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Love marriage के आसान टिप्स


जीवन रूपी नाव को संतुलित ढंग से चलाने के लिए विवाह रूपी पतवार की आवश्यकता होती है। हर युवक की यह इच्छा होती है कि उसे एक सुंदर दुल्हन मिले। इसी प्रकार हर युवती की कामना होती है कि उसे जीवन साथी के रूप में ऐसा पति मिले जो उसे भरपूर प्यार करे और साथ ही उसकी सारी इच्छाओं को पूरा करे। अविवाहित युवक-युवती के मन में यह जानने की प्रबल इच्छा होती है कि उसका विवाह कब, कहां और किसके साथ होगा। प्रेम विवाह होगा या अभिभावक के चयन द्वारा? ज्योतिष शास्त्र के पास इन सभी जिज्ञासाओं का समाधान है।

कंवैंशनल मैरिज वह होता है, जिसमें अभिभावक उचित चयन के बाद अपने बच्चों का विवाह प्रचलित रीति-रिवाज से करते हैं। नॉन कंवैंशनल मैरिज उसे कहा जाता है जिसके अंतर्गत पहले प्रेम संबंध बनता है फिर उसे या तो अरेंज मैरिज का रूप दिया जाता है या फिर कोर्ट आदि के माध्यम से विवाह कर दिया जाता है। समजातीय, अंतर्जातीय या अंतर्धर्म विवाह भी इसी रीति में आता है। प्रेम विवाह के लिए कौन-सा ग्रह उत्तरदायी है तथा प्रेम विवाह के योग कैसे बनाते हैं, इसी संबंध में यहां विस्तार से बताया जा रहा है।

लग्नेश का यदि क्रूर ग्रह के साथ संबंध हो या लग्नेश स्वयं नीच का हो या कुंडली के नवम भाग में कोई नीच ग्रह उपस्थित हो, साथ ही चंद्रमा का संबंध शनि या राहू से हो लेकिन बृहस्पति लग्नेश को देख रहा हो या पांचवें या नवम भाव में वह अपनी ही राशि का हो या उच्च का हो तो प्रेम विवाह का योग बनता है जिसमें अभिभावक की स्वीकृति प्राप्त होती है।

जन्मपत्री के लग्न एवं नवांश कुंडली में या फिर दोनों में से किसी एक में अगर पंचमेश का संबंध सप्तमेश से हो या फिर दोनों साथ-साथ बैठे हों या एक-दूसरे के वास स्थान पर बैठे हों या एक-दूसरे से दृष्टि संबंध रखते हों तो प्रेम विवाह अभिभावक की मर्जी के खिलाफ ही होगा।

लग्नेश या लग्न का क्रूर ग्रह से संबंध हो, पञ्चमेश को कोई क्रूर ग्रह देख रहा हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो या शुक्र पंचम भाव में हो या नवम भाव में नीच ग्रह हो या सूर्य नीच भाव में हो तो प्रेम विवाह बिना अभिभावक की स्वीकृति के ही होगा।

अगर कुंडली में बृहस्पति उचित स्थान पर न हो तो प्रेम विवाह होने के बाद का जीवन अत्यंत कलहपूर्ण एवं अलगाववाद का होता है क्योंकि विवाह का कारक ग्रह शुक्र अत्यंत दुखद स्थिति में होकर अनेक ऐसे योगों को उपस्थित कर देता है जो वैवाहिक जीवन में अत्यंत कड़वाहट पैदा करते हैं। इन्हीं कारणों से प्रेम विवाह आगे चलकर या तो टूट जाता है या कड़वाहट से भरा होता है।

लग्न एवं नवांश कुंडली में या फिर दोनों में से किसी एक में अगर लग्नेश एवं सप्तमेश के बीच संबंध हो अर्थात सप्तमेश लग्न में हो और लग्नेश सप्तम में हो या किसी अन्य भाव के साथ दोनों साथ-साथ बैठे हों, एक-दूसरे के घर में बैठे हों या दोनों एक-दूसरे पर दृष्टि डालते हों तो प्रेम विवाह अभिभावक की सहमति से होगा।

लग्न में केतु हो, लग्न कुंडली में मंगल उच्च का या स्वराशि का हो, साथ में लग्न एवं नवांश कुंडली में शुक्र का संबंध मंगल से बन रहा हो, पंचमेश नीच स्थान में हो या नीच ग्रह के साथ हो, किसी भी हालत में यदि बृहस्पति कुंडली में प्रबल हो एवं कारक हो साथ ही उसकी दृष्टि या युति पांचवें भाव या भावेश, नौ भाव या भावेश, लग्न या लग्नेश पर हो तो प्रेम विवाह कंवैंशनल होता है।

लग्नेश या सप्तमेश अगर क्रूर ग्रह हों एवं दोनों में से एक को भी अगर बृहस्पति देखता हो या उसमें बृहस्पति की युति हो या अन्यत्र किसी तरह से बृहस्पति का संबंध हो तो प्रेम विवाह अभिभावक की स्वीकृति से सम्पन्न होता है।

अगर कुंडली का लग्नेश नीच का हो, बृहस्पति अपने नीच स्थान में हो, सप्तमेश पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो, शुक्र का संबंध मंगल या शनि से हो एवं मंगल उच्च स्थान का हो तो अंतर्जातीय विवाह की संभावना बढ़ जाती है। अगर सप्तमेश की नजर कुंडली के बारहवें स्थान पर हो या द्वादश स्थान पर मंगल के साथ राहू हो तो विवाह की संभावना अपने धर्म से अलग भी हो सकती है।