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जब कैलाश पर्वत पर पड़ती हैं सूर्य की किरणें तो चमकने लगती है ऊं की आकृति

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कैलाश मानसरोवर भगवान शिव एवं मां पार्वती का धाम है। हर आस्थावान व्यक्ति की मनोकामना होती है कि वह एक बार इस दिव्य धाम के दर्शन जरूर करे। कैलाश मानसरोवर का संबंध जितना श्रद्धा एवं भक्ति से है, उतना ही प्रकृति से भी है। यहां शिव की शक्ति प्रकृति के विभिन्न रूपों में प्रकट होती है। यूं तो कैलाश स्वयं साक्षात महादेव का रूप है लेकिन यहां के कई नजारे हैं जो सभी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि कुदरत खुद भगवान भोलेनाथ का शृंगार कर रही है। ऐसा ही एक दिव्य दृश्य है यहां पर्वत पर ऊं की आकृति का निर्माण जिनमें सूर्यदेव की किरणों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
जब पहली किरण करती है शिव का शृंगार – भगवान शिव के दर्शन के लिए हर साल अनेक तीर्थयात्री यहां आते हैं। इसका मार्ग बहुत कठिन है लेकिन श्रद्धा की शक्ति हर बाधा को पार कर लेती है। यहां हर सुबह एक अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। जब सूर्यदेव उदय होते हैं तो उनकी किरणें कैलाश पर्वत पर पड़ती हैं। उस समय इसका रंग सुनहरा हो जाता है। यही नहीं उस दौरान ऊं की आकृति का निर्माण होता है जिसके दर्शन अनेक तीर्थयात्रियों ने किए हैं।
मानसरोवर भगवान भोलेनाथ का स्थान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यहां महादेव साक्षात निवास करते हैं। अनेक पौराणिक कथाओं में इस स्थान का उल्लेख किया गया है। यहां प्रायः हर माह बर्फ गिरती है। यह पर्वत बर्फ की चादर से लिपटा हुआ बहुत सुंदर लगता है। यह अनेक ऋषि, महात्मा, दार्शनिक और श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। यह पर्वत शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है। कहते हैं कि यह सृष्टि के प्रारंभ से ही यहां विद्यमान है।
यहां ध्वनि और प्रकाश का एक विशेष कोण से संगम होता है जिससे ऊं की प्रतिध्वनि होती है। इसे ध्यान के जरिए सुना जा सकता है। बौद्ध धर्म के लिए भी यह स्थान बहुत पवित्र है। यहां बुद्ध के पवित्र रूप डेमचौक की खास महिमा है। धार्मिक मान्यता है कि यहां बुद्ध के अलावा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भी आए थे और उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
कहा जाता है कि यहां देवी सती का दायां हाथ गिरा था। यहां शक्तिपीठ भी स्थित है। झील के तट पर अनेक प्राचीन मठ हैं। यहां प्राचीन काल में विभिन्न ऋषियों-महात्माओं ने तपस्या की थी।

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