हिंदू धर्म में वैसे तो बहुत से ग्रंथ प्रचलित हैं, लेकिन रामायण एक ऐसा ग्रंथ है जिसे पढ़ने या सुनने मात्र से ही मन को एक अलग ही शांति का अनुभव होता है। रामायण में वर्णित हर एक प्रसंग व्यक्ति को एक अलग ही ज्ञान देता है। आज हम आपको एक ऐसे ही प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें ये बताया गया है कि कैसे इंसान के अच्छे व बुरे कर्मों का फल ही उसका भाग्य बनता है।
भगवान राम के वनवास के समय में जब राजा दशरथ को एहसास हुआ कि अच्छे व बुरे कर्मों के फल से ही भाग्य बनता है। कोई व्यक्ति जैसा काम करेगा वैसा ही उसके भाग्य का निर्माण होगा। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति बहुत मेहनत करता है लेकिन फिर भी उसे उसकी मेहनत के उलट ही परिणाम मिलते हैं, तो ऐसे में व्यक्ति अपने भाग्य को ही कोसता है।
राम जी को जब वनवास हुआ तो भाई लक्ष्मण और माता सीता भी उनके साथ वनवास गए। तब राजा दशरथ इस पूरी घटना को ही नियति का खेल बता रहे थे। उनका कहना था कि ये सब पहले से ही उनके भाग्य का लिखा था। राम के जाने के बाद जब वे अकेले कौशल्या के साथ थे तो उन्हें अपनी गलतियां नजर आने लगी। उन्हें याद आया कि उनसे युवावस्था में श्रवण कुमार की हत्या हुई थी, बूढ़े मां-बाप से उनका एकलौता सहारा छिन गया था और इसलिए ये उसी का परिणाम है, जो आज उनके सामने आया।