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शरीर में कौन से लेवल पर पहुंच चुका है स्ट्रेस? खुद से सवाल पूछकर लग जाएगा पता


जब किसी को शामें परेशान करने लगे और मन में उदासी छाने लगे तो यह डिप्रेशन या स्ट्रेस का संकेत हो सकता है। सही समय पर सलाह लेना और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना आवश्यक है। समस्या बढ़ने पर यह आपकी मेंटल हेल्थ को काफी खराब कर सकते हैं।
जब किसी को शाम मदहोश न करके परेशान करने लगे, मन उदास रहने लगे, अंदर से लो फील करने लगे, काम मन मारकर करे, सीधे कहें तो न काम में मन लगे, न धाम जाने की इच्छा ही हो। बस एकांतवास और चुपचाप रहने का दिल करने लगे और अंदर से यह आवाज़ आए कि ‘मैं और मेरी तन्हाई अक्सर आपस में ये बातें करते हैं।’ जब ये सभी चीजें बार-बार होने लगें और लगातार होने लगें तो उपाय की तलाश करना लाज़मी हो जाता है। दरअसल, ये स्ट्रेस के बढ़ने या फिर डिप्रेशन की शुरुआत होने के लक्षण भी हो सकते हैं।
प्रभाष एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। पिछले कुछ साल से उनका अप्रेजल दूसरों के मुकाबले कम अच्छा हुआ। उनका प्रमोशन भी बाकी था, वह भी नहीं दिया गया। एक-दो को छोड़ दें तो उनके साथ वाले ज्यादातर लोगों का अप्रेजल बढ़िया भी हुआ और उन्हें प्रमोशन भी मिला। हालांकि प्रभाष अपना काम दिल और दिमाग, दोनों लगाकर करते हैं। लेकिन उन्होंने ईगो पाल रखा था। कुल मिलाकर स्वभाव अच्छा था लेकिन वह ‘मैं क्यों झुकूं’ वाली सोच पर टिके थे। कभी-कभी तो गलती होने पर भी गलती मानने को तैयार नहीं होते थे।
उन्हें ऐसा लगने लगा था कि ऑफिस में उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। इस वजह से वह लगातार उदास रहने लगे। काम करते तो थे लेकिन काम के प्रति उनका जो उत्साह पहले था, वह अब नहीं दिख रहा था। रातों को कम नींद आने की परेशानी भी रहने लगी, वह खानपान का भी ध्यान नहीं रख पा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने सिगरेट पीना भी शुरू कर दिया। ऑफिस में दूसरे लोगों से उनकी बातचीत भी कम हो गई थी। उनकी पत्नी भी इस बर्ताव से परेशान थीं।
वह समझाती थीं कि कोई बात नहीं, दूसरी जॉब की तलाश कर लें। लेकिन प्रभाष उनकी सलाह को टाल देते थे। उन्हें पता था कि नई जॉब खोजना इतना आसान नहीं। वैसे भी इस तरह का माहौल तो किसी भी ऑफिस में हो सकता है। यह स्थिति कुछ महीनों तक बनी रही। करीब सालभर पहले प्रभाष के नजदीकी दोस्त को जब उनकी इस स्थिति के बारे में पता चला तो उन्होंने इस बारे में बात की। फिर यह समझाया कि ज़िंदगी में फूल हैं तो कांटे भी होंगे ही।
चुनौतियां आएंगी ही, उनसे दो-चार होने का रास्ता खोजना पड़ता है। आज भले ही ऑफिस में परेशानी है, लेकिन कल स्थिति बेहतर हो सकती है। अपना काम सही तरीके से करते रहो। रुटीन का काम भी करो और मन बदलने के लिए कुछ रुटीन से हटकर भी करो। पॉजिटिव सोचो, मेडिटेशन करो, एक्सरसाइज करो। प्रभाष ने अपने दोस्त की हर बात नहीं मानी, लेकिन ज़िंदगी के प्रति नजरिया बदला। काम को फिर से गंभीरता से लेने लगे और हर सुबह टहलना भी शुरू कर दिया। इससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से धीरे-धीरे मजबूत होने लगे। फिर अपने बॉस से खुलकर और समझदारी से बात की। इस बार उन्हें प्रमोशन मिल गया और अप्रेजल भी अच्छा हुआ है।
तनाव है? उदासी है? जानें हम हैं किस स्टेज पर
सामान्य (नॉर्मल) – यह एक आदर्श स्थिति होती है, लेकिन इसमें थोड़ा-बहुत ऊंच-नीच होना चलता है।
दें इन सवालों के जवाब – क्या आपको किसी बात का थोड़ा-बहुत स्ट्रेस रहता है?
क्या ऐसे हल्के तनाव की वजह से आप अपना काम बढ़िया करते हैं और जल्दी खत्म कर लेते हैं?
आपको भी भविष्य का हल्का-फुल्का डर रहता है?
क्या हल्की-फुल्की टेंशन के बावजूद रुटीन के काम, बर्ताव, रिश्ते आदि पहले जैसे रहते हैं?
क्या आप हर दिन खुश और संतुलित महसूस करते हैं?
क्या आप रात में आमतौर पर निश्चिंत होकर सोते हैं?
क्या आप टेंशन में होने के बावजूद अपने शौक को वक्त देते हैं, मैच देखते हैं, म्यूज़िक सुनते हैं?
क्या भविष्य की चिंता आपकी नींद खराब करती है?
क्या आप गहरी नींद सोते हैं और लगातार 7-8 घंटे की नींद ले पाते हैं?
आपके रिश्ते अपने संबंधियों और दोस्तों के साथ मजबूत हैं?
क्या काम के दबाव को सही तरीके से संभाल पा रहे हैं?
कभी ऑफिस के काम का दबाव घर तक नहीं लाते?
रात में टेंशन की वजह से बहुत ज्यादा मंचिंग नहीं करते?
क्या आप हफ्ते में कम से कम 3 से 4 दिन योग, मेडिटेशन और वॉक के साथ एक्सरसाइज भी करते हैं?
ध्यान दें: अगर ऊपर के सभी सवालों के जवाब हां में है तो यह एक सामान्य स्थिति है। ऐसे में आपको किसी सायकायट्रिस्ट या सायकॉलजिस्ट से हेल्प की जरूरत नहीं है।