Wednesday , November 19 2025 7:11 AM
Home / Uncategorized / आशुतोष राणा ने दोनों बेटों के लिए लिखी चिट्ठी, बताई वो बात जो हर बेटे को जाननी चाहिए

आशुतोष राणा ने दोनों बेटों के लिए लिखी चिट्ठी, बताई वो बात जो हर बेटे को जाननी चाहिए

अभिनेता आशुतोष राणा का ‘फादर्स डे’ सेलिब्रेट करने का अंदाज अनोखा है। इस खास अवसर पर एक्टर बेटों से दिल की बात चिट्ठी लिखकर करते हैं।
संघर्ष और दुश्मन जैसी पॉपुलर फिल्मों में खूंखार विलेन का किरदार निभाने वाले दिग्गज अभिनेता आशुतोष राणा निजी जिंदगी में बेहद सरल और संजीदा व्यक्ति हैं। वो बिना किसी शोर शराबे के खामोशी से अपना काम करते हैं, लेकिन उनके काम की तारीफ दुनिया करती है। आशुतोष राणा के सुपरहिट प्ले ‘हमारे राम’ को देशभर में दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं। हाल ही में रिलीज हुई छावा, कौशलजी वर्सेज कौशल, लवयापा जैसी फिल्मों और ‘द मिस्ट्री ऑफ मोक्ष आइलैंड’ वेब सीरीज के बाद जल्द ही आशुतोष राणा ‘हीर एक्सप्रेस’ फिल्म में नजर आने वाले हैं। उनकी लिखी किताबें- रामराज्य, मौन मुस्कान की मार और आशुतोष नीति-जीवन की रीति को पाठकों ने बहुत पसंद किया।
स्टारडम का गुरूर न आशुतोष राणा में नजर आता है और न ही उनके परिवार के किसी भी सदस्य में। उनकी लाइफस्टाइल इतनी सिंपल है कि आज भी जन्मदिन या किसी खास अवसर पर ग्रांड पार्टी की बजाय वो अपने दोनों बेटों को हाथ से लिखी चिट्ठी देते हैं। लेकिन ये चिट्ठी साधरण नहीं होती। इसमें जीवन के वो अनमोल सिद्धांत होते हैं जो व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण के लिए बेहद जरूरी हैं। ‘फादर्स डे’ के अवसर पर आशुतोष राणा ने अपने दोनों बेटों के लिए जो चिट्ठी लिखी है, उसे हम आपके साथ साझा कर रहे हैं। इस चिट्ठी में पिता का प्यार भी है, बेटों के लिए सीख भी और उनके व्यक्तित्व-चरित्र निर्माण की अनोखी पहल भी है।
आप भी करें ये शुरुआत -‘फडर्स डे’ के अवसर पर अभिनेता आशुतोष राणा ने हमारे साथ वो चिट्ठी शेयर की जो उन्होंने अपने दोनों बेटों शौर्यमन और सत्येन्द्र के लिए लिखी है। ये चिट्ठी हम आप तक इसलिए पहुंचाना चाहते हैं ताकि आप भी ऐसी पहल कर सकें। ‘फडर्स डे’ के अवसर पर अपने बच्चों से दिल की बात चिट्ठी लिखकर करें।
पिता का पत्र पुत्रों के नाम – परमप्रिय शौर्यमन व सत्येन्द्र..
वैसे तुम दोनों इतने प्यारे और शानदार बच्चे हो कि मुझे प्रतिदिन पितृदिवस की अनुभूति होती है, किंतु लोकाचार का निर्वाह करते हुए आज तुम दोनों से कुछ कहना चाह रहा हूं।
आज के दिन मैं भले ही शारीरिक रूप से तुम दोनों के पास मुंबई में नहीं हूं, किंतु यह सत्य है कि मेरे मन, मस्तिष्क और हृदय में तुम दोनों (और तुम्हारी मां) का अक्षुण्य स्थान है।
पढ़िए आशुतोष राणा के विचार – संचार क्रांति के इस दौर में पत्रों का अस्तित्व भले ही समाप्त हो गया है, किंतु अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि पत्रों का प्रभाव आज भी वर्तमान है। जैसे सुनने से अधिक प्रभावकारी पढ़ना होता है, वैसे ही बोलने से अधिक महत्व लिखने का होता है। इसलिए ये पत्र लिख रहा हूं।
प्यारे बेटों, मैं सोच रहा था कि आज तुम दोनों को कुछ दिया जाए। मुझे लगा कि वस्तु से अधिक महत्वपूर्ण विचार होता है इसलिए अपने मन में उठ रहे भावों को तुम दोनों से साझा कर रहा हूं।
असफल होने का हुनर – बच्चों, दुनिया तुम्हें सफल होने के गुर सिखाएगी, लेकिन मैं तुम्हें सफल होने से पहले असफल होने का हुनर सीखने की सलाह दूंगा। तुम लोग सोचोगे कि पापा ये कैसी उल्टी बात कर रहे हैं! इसका कारण है, सफलता जहां सहज रूप से मनुष्य में उन्माद पैदा करती है, वहीं असफलता मनुष्य में अवसाद को जन्म देती है। उन्माद और अवसाद ये दोनों ही व्यक्ति के सामान्य होने के लक्षण नहीं हैं। जो व्यक्ति असफलता में अवसाद ग्रस्त नहीं होता वह व्यक्ति सफलता में उन्माद ग्रस्त भी नहीं होता।
ध्यान रखना, व्यक्ति का जितना नुकसान अवसाद नहीं करता उससे कहीं अधिक नुकसान उन्माद करता है, क्योंकि अवसाद में व्यक्ति सिर्फ स्वयं के नुकसान का कारक होता है, किंतु उन्मादी व्यक्ति संसार के कष्ट का कारण होता है।
असफलता का सम्मान – प्यारे बच्चों, जो व्यक्ति अपनी असफलता का सम्मान करते हैं वे ही व्यक्ति अपनी सफलता का सम्मान भी करते हैं। जब हम स्वयं का सम्मान करते हैं तब ही हम दूसरों का सम्मान भी करते हैं। जब व्यक्ति सम्मान के भाव से भरा होता है तब उसमें उत्साह का भाव स्थाई रूप से रहता है।
मैं चाहता हूं कि तुम दोनों स्वयं के साथ-साथ दूसरों की सफलता का सम्मान करना भी सीखो। उत्साह और सम्मान ऐसे भाव होते हैं जो अपने संपर्क में आने वाले संसार में स्वमेव ही सौहार्द, स्वीकार, सहिष्णुता, सहयोग, सकारात्मकता और सृजन की सृष्टि करते हैं।
सच्चे विजेता वे होते हैं जिनकी विजय में संसार को स्वयं की जीत दिखाई दे और संसार की विजय में जो स्वयं को जीता हुआ समझें।
आशुतोष राणा के पिता की सीख -मेरे पूज्य पिता ने मुझे एक कमाल का मंत्र दिया था। उस कालजयी मंत्र को मैं तुम दोनों से साझा करता हूं- “किसी को धन्यवाद देने में देरी ना करना। उसे धन्यवाद इतनी शिद्दत, इतनी मोहब्बत से कहना जैसे ये तुम्हारी जिंदगी का आखिरी क्षण है, इसके बाद तुम्हें बोलने का मौका नहीं मिलेगा। और किसी कर्म को करते समय इस बात का ध्यान रखना कि इसे करने के बाद तुम सौ बरस और जीने वाले हो। तुमसे तुम्हारा कर्म सौ वर्ष तक अपने किए जाने का हिसाब मांगेगा।
पत्र बहुत लंबा हो गया है, और इसकी भाषा भी तुम्हें कठिन लग सकती है। किंतु तुम दोनों एक बेहद बुद्धिमान, सक्षम और संवेदनशील मां की संतान हो। मैं जब छोटा था और मुझे कुछ समझ नहीं पड़ता था, तो मैं अपनी मां से पूछ लेता था। अब जब बड़ा हो जाने के बाद कुछ समझ नहीं पड़ता, तो तुम्हारी मां से पूछ लेता हूं, तुम दोनों भी यही करना।
मेरे पूज्य पिता जिन्हें मैं बाबूजी कहता था जो आशीर्वाद मुझे देते थे वही मैं तुम दोनों को दे रहा हूं- “विश्वविजयी भव! किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो।”
शुभाशीर्वाद सहित- पापा – आशुतोष राणा