बांग्लादेश की अंतरिम राजनीति फिलहाल एक अनिश्चित मोड़ पर है। भारत के लिए यह एक ऐसा पड़ाव है जहां प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि रणनीति चाहिए। मोहम्मद यूनुस सिर्फ बंगाल की खाड़ी में नहीं, बल्कि म्यांमार की सीमा पर भी भारत को परेशान करने जा रहे हैं। मोहम्मद यूनुस भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुके हैं।
खुद को लोकतंत्र का सिपाही बताने वाला जॉर्ज सोरोस का बांग्लादेशी प्यादा मोहम्मद यूनुस खुद लोकतंत्र का गला दबोचे सिंहासन पर बैठा हुआ है। मोहम्मद यूनुस इलेक्शन से डर रहे हैं और हर वो बहाने बना रहे हैं, जिससे देश में चुनाव ना हो पाए। मोहम्मद यूनुस की नेतृत्व में बांग्लादेश में इस्टॉल की गई अंतरिम सरकारी की वैधता कभी भी नहीं रही, लेकिन शायद मोहम्मद यूनुस को अब ये लग रहा है कि किसी ने देश को उनके नाम पर लिख दिया है। लिहाजा अगर किसी को इस बात को लेकर थोड़ा सा भी भ्रम है कि बांग्लादेश में दिसंबर 2025 से जून 2026 के बीच चुनाव हों जाएंगे, तो उसे अपना भ्रम भूल जाना चाहिए। बांग्लादेश में बने अस्थाई ढांचे के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस भले ही 85 साल के हैं, लेकिन वे चालाक और चतुर हैं।
लिहाजा हैरान नहीं होना चाहिए कि जोर्ज सोरोस के नेतृत्व वाले अमेरिकी इको-सिस्टम ने उन्हें क्यों चुना है। हैरानी की बात ये है कि मोहम्मद यूनुस को रिमोट कंट्रोल से नचाने वाले उनके अमेरिकी आका बार बार लोकतंत्र की बात करते हैं, दूसरे देशों में लोकतंत्र को लेकर ज्ञान बांटते हैं, लेकिन अगर किसी देश का लोकतंत्र सशक्त हो, तो उसे तोड़ने के लिए हर हद पार कर जाते हैं।
मोहम्मद यूनुस के वादे और हकीकत में अंतर देखिए – जब इस अस्थायी प्रशासन ने बांग्लादेश में पिछले साल अगस्त में कार्यभार संभाला था, तब जनता से वादा किया गया था कि 90 दिनों के भीतर देश में पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव कराए जाएंगे। लेकिन अब, मुहम्मद यूनुस खुद बता रहे हैं चुनाव 2025 के अंत या शायद 2026 की शुरुआत में होंगे। लिहाजा बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बेगम खालिदा जिया दी बीएनपी ने देश में प्रदर्शन करने शुरू कर दिए हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) समेत कई विपक्षी दलों ने इस देरी को “लोकतंत्र से छल” बताया है। वे मानते हैं कि सत्ता में बने रहने के लिए मोहम्मद यूनुस ने धूर्तता शुरू कर दी है। मोहम्मद यूनुस इस देरी का फायदा अपनी प्रशासनिक स्थिति को मजबूत करने में इस्तेमाल कर रहे हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट इस प्रवृत्ति को लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत के रूप में देख रहे हैं, जहां अंतरिम संरचना को स्थायी स्वरूप देने की कोशिश हो रही है।
Home / News / बांग्लादेश में शुरू हुआ अमेरिका का ‘ऑपरेशन म्यांमार’? तानाशाही पर उतरा पश्चिम का ‘प्यादा’, चुनाव रोकने के लिए बना रहा बहानेबाजी