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राफेल फाइटर जेट बनाने वाली कंपनी क्या भारत को देगी झांसा? 110 विमानों के लिए फ्रांस-भारत में बात, डसॉल्ट के हाथों में DRAL कंट्रोल


भारत का फोकस AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) जैसे 5th-gen फाइटर पर भी है, लेकिन उसके लिए 2030-35 तक इंतज़ार करना होगा। तब तक राफेल फाइटर जेट ही भारत का प्राइमरी फोर्स मल्टीप्लायर होगा। ये डील एक ब्रिज कैपेबिलिटी है जो भारतीय वायुसेना को अगले दशक के लिए मजबूत बनाएगी।
भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के कम होते बेड़े को बैलेंस करने के लिए भारत सरकार फ्रांस के साथ बहुत बड़ा डिफेंस डील करने के लिए कमर कस चुकी है। फ्रांसीसी लड़ाकू विमान निर्माता कंपनी डसॉल्ट एविएशन और भारत के बीच 110 राफेल जेट्स की एक मेगा डील के लिए करीब करीब तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। दि प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक लड़ाकू विमानों के लेकर होने वाली ये डील सीधे सरकार से सरकार (G2G) के फॉर्मेट में की जाएगी और इसका स्केल ना सिर्फ एयरफोर्स के इतिहास में एक रेकॉर्ड होगा, बल्कि इंडो-पैसिफिक के पावर बैलेंस को भी हिलाकर रख देगा। दि प्रिंट की रिपोर्ट में कहा गया है कि डसॉल्ट एविएशन अब DRAL (Dassault Reliance Aerospace Limited) में पूरी हिस्सेदारी लेकर भारतीय डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अपने पैर और मजबूत करने जा रहा है। यह कदम भारत के लिए सिर्फ एक रक्षा सौदा नहीं, बल्कि मेक इन इंडिया के तहत आत्मनिर्भरता के आधार पर होगा।
आपको बता दें कि इससे पहले भी भारत की 2016 की फ्रांस के साथ राफेल डील फ्रांस सरकार से सीधे G2G फॉर्मेट में हुई थी, जिसमें पारदर्शिता और स्ट्रैटेजिक प्रायरिटी को प्राथमिकता दी गई थी। और अब 110 लड़ाकू विमानों के लिए भी इसी फॉर्मेट में डील होने की तैयारी चल रही है। G2G डील की खासियत ये होती है कि इसमें बिचौलिए नहीं होते, कोई बिडिंग कॉम्प्लेक्सिटी नहीं होती और डिलीवरी समय पर होती है। भारत को चीन और पाकिस्तान की दोहरी चुनौती का सामना करना है, लिहाजा G2G डील उसे एयर डॉमिनेंस में बढ़त दिला सकती है।
फ्रांस के साथ 110 राफेल विमानों का सौदा! – भारत के पास फिलहाल 36 राफेल फाइटर जेट हैं, जिनकी गूंज बालाकोट स्ट्राइक में दुनिया ने सुन चुकी है। लेकिन भारतीय वायुसेना की स्क्वाड्रन स्ट्रेंथ 42 होनी चाहिए और अभी ये सिर्फ 31 के आसपास है। लिहाजा भारत को तत्काल फाइटर जेट्स की संख्या को बढ़ाने की जरूरत है। भारत को हर हाल में एडवांस लड़ाकू विमानों की जरूरत है। लिहाजा 110 राफेल मिलने के बाद भारत को 6-7 नई स्क्वाड्रन मिल सकती हैं, जो नॉर्दर्न, वेस्टर्न और ईस्टर्न फ्रंट पर भारत की वायु-ताकत को पूर्ण संतुलन देगी। ये कदम चीन की J-20 और पाकिस्तान के JF-17 ब्लॉक III जैसे खतरों को जवाब देने में निर्णायक साबित होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक अब तक DRAL, भारत की डसॉल्ट और रिलायंस की जॉइंट वेंचर थी। लेकिन अब डसॉल्ट 100% हिस्सेदारी लेकर इस यूनिट को अपने नियंत्रण में ले रहा है। यानि कंपनी तो फ्रांस की ही होगी, लेकिन विमानों का उत्पादन भारत में किया जाएगा। ये भारत में लड़ाकू विमानों के निर्माण का इकोसिस्टम तैयार करेगा। जिसका सीधा मतलब है कि ज्यादा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, तेज प्रोडक्शन और मेक इन इंडिया का बड़ा बूस्ट। DRAL अब सिर्फ एक असेंबली प्लांट नहीं रहेगा, बल्कि अब ये राफेल के कॉम्पोनेंट्स, सर्विसिंग और अपग्रेडिंग का ग्लोबल हब बन सकता है।
इस डील से भारत को क्या फायदे होंगे? – इंडस्ट्रियल इकोसिस्टम को बूस्ट- टियर 2 और टियर 3 इंडियन सप्लायर्स को फ्रेंच टेक्नोलॉजी के साथ इंटीग्रेट किया जा सकेगा।
हजारों नौकरियां– मैन्युफैक्चरिंग, मेंटेनेंस और सप्लाई चेन के जरिए भारत में हजारों नई नौकरियां पैदा हो सकेंगी। जिसा सीधा फायदा स्थानीय कार्यबल को होगा।
एक्सपोर्ट पोटेंशियल– भारत से अफ्रीका और एशिया के छोटे देशों को राफेल के स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई हो सकती है। ऐसा हम ग्रीक के मामले में देख चुके हैं। ग्रीक को भारत ने राफेल फाइटर जेट के कई पार्ट्स की सप्लाई की है। जिसका एक मतलब ये भी गया है कि यूरोपीय देशों को अब भारत के हथियार निर्माण क्षमता में विश्वास होने लगा है।
इसके अलावा भारत को सामरिक और रणनीतिक फायदे भी होंगे। राफेल सिर्फ एक लड़ाकू विमान नहीं है, बल्कि यह एक मल्टीरोल मशीन है जो हवा में लड़ाई, जमीनी टारगेट और समुद्री हमले, तीनों मोर्चों पर एक साथ काम कर सकता है। SCALP मिसाइल और Meteor एयर-टू-एयर मिसाइल से लैस राफेल भारत की मारक क्षमता को 300-400 किमी तक बढ़ा देता है।
फ्रांसीसी कंपनी ने भारत से क्या वादा किया है? – डसॉल्ट ने पूर्ण स्वामित्व की मांग 2013-14 के MRCA डील के समय हुई बातचीत के अनुभव से आया है, जब उसने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की तरफ से बनने वाले राफेल जेट की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था। फ्रांसीसी कंपनी ने एचएएल की क्वालिटी और समयसीमा के भीतर राफेल फाइटर जेट बना लेने की क्षमता पर सवाल खड़े किए थे और उसी वजह से उस वक्त सौदा नहीं हो पाया था। IDRW की 2024 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि डसॉल्ट ने तर्क दिया कि DRAL का कंट्रोल अगर उसके हाथों में आ जाता है तो वो पूर्ण क्वालिटी वाला राफेल भारत में निर्माण करेगा, उसकी क्वालिटी की गारंटी लेगा और भारत से राफेल जेट्स के निर्यात को बढ़ावा देगा। इसके अलावा कंपनी ने दावा किया है कि वह DRAL में हर महीने दो राफेल जेट का उत्पादन कर सकती है, जिससे पांच साल के भीतर MRF टेंडर के तहत वो भारत को सभी फाइटर जेट्स दे देगी। हालांकि कई एक्सपर्ट्स को डिलीवरी के वादे पर शक है, क्योंकि फ्रांस में कंपनी के साथ कुछ समस्याएं हैं। कंपनी ने 2023 में 15 के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 13 राफेल का उत्पादन किया, जिसके पीछे कोविड को भी एक बड़ा फैक्टर माना जा सकता है।
क्या फ्रांसीसी कंपनी दे सकती है भारत को झांसा? – रिपोर्ट के मुताबिक इस सौदे के तहत फ्रांसीसी कंपनी को भारत में लड़ाकू विमानों के उत्पादन के लिए एक इको-सिस्टम बनाना होगा। जिसके लिए राफेल बनाने के दौरान उसे इस फाइटर जेट्स के लिए कंपोनेंट्स भारतीय कंपनियों से खरीदने होंगे। 2016 के राफेल सौदे के ऑफसेट दायित्वों, जिसके तहत डसॉल्ट को अनुबंध मूल्य का 50% (लगभग 4 बिलियन) भारत के डिफेंस सेक्टर में निवेश करना है, जिसके तहत एयरफ्रेम कंपोनेंट्स के लिए एलएंडटी, महिंद्रा समूह, कल्याणी समूह और गोदरेज एंड बॉयस जैसी भारतीय फर्मों के साथ साझेदारी शामिल थी, साथ ही एयरो-इंजन पार्ट्स के लिए स्नेकमा एचएएल एयरोस्पेस लिमिटेड के साथ ज्वाइंट वेंचर भी शामिल था, उसे मानना होगा।