जैसे कि सब जानते हैं कि आज यानि गुरुवार के दिन हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार सकट चौथ मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं संतान की सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। सकट चौथ का ये व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। ज्योतिष की मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रमा का पूजन करना बहुत फलदायी माना जाता है। इसके साथ ही कहा जाता है कि अगर इस दिन पूजन के साथ-साथ इनका यानि चंद्रदेव का दर्शन करता है उसकी कुंडली के सभी चंद्र दोष खत्म हो जाते हैं। पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक तो गणेश और चंद्रदेव का आपस में बैर माना जाता है। तो आइए जानतें हैं इसके जुड़ी पौराणिक कथा, जिसमें इस बात का पूरा उल्लेख किया गया है कि आख़िर क्यों गणेश भगवान ने चंद्रमा से नाराज़ होकर उन्हें श्राप दे दिया था।
भगवान गणेश और चंद्रदेवबता दें कि भगवान शंकर के पुत्र गणेश भी अपने पिता ही की तरह हैं जब वो अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं तो उनके जीवन में नए रंग ला देते हैं, तो वहीं अगर कोई इनके गुस्से का शिकार हो जाता है तो ये उसके जीवन को बेरंग भी कर देते हैं। आज हम आपको इनके एक ऐसे भक्त के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें इनके गुस्से का शिकार होना पड़ा था जिसे वो आज भुगत रहे हैं। बता दें हम बात कर रहे रहे हैं चंद्रदेव की।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार धन के देवता कुबेर भगवान शिव और माता पार्वती के पास अपने यहां भोजन करने के लिए आमंत्रित करने कैलाश पर्वत पहुंचे। लेकिन शिवजी कुबेर की मंशा को समझ गए थे कि वे सिर्फ अपनी धन-संपत्ति का दिखावा करने के लिए उन्हें अपने महल में आमंत्रित कर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कार्य में उलझे होने का कारण बताते हुए आने से मना कर दिया। अब जहां भगवान शंकर नहीं जाएंगे जाहिर सी बात है वहां माता पार्वती का क्या काम तो माता पार्वती ने उन्हें ये बोलकर मना कर दिया कि अगर उनके पतिदेव नहीं जाएंगे तो वो भी नहीं जाएंगी। ऐसे में कुबेर दुखी हो गए और भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। तब शिवजी मुस्कुरा कर बोले कि आप मेरे पुत्र गणेश को ले जाएं।
भगवान गणेश और चंद्रदेवजब गणेश भगवान कुबेर के महल से भोजन करके लौटे तो उन्होंने कुछ मिठाइयां अपने ज्येष्ठ भ्राता कार्तिकेय के लिए ले ली और अपने मूषक पर सवार होकर निकल पड़े। रात का अंधेरा था, लेकिन चंद्रमा की रोशनी से कैलाश पर्वत चमक रहा था तभी गणेशजी के मूषक ने मार्ग में एक सर्प देखा और भय से उछल पड़े। जिसके कारण वह संतुलन खो बैठे और नीचे गिर पड़े और उनकी सारी मिठाइयां भी धरती पर बिखर गईं। दूर आसमान से चंद्रमा उन्हें देख रहा था। जैसे ही गणेश जी आगे बढ़े और अपनी मिठाइयों को एकत्रित करने लगे तो उन्हें हंसने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने नज़र दाए-बाएं घुमाई तो उन्हें कोई न दिखा। लेकिन जैसे ही उनकी आंखें आकाश पर पड़ीं तो उन्होंने चंद्रमा को हंसते हुए देखा।
यह देख गणेशजी बेहद शर्मिंदा हुए लेकिन दूसरे ही पल उन्हें यह एहसास हुआ कि उनकी मदद करने के स्थान पर चंद्रमा उनका मज़ाक बना रहा है। वे पल भर में क्रोध से भर गए और चंद्रमा को चेतावनी देते हुए बोले, “घमंडी चंद्रमा! तुम इस प्रकार से मेरी विवशता का मजाक उड़ा रहे हो। यह तुम्हें शोभा नहीं देता। मेरी मदद करने की बजाय तुम मुझ पर हंस रहे हो, जाओ मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि आज के बाद तुम इस विशाल गगन पर राज नहीं कर सकोगे। कोई भी तुम्हारी रोशनी को आज के बाद महसूस नहीं कर सकेगा। आज के बाद कोई भी तुम्हें देख नहीं सकेगा।“
भगवान गणेश और चंद्रदेवजैसे ही उन्होंने उन्हें श्राप दिया वैसे ही चारों ओर अंधेरा फैल गया। अपनी भूल के अहसास होते ही चंद्रमा गणेश जी से माफ़ी मांगने लगे और उन से रहम की भीख मांगने लगे। बोले, “कृपया आप मुझे माफ कर दीजिए और मुझे अपने इस श्राप से मुक्त कीजिए। यदि मैं अपनी रोशनी इस संसार पर नहीं फैला पाया तो मेरे होने न होने का अर्थ खत्म हो जाएगा।“ चंद्रमा को यूं लाचार देखकर गणेशजी का गुस्सा कम होने लगा।
भगवान गणेश और चंद्रदेववे मुस्कुराए और उन्होंने चंद्रमा को माफ किया और कहा मैं अब चाहकर भी अपना श्राप वापस नहीं ले सकता। परन्तु इस श्राप के असर को कम करने के लिए मैं तुम्हे एक वरदान ज़रूर दे सकता हूं।“
गणेशजी ने चंद्रमा से कहा कि ऐसा अवश्य होगा कि तुम अपनी रोशनी खो दोगे लेकिन एक माह में ऐसा केवल एक ही बार होगा। इसके बाद तुम फिर से समय के साथ वापस बढ़ते जाओगे और फिर 15 दिनों के अंतराल में अपने सम्पूर्ण वेष में नज़र आओगे।
कहा जाता है कि गणेशजी का ये श्राप आज भी कायम है। चंद्रमा आज भी धीरे-धीरे कम होता है और माह में एक दिन अपने पूर्ण आकार में आता है, जिसे पूर्णमासी कहा जाता है।