
केतु के कुपित होने पर जातक के व्यवहार में विकार आने लगते हैं, काम वासना तीव्र होने से जातक दुराचार जैसे दुष्कृत्य करने की ओर उन्मुख हो जाता है। इसके अलावा केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से गर्भपात, पथरी, गुप्त और असाध्य रोग, खांसी, सर्दी, वात और पित्त विकार जन्य रोग, पाचन संबंधी रोग आदि होने का अंदेशा रहता है। केतु तमोगुणी प्रकृति का ग्रह है, जिसका वर्ण संकर है। केतु की स्वराशि मीन है। धनु राशि में यह उच्च का और मिथुन राशि में नीच का होता है। वृष, धनु और मीन राशि में यह बलवान माना जाता है। जिस भाव के साथ केतु बैठा होता है उस पर अपना अच्छा या बुरा प्रभाव अवश्य डालता है। इसका विशेष फल 48 या 54 वर्ष में मिलता है। जन्म कुंडली के लग्न, षष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है। इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते हैं। उसका जीवन संघर्ष और कष्टपूर्ण स्थिति में बना रहता है।
उपाय जो किए जा सकते हैं
केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए जातक को लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कराकर शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को धारण करना चाहिए। केतु के मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र है :
‘पलाश पुष्प संकाशं, तारका ग्रह मस्तकं।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तम के तुम प्रण माम्य्हम।’
साथ ही अभिमंत्रित असगंध जड़ को नीले धागे में शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को धारण करने से भी केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होने लगते हैं। केतु ग्रह की शांति के लिए तिल, कम्बल, कस्तूरी, काले पुष्प, काले वस्त्र, उड़द की काली दाल, लोहा, काली छतरी आदि का दान भी किया जाता है।
केतु के रत्न लहसुनिया को शुभ मुहूर्त में धारण करने से भी केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है। केतु के दोषपूर्ण प्रभाव से बचने के लिए लोहा या मिश्रित धातु का एक यंत्र बनवाया जाना चाहिए जिसे ॐ प्रां प्रीं प्रूं सह केतवे नम: का जप करके इस यंत्र को सिद्ध करना चाहिए। सिद्ध किया हुआ यंत्र जहां भी स्थापित किया जाएगा, वहां केतु का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ेगा। केतु के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए नवग्रहों के साथ-साथ लक्ष्मी जी और सरस्वती जी की आराधना भी करनी चाहिए।
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