत ही पौष्टिक होता है और आसानी से पच जाता है। शकरकंद विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी6, कॉपर, फास्फोरस, पोटैशियम और मैंगनीज से भरपूर होती है। शकरकंद में डायट्री फाइबर भी पाए जाते हैं। आप इसकी प्यूरी या सूप बनाकर भी बच्चे को दे सकती हैं।
दालों में प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन, फाइबर और पोटैशियम होता है। छह महीने के बच्चे को दाल का सूप या दाल का पानी दे सकते हैं। आप बच्चे को दाल की खिचड़ीभी खिला सकती हैं। दाल चावल या सब्जी के साथ दाल मिलाकर खिलाने से भी दाल का पोषण बढ़ जाता है। 7 से 9 महीने के बच्चे को आप ठोस आहार में दलिया भी खिला सकती हैं।
घी में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है। आठ महीने के शिशु को घी खिलाना शुरू किया जा सकता है। दलिये या खिचड़ी या दाल के सूप में बच्चे को घी डालकर खिलाएं। ये बच्चे का वजन बढ़ाने के साथ-साथ उसे हेल्दी भी रखेगा।
इसके अलावा शिशु का वजन बढ़ाने और स्वस्थ विकास के लिए रागी सुपरफूड का काम करती है। ये डायट्री फाइबर, कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और अन्य कई विटामिनों एवं खनिज पदार्थों से युक्त होती है। आप रागी की इडली, डोसा या दलिया बनाकर खिला सकती हैं।
अंडा प्रोटीन से भरपूर होता है। एक साल के होने के बाद बच्चे को अंडा खिला सकते हैं। इसमें सैचुरेटेड फैट, प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स होते हैं। आप अंडे उबालकर या इसका आमलेट बनाकर बच्चे को खिला सकती हैं।
एवोकाडो विटामिन ई, सी, के और फोलेट, कॉपर, डायट्री फाइबर एवं पैंटोथेनिक एसिड से युक्त होता है। इसमें उच्च मात्रा में फैट होता है। आप किसी भी रूप में एवोकाडो बच्चे को खिला सकती हैं। मिल्क शेक में भी एवोकाडो मिलाकर दिया जा सकता है।
थैंक्यू और प्लीज बोलना
बचपन से ही विनम्र रहने का गुण सिखाया जाए तो बच्चे बड़े होकर भी इस गुण को अपने साथ रखते हैं। जब बच्चे थोड़ा बहुत बोलना सीख जाएं तो उन्हें थैंक्यू और प्लीज बोलने जैसे शब्द सिखाएं। अगर उन्हें किसी चीज की जरूरत है तो उन्हें प्लीज कह कर मांगने और फिर थैंक्यू कहने की आदत डालें। इससे बच्चों में विनम्रता का भाव आता है और किसी के आगे झुकने को वो गलत नहीं मानते हैं बल्कि इसे दूसरों का सम्मान करने के रूप में समझते हैं।
छींकते समय नाक पर हाथ रखना
स्कूल में भी यही सिखाया जाता है कि खांसते और छींकते समय मुंह पर हाथ रखना चाहिए। इससे मुंह और नाक से निकले हजारों कीटाणु फैलते नहीं हैं। बच्चों को भी ये बात समझाएं कि खांसते और छींकते समय मुंह को कवर करने से दूसरों में कीटाणु नहीं फैलते हैं। इसके अलावा ऐसा करने के बाद हाथ धोना भी जरूरी है ताकि उन्हें कोई इंफेक्शन न फैले।
दांत निकलने पर दर्द से रो रहा है बच्चा तो अपनाएं ये घरेलू नुस्खे
दांत आने पर बच्चे को अधिक से अधिक तरल पदार्थ देना जरूरी होता है। ब्रेस्ट मिल्क के अलावा भी बच्चे को तरल पदार्थ देना चाहिए। दांत निकलने के समय पर ब्रेस्ट मिल्क को पंप कर कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें और फिर शिशु को पिलाएं।
थोडा ठंडा दूध पीने से बच्चे को रिलैक्स महसूस हो सकता है। जैसे दांत की सर्जरी के बाद अक्सर डॉक्टर आइस्क्रीम खाने के लिए कहते हैं, ठीक वैसे ही ठंडा दूध पीने से भी बच्चे को दांतों में आराम मिलता है।
अगर आपका बच्चा दांत में दर्द की वजह से बेचैन हो रहा है तो मालिश से उसे आराम मिल सकता है। हल्के हाथों से बच्चे की सिर और पैरों की मालिश करें। इससे शिशु को रिलैक्स महसूस होता है। मालिश से बच्चे के मसूडों का दर्द तो कम नहीं होता है लेकिन उसे नींद आने और रिलैक्स होने में जरूर मदद मिलती है।
कुछ लोग दांत दर्द को कम करने के लिए कैमोमाइल टी लेने की भी सलाह देते हैं और कुछ नैचुलर टीथिंग प्रोडक्टस में कैमोमाइल का उपयोग किया जाता है। बच्चे को हमेशा कैफीन फ्री टी ही देनी चाहिए। आप बच्चे को ऊंगली से चाय चटाएं और ठंडी चाय दें।
शहद में एंटीबैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जिस वजी से घाव को भरने और चोट से जल्दी आराम दिलाने में शहद बहुत उपयोगी होता है। शिशु को शहद चटाने से दर्द से राहत मिलती है जिससे मसूड़ों में सूजन में भी कमी आती है। शिशु थोडा सा शहद चटाएं।
ऐसा जरूरी नहीं है कि हर बच्चे को घरेलू नुस्खों से आराम जरूर मिले। इसलिए बेहतर होगा कि आप दांत निकलने पर आप डॉक्टर से बात करते रहें और उनसे दर्द को कम करने के तरीकों के बारे में पूछें। बच्चों को कोई भी चीज डॉक्टर से पूछे बिना न दें।
नाक में अंगुली देना
आपको भी याद होगा पब्लिक प्लेस में नाक में अंगुली देने पर कैसे डांट पड़ती थी। मेहमानों के आगे या स्कूल वगैरह में नाक में उंगली देना गंदी आदत होती है। पैरेंटहोने के नाते आपको बच्चे को यह बात समझानी है। ऐसी कोई हरकत करने पर अगर बच्चे को स्कूल में डांटा जाएगा तो उसे शर्मिंदगी महसूस होगी इसलिए बेहतर होगा कि आप ही उसे इस गंदी आदत से दूर रहना सिखाएं।
सुबह जल्दी उठना
सुबह जल्दी उठना बहुत अच्छी आदत है और बचपन से ही अगर बच्चों को जल्दी उठना सिखाया जाए तो इसमें उन्हें कोई बुराई नहीं दिखती है। सुबह उठने से बॉडी क्लॉक भी ठीक रहती है और दिन भी अच्छा गुजरता है।
इसके अलावा रोज सुबह उठकर प्रार्थना करना और भगवान को याद करना भी एक अच्छी आदत है। बच्चों को भोजन का आदर करना भी सिखाएं। जो भी घर में बना है, वही खाने की आदत डालना और खाने में आनाकानी न करने की आदत सिखाना बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी आप कोशिश तो कर ही सकते हैं।