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क्या आप जानते हैं रावण के इन सपनों के बारे में ?


यह बात तो बिलकुल सत्य है कि ज्ञानी और विद्वान व्यक्ति की प्रशंसा स्वयं भगवान भी करते हैं और यह बात रावण के जीवन को देखते हुए कही गई है। शास्त्रों में विख्यात है कि रावण को बहुत सी कलाओं और ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त था और रावण के ज्ञान का सम्मान भगवान श्रीराम भी करते थे। लेकिन ज्ञान होने के बाद भी रावण में अहंकार बहुत था और यही अहंकार उसे बुरे कर्मों के मार्ग पर धकेलता रहा। रावण एक बहुत बड़ा योद्धा तो था ही इसके साथ ही उसमें इतनी योग्यता भी थी कि वह अपने हर सपने को पूरा कर सकता था। लेकिन प्रकृति की इच्छा के आगे किसी की आज तक नहीं चली और इच्छाओं को पूरा करने से पहले ही वह मृत्यु को प्राप्त हो गया था। रावण अपनी बुद्धि, विद्या और तप के बल पर प्रकृति के बहुत से नियमों को अपनी सुविधा के लिए बदलना चाहता था। किंतु आज हम आपको उसकी इच्छाऔं के बारे में विस्तार से बताएंगे।
रावण बहुत बड़ा विद्वान था। उसे धर्म-शास्त्र-ज्योतिष के साथ ही विज्ञान और तकनीक का ज्ञान था। यही वजह थी कि दुष्ट प्रवृत्ति का होने के बाद भी भगवान राम उसके ज्ञान का सम्मान करते थे। रावण मृत्यु पर विजय प्राप्त करना चाहता था ताकि वह सदा-सदा के लिए इस पृथ्वी पर वास कर सके और मनुष्य उसे ही भगवान मानकर उसकी पूजा करें।
रावण पृथ्वी और स्वर्गलोक के बीच सीढ़ी बनाना चाहता था ताकि अपनी इच्छा के अनुसार, वह किसी को भी सशरीर स्वर्ग भेज सके। इंद्रदेव रावण की योग्यता से परिचित थे यही कारण था कि वह उसकी इस इच्छा से भयभीत भी थे।
धर्म ग्रंथों और कथा-कहानियों के माध्यम से यह तो हम सभी जानते हैं कि उस काल में पीने के पानी की कोई कमी नहीं थी लेकिन रावण अपने ज्ञान और बुद्धि के कारण यह जानता था कि आने वाले समय में पानी के लिए संघर्ष बढ़ेगा। इसलिए वह समुद्र का पानी मीठा करना चाहता था ताकि पीने के पानी को लेकर कभी संघर्ष ही न हो।

कई कथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि रावण खून का रंग सफेद करना चाहता था। इसका कारण यह था कि अपने बल और पराक्रम से जब वह अपने शत्रुओं का संहार करे तो उनके रक्त के कारण पृथ्वी लाल न हो और जल के माध्यम से उस रक्त को साफ किया जा सके।
रावण को सोने यानि स्वर्ण से बहुत अधिक प्रेम था। यही वजह थी कि उसकी लंका स्वर्ण से निर्मित थी। रावण अपने इसी स्वर्ण प्रेम के कारण स्वर्ण में सुगंध भरना चाहता था ताकि दुनिया में कहीं भी उपस्थित स्वर्ण को उसकी सुगंध से पहचाना जा सके।