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संस्कृत का प्रचार-प्रसार करेगा भारत का यह पड़ोसी देश, राष्ट्रपति बोले- पूर्वाग्रह के कारण इसका हुआ पतन

राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से कुछ वर्गों तक सीमित रहने के कारण संस्कृत शिक्षा का पतन हुआ। उन्होंने नेपाल की समृद्ध संस्कृत विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लिच्छवि और मल्ल काल के शिलालेख इस भाषा के साथ देश के ऐतिहासिक संबंधों को प्रमाणित करते हैं।
नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने कहा है कि संस्कृत शिक्षा के ऐतिहासिक रूप से कुछ वर्गों तक सीमित होने के कारण इस भाषा का पतन हुआ। उन्होंने साथ ही संस्कृत के प्रचार और संरक्षण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता भी दोहरायी। ‘काठमांडू पोस्ट’ अखबार में शुक्रवार को प्रकाशित खबर के मुताबिक, बृहस्पतिवार को यहां 19वें विश्व संस्कृत सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पौडेल ने नेपाल की समृद्ध संस्कृत विरासत पर प्रकाश डाला और कहा कि देश का नाम वेदों में आता है।
लिच्छवि और मल्ल काल के शिलालेख में संस्कृत का प्रयोग – राष्ट्रपति ने कहा कि लिच्छवि तथा मल्ल काल के 200 से अधिक संस्कृत शिलालेख इस भाषा के साथ देश के ऐतिहासिक संबंधों को प्रमाणित करते हैं। नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रम में भारत, यूरोप और अमेरिका से प्रमुख रूप से संस्कृत के विद्वान, शोधकर्ता और छात्र शामिल हुए।
संस्कृत के प्रयोग में आई गिरावट पर यह कहा – उन्होंने संस्कृत के प्रयोग में आई गिरावट पर भी बात की और कहा, ”संस्कृत का दैनिक जीवन में प्रचलन कम हो गया है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से महिलाओं और निम्न जाति के समुदायों द्वारा इसका अध्ययन प्रतिबंधित था। लेकिन सरकार अब इसके प्रचार और संरक्षण पर काम कर रही है।”
संस्कृत एक पौराणिक भाषा – कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारतीय धार्मिक गुरु चिन्ना जीयार स्वामी ने संस्कृत को एक ”पौराणिक भाषा” बताया जो वेदों के माध्यम से दुनिया को एकजुट करती है।