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होली

 

हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था जिसने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि ना वह किसी मनुष्य या जानवर द्वारा, ना पृथ्वी पर ना आकाश में, ना अपने महल में या महल के बाहर, ना दिन में ना रात में, या ना कोई हथियार द्वारा मारा जा सकता है।

वरदान प्राप्त करने के बाद, उसने सोचा कि वह अमर हो गया है। उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया और लोगों को भगवान विष्णु के बजाय उसकी पूजा करने के लिए मजबूर किया। जो कोई उसकी पूजा नहीं करता था उसे मार डाला जाता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हर समय भगवान विष्णु के नाम का जप करता था। हिरण्यकश्यप ने उसे रोकने की कोशिश की और खुद को भगवान के रूप में पूजा करने के लिए मजबूर किया। जब प्रह्लाद ने उसकी बात नहीं मानी तो उसे कारागार भेज दिया और प्रताड़ित किया। प्रह्लाद ने भगवान विष्णु के नाम का जाप करके सभी कुर्ताओं को सहन किया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के पास अग्निरोधक कंबल था। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता में बैठने की पेशकश की। वह जानती थी कि जब तक उसके पास अग्निरोधक कंबल होगा तब तक वह सुरक्षित रहेगी। उसकी योजना प्रह्लाद को चिता में जिंदा जलाने की थी। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से, होलिका के सिर से प्रह्लाद पर कंबल फिसल गया और होलिका उस चिता में जिंदा जल गई। प्रहलाद बिना जले या खरोंच के आग से बाहर आ गया। हिरण्यकश्यप को जब पता चला कि होलिका जल गई है और प्रह्लाद जीवित है तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद को स्वयं मारने का निश्चय किया। उसके प्रह्लाद को आखिरी मौका दिया के वह हिरण्यकश्यप को भगवान मान ले। प्रह्लाद अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ भगवान विष्णु के नाम का जाप करता रहा। हिरण्यकश्यप ने पूरी तरह से अपना धैर्य खो दिया और प्रह्लाद से पूछा, कहाँ हैं तुम्हारे भगवान विष्णु?” प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु सर्वव्यापी हैं।हिरण्यकश्यप ने गुस्से में एक खंभे कि ओर इशारा किया और पूछा क्या वह इस खंभे में भी है?” और खंभे पर वार किया। भगवान नरसिंह उसी खंभे से प्रकट हो गए। भगवान नरसिंह आधे मानव (नर) और आधे शेर (सिंह) थे। उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठाया और अपनी गोद में लेटा कर अपने तेज पंजों से उसे महल की दहलीज पर मार डाला। उस समय सूर्य अस्त ही हो रहा था।हिरण्यकश्यप का वध करते समय, भगवान नरसिंह ने उसे इशारा किया कि वह ना तो मनुष्य है और ना ही जानवर, उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखा है इसलिए वह ना तो पृथ्वी पर है ना आकाश में, सूर्य अभी अस्त हो रहा है इसलिए अभी ना दिन है और ना रात है, वह महल की दहलीज पर है, इसलिए वह ना तो उसके महल के अंदर है और ना ही बाहर, और वह हिरण्यकश्यप को मारने के लिए अपने पंजों का इस्तेमाल कर रहे है। भगवान नरसिंह ने का वध किया और प्रह्लाद की सुरक्षा सुनीश्चित की।

यह घटना फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन घटी थी। अतएव फाल्गुनी पूर्णिमा में होलिका-दहन की परंपरा बन गई। मान्यता है कि होलिका के भस्म हो जाने पर दूसरे दिन भक्तजनों ने आनंदोत्सव मनाया था। अत: चैत्रमास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा (परीवा) के दिन यह उत्सव लोग बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं।

 

होलिका दहन के इस प्रसंग को लोग प्रतीकात्मक रूप में मनाते हैं। यह अधर्म पर धर्म की विजय का ही पर्व है। इसमें हम अपने अहंकार और अन्य बुराइयों को भस्म करते हैं और अच्छाइयों की विजय का उल्लास मनाते हैं। होलिका दहन से यह आध्यात्मिक संदेश मिलता है कि ईश्वर सत्य है। जो अच्छाइयों की राह पर चलता है, उसे स्वत: ईश्वरीय सुरक्षा प्राप्त होती है। भक्तराज प्रह्लाद से हमें ईश्वर में आस्था रखकर अपने कर्म पर अटल रहने की प्रेरणा मिलती है।