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बड़े सियासी ध्रुवीकरण के बाद भी बिहार ने दुनिया को कैसे दिया लोकतंत्र का बड़ा संदेश

बिहार ने इस बार अपने वोटिंग रिकॉर्ड को तोड़ते हुए एक नया इतिहास लिखा है। करीब 67% मतदान के साथ राज्य ने अब उन ‘चेतन’ और अधिक वोटिंग वाले मसलन तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों की श्रेणी में कदम रख दिया है। लंबे समय तक पीछे रहने वाला बिहार अब मतदान के मामले में बड़ी छलांग लगाता दिखाई दे रहा है। यह बदलाव लंबे समय तक चर्चा में रहेगा।
मतदान में पुरुषों से आगे निकलीं महिलाएं – सबसे प्रभावशाली दृश्य महिला वोटरों का था। महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6%, पुरुषों से लगभग नौ प्रतिशत अधिक। पिछले 75 वर्षों के भारतीय चुनावों में इतनी बड़ी लिंग-आधारित बढ़त लगभग अनसुनी है। पिछले दस वर्षों में महिलाएं लगातार पुरुषों से अधिक मतदान कर रही हैं, और इस बार महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं और हाल में किए गए नकद हस्तांतरणों ने इसे और मजबूत किया। 1.3 करोड़ जीविका दीदियों का संगठित नेटवर्क अब आर्थिक और राजनीतिक, दोनों रूप से एक मजबूत शक्ति बन चुका है। चुनाव नतीजों में इस ‘महिला प्रभाव’ की छाप साफ दिखाई देती है।
वोटिंग में एक्टिव हुआ यूथ – युवा मतदाताओं की भागीदारी भी चुनाव से पहले ही गर्म हो चुकी थी। नौकरियों, पलायन और ‘विकल्प राजनीति’ के नए विमर्शों ने युवाओं को पहले से अधिक सक्रिय बनाया। उम्र और जाति आधारित विस्तृत आंकड़े अभी आएंगे, लेकिन नए रजिस्ट्रेशन की संख्या बहुत कुछ बता देती है। चार विशेष अभियानों में 22 लाख नए युवा मतदाता जुड़े, जिससे साफ संकेत मिलता है कि युवाओं ने इस बार मतदान बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विशेष गहन पुनरीक्षण ने किया कमाल – बिहार में पहली बार लागू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) 2025 ने भी इस बढ़ी हुई वोटिंग में अहम योगदान दिया। चुनाव विश्लेषकों का मानना रहा है कि मतदाता सूची में मृत, पलायन कर चुके या दोहराए गए नामों के कारण मतदान प्रतिशत कम दिखाई देता है। SIR अभियान ने ऐसे लगभग 65 लाख नाम हटाकर मतदाता सूची को अधिक वास्तविक बनाया। इससे न सिर्फ आंकड़े सही हुए, बल्कि शुरुआत से ही वोटर जागरूकता भी बढ़ी। अगर इसे पूरे देश में लागू किया जाए, तो लोकसभा चुनावों का मतदान 70% के पार जा सकता है। हालांकि देश के 30 करोड़ प्रवासी मतदाता अभी भी बड़ी चुनौती बने हुए हैं, जिन तक पहुँचना SIR जैसे अभियानों के लिए भी मुश्किल है। चुनाव आयोग को इन गायब मतदाताओं को जोड़ने के नए तरीके खोजने होंगे।
सियासी मुकाबला ने भी बढ़ाया मतदान प्रतिशत – चुनाव की गर्मी और राजनीतिक मुकाबला भी इस रिकॉर्ड मतदान के पीछे एक कारक रहा। बिहार के गठबंधनों, जातीय समीकरणों और नई ‘विकल्प राजनीति’ ने पूरे चुनाव को बेहद प्रतिस्पर्धी बना दिया था। हालांकि बिहार के चुनाव कभी भी सुस्त नहीं रहे, फिर भी मतदान हमेशा इतना ऊंचा नहीं रहा। इस बार सत्ताधारी दल निश्चित रूप से यह दावा कर सकता है कि उसकी महिलाकेंद्रित नीतियों ने बड़ा असर डाला।