
हमने अपने बड़े-बूढ़ों से सुना होगा कि प्राचीन समय में श्रापों का बहुत महत्व था। कहते हैं कि इन श्रापों के आगे बड़े से बड़ा देवता भी नहीं टिक पाया। पौराणिक कथाओं की मान्यता के अनुसार श्राप एक एेसा वचन माना जाता था जिसे देने का सामर्थ्य केवल ऋषि मुनि, देवी-देवता, या फिर ऐसे मनुष्य जिन्होंने कभी पाप न किया हो, जिन्होंने योग तपस्या से अपनी सात्विक इन्द्रियां जाग्रत की हों। तो आइए आज जानते हैं कुछ एेसे श्रापों के बारे में जिसको आज कल के समय में भी याद किया जाता है।
ये हैं वो श्राप-
महाभारत युद्ध में कौरवों के हार जाने से निराश होकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया था कि जिस प्रकार पांडव व कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए थे ठीक इसी भांति तुम भी आज से छत्तीसवें साल बंधू-बंधवों का वध करोगे।
इसके साथ ही महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद युधिष्ठिर ने दुखी होकर स्त्रियों को श्राप दिया था कि वो किसी भी प्रकार की बात को कभी छुपा नहीं पाएंगी। यहीं कारण है कि ये श्राप आज भी सभी स्त्रियों पर लागू है।
युद्ध आरंभ होने से पहले उर्वशी ने अर्जुन को यह श्राप दिया था कि वह नपुंसक हो जाएगा और उसको महिलाओं में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा।
एक मान्यता के अनुसार राजा अनरण्य व रावण के बीच जब युद्ध हुआ था तब उस युद्ध के अंदर राजा अनरण्य कि मृत्यु हुई थी तब राजा अनरण्य ने मरते-मरते रावण को श्राप दिया था की रावण की मौत का कारण रघुवंशी ही होगा।
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