चक्रवात एक वायुमंडलीय प्रक्रिया है। लेकिन धरती पर वो तबाही बनकर उतरता है। भारत में चक्रवात आम तौर पर सितंबर के महीने में आते हैं।
भारत में चक्रवात से आम तौर पर होने वाली मौतों की संख्या दुनिया के बाकी इलाकों से कहीं ज्यादा है। आखिर भारत के पूर्वी तट और बांग्लादेश में बार-बार तूफान आते क्यों है और क्या वजह है कि भारत के पूर्वी तट पर जान और माल की क्षति सबसे ज्यादा होती है। नेशनल साइक्लॉन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट के मुताबिक उत्तरी हिंद महासागर में आने वाले तूफान दुनिया में आने वाले कुल तूफानों का सिर्फ सात फीसदी ही होते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के तटों पर इन तूफानों का असर सबसे ज्यादा गंभीर होता है। भारत के पश्चिमी तटों पर चक्रवात का खतरा पूर्वी तटों से कम होता है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों है।
चक्रवात (साइक्लोन)
साइक्लोन, पश्चिमी प्रशांत महासागर और भारत के पास बंगाल के आसपास उठने वाला चक्रवाती तूफान हैं।साइक्लोन समंदर में उस जगह से उठता है जहां पर तापमान अन्य जगहों के मुकाबले ज्यादा होता है। उत्तरी ध्रुव के नजदीक वाले इलाकों में साइक्लोन घड़ी चलने की उल्टी दिशा में आगे बढ़ता है। जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के आस-पास साइक्लोन घड़ी चलने की दिशा में आगे बढ़ता है। साइक्लोन के भीतर हवाओं की रफ्तार 140 किलोमीटर प्रतिघंटे तक हो सकती है और ये 25 से 35 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आगे बढ़ते हैं। चक्रवात कम से कम एक हफ्ते तक रहता है। चक्रवात 1600 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं।
चक्रवात के मामले में पूर्वी तट ज्यादा संवेदनशील
नेशनल साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट के मुताबिक साल 1891 से 2000 के बीच भारत के पूर्वी तट पर 308 तूफान आए, जबकि इसी दौरान पश्चिमी तट पर महज 48 तूफान आए। भारत के पूर्वी तट पर तूफान आने के पीछे खास वजह है। मौसम विभाग के मुताबिक बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनने वाले तूफान या तो बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्व में बनते हैं या उत्तर-पश्चिम प्रशांत सागर पर बनने वाले तूफानों के अंश होते हैं, जो हिंद महासागर की ओर बढ़ते हैं।
उत्तर-पश्चिम प्रशांत सागर पर बनने वाले तूफान वैश्विक औसत से ज्यादा होते हैं, इसलिए बंगाल की खाड़ी पर भी ज्यादा तूफान बनते हैं। वहीं अरब सागर पर बनने वाले तूफान या तो दक्षिण पूर्व अरब सागर पर बनते हैं या बंगाल की खाड़ी पर बनने वाले तूफानों के अंश होते हैं। क्योंकि बंगाल की खाड़ी पर बनने वाले तूफान जमीन से टकराने के बाद कमजोर पड़ जाते हैं, इसलिए ऐसा कम ही होता है कि ये अरब सागर तक पहुंचे।
पश्चिमी तट पर कम आते हैं चक्रवात
इसके अलावा बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर ठंडा है। इसलिए इस पर ज़्यादा तूफान नहीं बनते हैं। मौसम विभाग के मुताबिक तूफान से तीन तरह के खतरे होते हैं, भारी बारिश, तेज हवाएं और ऊंची लहरें। इन तीनों में भी सबसे खतरनाक ऊंची लहरें ही हैं। हाई टाइड के वक्त लहरें और ज्यादा उठती हैं। ये तब और खतरनाक हो जाती हैं जब समुद्र का तल छिछला हो।
गुजरात के आसपास के पश्चिमी तट पर ऊंची लहरें उठने का खतरा कम है, लेकिन पूर्वी तट पर हम जैसे-जैसे तमिलनाडु से ऊपर आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की ओर बढ़ते हैं, उसी के साथ ये खतरा बढ़ता जाता है। जब एक विशेष तीव्रता का तूफान भारत के पूर्वी तट और बांग्लादेश से टकराता है, तो इससे जो लहरें उठती हैं वो दुनिया में किसी भी हिस्से में तूफान की वजह से उठने वाली लहरों के मुकाबले ऊंची होती हैं।
नाम पड़ने के पीछे भी है ‘विज्ञान‘
विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) और युनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड पैसिफिक (ईएससीएपी) द्वारा जारी चरणबद्ध प्रक्रियाओं के तहत ही किसी चक्रवात का नामकरण किया जाता है।
उत्तरी हिंद महासागर के चक्रवात
हिंद महासागर के किनारे के देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के 64 (हर देश आठ नाम) नाम तय करते हैं। जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची से अगला दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इस प्रक्रिया के चलते तूफान की आसानी से पहचान और बचाव अभियानों में मदद मिलती है। किसी नाम का दोहराव नहीं किया जाता है।
इन आठ देशों द्वारा साल 2004 से नामकरण की शुरुआत की गई। इस बार नाम रखने की बारी ओमान की थी लिहाजा उसकी सूची में प्रस्तावित नाम हुदहुद था। चक्रवातों के नाम रखने की प्रवृत्ति ऑस्ट्रेलिया से शुरू हुई। 19वीं सदी में यहां चक्रवातों का नाम भ्रष्ट राजनेताओं के नाम पर रखा जाने लगा था।
दुनिया के अलग-अलग इलाकों में आने वाले चक्रवात
हरिकेन
अटलांटिक या पूर्वी प्रशांत महासागर से उठने वाले विनाशकारी तूफान को हरिकेन कहा जाता है। हरिकेन हमेशा अमेरिका की तरफ ही बढ़ता है। इसकी हवाओं की गति 90 किलोमीटर प्रतिघंटा से 190 किलोमीटर प्रतिघंटा तक होती है। इसकी वजह से अचानक तूफान के साथ बारिश या फिर टोरनेडो कहलाने वाली चक्रवाती हवाएं चलती है।
लेकिन इन सब विनाशकारी तूफानों में कई बातें समान भी हैं। ये तूफान अपने साथ तेज हवाओं के साथ भारी बारिश लाते हैं। जिसकी वजह से अचानक बाढ़ आती है, मकान टूट जाते हैं और चट्टानें खिसक जाती हैं। सामान्य तौर पर ये सभी मई से लेकर नवंबर के बीच में आते हैं।
टायफून
टायफून एक कम दबाव का ऐसा तूफान है जो समंदर के गर्म इलाकों से उठता है। प्रारंभिक अवस्था में इसे सिर्फ तूफान माना जाता है, लेकिन जब इसकी भीतरी हवाओं की रफ्तार 120 किलोमीटर प्रतिघंटा या फिर इससे ज़्यादा हो जाती है तो इसे टायफ़ून का नाम दे दिया जाता है। कई बार टायफून की उच्चतम रफ्तार 360 किलोमीटर प्रतिघंटा तक मापी गई है।
टायफून पश्चिमी प्रशांत महासागर से उठता है और जापान, ताइवान, फिलीपींस या पूर्वी चीन की ओर बढ़ता है।इसकी आगे बढ़ने की गति 65 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है। एशिया में आने वाला ये तूफान सामान्य तौर पर जून से नवंबर के बीच में आता है। लेकिन अगस्त-सितंबर में इनका सबसे ज्यादा खतरा बना रहता है। टायफून 900 किलोमीटर से ज्यादा के इलाके पर असर डाल सकता है |
साभार – जागरण
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