
ज्योतिषीय उपचारों के लिए यज्ञ में वनस्पति का इस्तेमाल बताया गया है। वेदों और पुराणों के अनुसार ग्रह शांति का सबसे सशक्त माध्यम यज्ञ है। बाद में विद्वानों ने स्पष्ट किया है कि कौन-सी वनस्पति के काष्ठ की आहुति देने पर क्या उपचार हो सकता है। यज्ञाग्रि प्रज्वलित रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले काष्ठ को समिधा कहते हैं। प्रत्येक लकड़ी को समिधा नहीं बनाया जा सकता। आह्निक, सूत्रावली में ढाक, फल्गु, वट, पीपल, विकंकल, गूलर, चंदन, सरल, देवदारू, शाल, शैर का विधान है। वायु पुराण में ढाक, काकप्रिय, बड़, पिलखन, पीपल, विकंकत, गूलर, बेल, चंदन, पीतदारू, शाल, खैर को यज्ञ के लिए उपयोगी माना गया है।
दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में यज्ञ के लिए पलाश, शमी, पीपल, बड़, गूलर, आम व बिल्व को उपयोगी बताया है। उन्होंने चंदन, पलाश और आम की लकड़ी को तो यज्ञ के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया है। सूर्य के लिए अर्क, चंद्र के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए अपामार्ग, गुरु के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी और राहु के लिए दूर्वा व केतू के लिए कुश वनस्पतियों को उपचार का आधार बनाया जाता है।
* पर्वतों पर उगने वाले पौधे, मिर्च, शलजम, काली मिर्च व गेहूं को सूर्य के अधिकार में बताया गया है।
* इसी तरह खोपरा, ठंडे पदार्थ, रसीले फल, चावल और सब्जियां चंद्रमा से संबंधित हैं।
* नुकीले वृक्ष, अदरक, अनाज, जिन्सें, तुअर दाल और मूंगफली को मंगल से देखा जाएगा।
* बुध के अधिकार में नर्म फसल, ङ्क्षभडी, मूंग दाल और बैंगन आते हैं।
* बृहस्पति ग्रह से केले के वृक्ष, खड़ी फसल, जड़ें, बंगाली चना और गांठों वाले पादप जुड़े हैं।
* शुक्र के अधीन फलदार वृक्ष, फूलदार पौधे, पहाड़ी पादप, मटर, बींस और लताओं के अलावा मेवे पैदा करने वाले पादप आते हैं।
* शनि से संबंधित पादपों में जहरीले और कांटेदार पौधे, खारी सब्जियां, शीशम और तम्बाकू शामिल हैं।
* राहु और केतू के अधिकार में शनि से संबंधित पादपों के अलावा लहसुन, काले चने, काबुली चने और मसाले पैदा करने वाले पौधे आते हैं।
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