सबकी सहमति के मामले में समझदार आदमी अपना विकल्प बहुत अच्छे से तैयार रखता है। दूसरा काम यह करें कि जब आपके प्रस्ताव पर समूह में विरोध हो तो विरोध करने वाले के व्यक्तित्व पर न टिकें, उसकी मानसिकता को समझें। यदि व्यक्तित्व पर टिकेेंगे तो हमारे भीतर ईर्ष्या पैदा हो सकती है। उसकी मानसिकता पढ़ेंगे तो हम परिपक्वता के साथ विरोध को समझेंगे। उसी विरोध के साथ अपना विकल्प स्थापित कर सकेंगे। आज हमारे परिवारों में कलह का बड़ा कारण यही है कि आपसी सहमति नहीं हो पाती और सब एक-दूसरे से उलझ जाते हैं। यदि हमें परिवार बचाना है तो एक-दूसरे के प्रति सहमत होना ही पड़ेगा। उसके लिए विकल्प और मानसिकता प्रस्तुत करना आना चाहिए। एक-दूसरे के व्यक्तित्व की जगह मानसिकता को समझना पड़ेगा। इतनी समझदारी आ गई तो परिवार का प्रत्येक सदस्य असहमत होने के बाद भी एक साथ प्रेम से रह सकेगा।